नीलिमा शर्मा निविया
C 2/133
दूसरा फ्लोर
जनकपुरी
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नीलिमा शर्मा मुझे बचपन से पढने लिखने का शौंक रहा |
लिखना कब शुरू किया \\याद नही परन्तु कापियों के पिछले पन्ने हमेशा कुछ कुछ न मन की भाव अभिव्यक्ति से भरे रहते थे | जिन्दगी आगे बढ़ने पर उम्र के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ गयी तो लफ्ज़ कही गुम हो गये फिर बच्चो के बड़े होने पर मानो फिर से आवाज़ लगाने लगे | लफ्जों की यात्रारा शुरू हुयी पहली किताब “एक साँस मेरी”से फिर “पग्दंदियाँ “ कस्तूरी” गुलमोहर ,”अपने अपने सपने “ शब्दों की चहलकदमी “,अपनी अपनी धरती” , “शुभमस्तु “ तुहिन “ अपना अपना आकाश ‘ “किताबो में मेरी रचनाओं को स्थान मिला |
लघु कहानियो की एक सफल पुस्तक “मुट्ठी भर अक्षर “ का सह्सम्पदन भी किया जिसमे ३० लेखको की १८० कहानियो का समावेश हैं | विभिन्न समाचारपत्रों पत्रिकाओं में मेरी कहानी कविताओं का प्रकाशन भी हुआ | लेखन का सफ़र जारी हैं इस यात्रा के अनेक पढाव हैं हर पड़ाव पर कुछ नया सीखने को मिल रहा हैं |
माँ डरना मत !!
हर कोई सुनंदा को पकड़ने के लिय दौड़ रहा था | महिलाए अपने बच्चो को दरवाज़े के पीछे छिपा रही थी | , कम उम्र के लड़के/लडकियां खिड़की की झिर्री से बाहर देख रहे थे , बूढ़ी महिलाए सर पर हाथ मार मार कर विलाप कर रही थी | पुरुष शर्मिंदा होकर अपनी आँखे नीची किये मुंह घुमा रहे थे | किसी के पास सुनंदा के सवालों का जवाब नही था |हर कोई अपने जवान होते बच्चो के प्रश्न सुनकर परेशान नजर आरहा था सबको फ़िक्र थी अपनी बड़ी होती बेटी की . एक अजीब सा सन्नाटा था सबके अंतर्मन में , हर एक के मन में अनेको सवाल थे | जिनका कोई जवान नही था |
सोचे जब सोचती हैं तो बेलगाम सी बढती चली जाती हैं | कोई सिरा नही होता किसी भी सोच का| हर कोई अपने लिय अपनों के लिय पहले सोचने लगता हैं , आग दुसरे के घर लगती हैं लोग पहले अपना सामान हटाने की सोचते हैं ..... आग बुझाने की नही
सुनंदा और कोई नही मेरे मामा के गांव की एक ज़हीन लड़की थी |, उसकी बड़ी बहन और उसमें सिर्फ एक साल का फर्क था | दोनों बहने कम सहेलियां ज्यादा थी \\ पूरा घर उनकी हंसी से गुलजार रहता था | खी खी करके जब वोह दोनों हंसती तो माँ उनको धीरे से आँखे दिखा डराती थी कि जरा कम हंसा करो किसी की नजर लग जायेगी .. जितना हंसती हो उसका दुगुना रोना पड़ेगा , आनंदा और सुनंदा एक दम से कहती " माँ रोयेंगे हमारे दुश्मन " और माँ के आँचल से लिपट जाती
जिन्दगी कब किसको सीधी नजर से देखती हैं |कब उसकी टेढ़ी नजर किसी पर पड़ जाए कहाँ नही जा सकता .| समय बदल जाता हैं इंसान खुद को सम्हाल भी नही पाता हैं| वक़्त आगे आगे चलता रहा| छोटी छोटी बच्चियां भी उम्र के साथ साथ किशोरावस्था में आगयी |यौवन की दस्तक के साथ चेहरे पर बढती लालिमा ने उनके गौरे रंग के और भी गुलाबी बना दिया .गांव भर में उनके रूप की स्वभाव की चर्चा थी | लोग अपनी बेटियों को उनकी मिसाल देते कि देखो कितनी सुशील लडकियां हैं | पढने में मेधावी भी और समझदार भी , आनंदा को प्रशासनिक सेवा में जाना था तो सुनंदा डोक्टर बनकर अपने छोटे से गांव में चिकित्सालय खोलना चाहती थी | . अब ऐसी पढाई के लिय वहां साधन उपलब्ध नही थे , पिता जी ने उनको समीप के शहर में पढने के लिय भेज दिया , हिंदी मध्यम से पढ़ी लडकिया शहर में जल्दी से खुद को एडजस्ट नही कर पायी |मित्रो के तानो व्यंगो को दिल से ना लगाते हुए दिन रात मेहनत करने लगी | दो बार लोक सेवा आयोग की परीक्षा देने के बावजूद आनंदा पास नही हो पायी| तीसरी बार फिर से जोर शोर से तैयारियों में लगी हुयी थी | , सुनंदा का मेडिकल में दाखिला हो गया था
, माँ से बहुत दिन से दूर रहने पर बेटियाँ बहुत उदास हो जाती हैं और जैसे ही पहली फुर्सत मिले उनका मन सबसे पहले माँ से मिलने को तड़प उठ'ता हैं सुनंदा माँ से मिलने गांव चली गयी और वहां जाकर माँ के साथ सुनहरे भविष्य के सपने बन रही थी और माँ भी उनके उत्तम भविष्य के साथ अच्छे घर परिवार में ब्याह की कल्पनाये करने लगी
सुबह सवेरे माँ की आँख फड़कने लगी | अनिष्ट की आशंका की सोचो से दूर उसने बहन को कॉल मिलाया |कल शाम से आनंदा का फ़ोन ऑफ आरहा था |लेकिन अब घबराहट होने लगी सुनंदा को ... दीदी तो कभी फ़ोन ऑफ नही करती थी | उनको तो फ़ोन ओन/ ऑफ करने की सुध ही नही रहती थी | सुनंदा ही उसका फ़ोन चार्जिंग पर लगा देती थी |
क्या हुआ होगा दीदी को ? कही तबियत तो ख़राब नही हो गयी सोचती हुयी "माँ मुझे काम हैं कुछ कागज बनवाने हैं होस्टल जाने से पहले " कहकर बस पकड़ कर दीदी के पास आगयी ..घर खुला हुआ था सिर्फ कुण्डी लगी थी दीदी नही थी पानी के तीन गिलास जरुर थी खाली और दो भरे हुए .इसका मतलब कोई आया था ...... सोचते सोचते उसने पड़ोस वाली आंटी से पूछने के लिय उनके कमरे में कदम बढ़ाया ही था कि सामने टी वी पर खबर फ्लेश हुयी कि उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक लड़की के साथ गैंगरेप!!!!! लड़की ने लाल लेग्गिंग और नीला कुरता पहना था लड़की की निर्वस्त्र तस्वीर बार बार टी वी पर दिखाई जा रही थी .... निर्भय काण्ड की गूंज सुनंदा के दिमाग में ताजा हो आई .यह तस्वीर वाली लड़की का चेहरा नही दिख रहा पर कद काठी दीदी जैसी लग रही .पर .लेकिन ...किन्तु ..परन्तु ..............यह पर बहुत सारे सवाल पैदा कर देता हैं हरेक जहन में , खासकर जब कुछ अनहोनी का अंदेशा होने लगे तो यह "पर" ही संबल बनकर हमें सोचने पर मजबूर करता हैं कि हमारे अपने के साथ ऐसा कुछ भी नही हो सकता हैं .. पर सोचने से सब अच्छा होता तो दुनिया में कोई जुर्म न होता . २४ घंटे हो गये दीदी का कुछ नही पता था | माँ की बनायीं कद्दू की सब्जी उसके हलक के साथ नही नीचे हो रही थी ..| अपनी एक मित्र के साथ दीदी की फोटो लेकर वोह समीप की चौकी पहुंची गुमशुदा की रपट लिखवाने | घर पर कुछ नही बताया कि पिता जी को बताया तो परेशान होंगे |अभी जरा अपने आप से ढूढने की कोशिश करती हूँ .... साथ वाले चाचा भी साथ चले आये थे |लड़की का मामला था ऐसे तो कभी अकेले बिना बताये यह दोनों लडकिया कही आती जाती ना थी | .तभी पुलिस वाले ने कहा कि कही चक्कर तो नही था जो कही भाग गयी होगी अपने यार के साथ | .गुस्सा तो इतना आया सुनंदा को कि उस खाकी वर्दी वाले का मुंह तोड़ दे परन्तु अपने संस्कार आड़े आगये और चुप रही पुलिस ने कुछ तस्वीरे सामने फेंकते हुए कहा ...यह देखो कल रात इसका बलात्कार हुआ हैं फलाने गांव में| लड़की कौन थी पता नही चल रहा||पुलिस ने तस्वीर भेजी हैं शनाख्त करवाने को लड़की की .......देखो कही तुम्हारी बहन तो नही |तस्वीरे देखते ही एक जवाला मुखी फट गया | आँखों के सामने अन्धेरा छा गया | जमीन जैसे खिसक गयी कदमो के नीचे से ................सुनंदा दीदी को देख बौखला गयी तस्वीरो में< निर्वस्त्र तस्वीरे देख कर चाचा ने भी मुंह फेर लिया ... यह उसकी बहन ही थी ......परन्तु यह वहां तक कैसी पहुँची ....किसी के पास जवाब नही था उल्टा सवाल उनसे ही पूछे जाने लगे ..किसके साथ चक्कर था .मुंह फट रही होगी जो किसी ने बदला लिया , किसी को धोखा दिया होगा .....घटना स्थल पर भीड़ और खून देखकर सुनंदा अपना संतुलन खो बैठी और उसके सामने का हर पुरुष उसे दीदी का बलात्कारी नजर आने लगा .............. उसने अपने कपडे भी उतार फेंके ..............और जोर जोर से चिल्लाने लगी ............ लो देखो मेरा भी भी शारीर .........तुम्हारी माँ - बहन सरीखा ही तो हैं .कुछ भी अलग हैं क्या इसमी ......लो भोगो इसको भी ................ क्या तुम्हारी माँ से बहन से कुछ भिन्न लगा हैं मेरे इस शारीर में जिसे भोगने के लिय तुम सब उतावले हुए रहते हो पशु बन जाते हो . आओ भोगो ना मुझे ..........और रोने लगी एक तरफ बैठकर |
“माँ हम तो बेटे थे ना तुम्हारे | लेकिन समाज के लिय तो एक लड़की का शारीर मात्र रहे ना |”
लोग थे आस -पास ............. पर आँखे चुराते हुए .उस भीड़ में वोह लोग भी रहे होंगे जिन्होंने आनंदा के शरीर में अपनी माँ- बहन के शारीर से कुछ अलग चिपका देखा होगा तभी सामूहिक पशुता पर उतर आये ........
कोने में सुबकती सुनंदा पर गांव की एक स्त्री ने अपनी साड़ी ओढाई और अपने अंक में भर लिया चाचा काल करने लगे उसके माता पिता को | कौर्ट कचहरी पुलिस के बीच किसी ने नही देखा वहां फटे हुए कुरते के जेब में एक फ़ोन था जिस पर एक सन्देश ड्राफ्ट्स में अधुरा लिखा हुआ था “ माँ मैं भी आ रही घर मन नही लग रहा | तुम कहती हो ना हम तुम्हारे बेटे हैं सो आज रात की बस से आरही हूँ डरना मत “