Family of Shadows - Part 7 Sagar Joshi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

Family of Shadows - Part 7




आशा की मौत ने पूरे शहर की हवा बदल दी थी।
सुबह का सूरज भी जैसे काला दिख रहा था —
और देशमुख बंगले के बाहर पुलिस की गाड़ियों की लाइटें उस अंधेरे को और बड़ा बना रही थीं।

अर्जुन मेहरा गहरी सांस लेकर बंगले के बरामदे से अंदर गया।
उसके चेहरे पर वही पुराना सन्नाटा था —
जब दिमाग तेज़ी से चल रहा हो, लेकिन भीतर ठंड उतर चुकी हो।

सावंत बोला,
“सर, आशा के कमरे की तलाशी फिर से लेनी चाहिए।”

अर्जुन ने सिर हिलाया,
“वो कमरे में नहीं मरी है। उसका डर कमरे तक लाया गया है।”



आशा का कमरा — नई तहकीकात

अंदर अब भी वही हल्की परफ्यूम की गंध थी।
वही, जो हवेली में दीवारों पर तैरती थी…
और देवयानी के नाम से जुड़ी थी।

अर्जुन की नज़र सबसे पहले खिड़की के शीशे पर गई —
जहाँ “ASHAA” लिखा था और रात भर में धुँधला पड़ चुका था।

वो उंगली से उस जगह को छूता है और धीमे से बोलता है, “ये खिड़की बाहर से नहीं खुलती… कोई अंदर ही था।”

सावंत चौंका, “सर मतलब — घर का ही कोई?”

अर्जुन ने जवाब नहीं दिया।
वो फर्श पर झुका, टॉर्च से हर कोना देखा।
एक कोने में हल्के नीले रंग का धागा पड़ा था —
नीला… देवयानी का पसंदीदा रंग।

लेकिन अर्जुन ने उसे उठाकर पास से देखा। “ये धागा नया है… 90’s के कपड़ों जैसा नहीं।”

और फिर वो सीधे सविता के कमरे की तरफ बढ़ गया।


सविता का कमरा — परछाइयों की गंध

दरवाज़ा खुद सविता ने खोला।
चेहरा पीला, आँखों में नींद नहीं, लेकिन डर… जैसे हड्डियों में घुस गया हो।

> सविता: “अब और क्या चाहिये आप लोगों को? मैं… टूट चुकी हूँ।”



अर्जुन उस बात को अनदेखा करता हुआ कमरे में दाख़िल हुआ।

उसकी नज़र तुरंत अलमारी पर गई।
वही अलमारी, जिससे पुरानी डायरी और रघुनाथ के पत्र मिले थे।

पर इस बार कुछ और देखा —
अलमारी के निचले ड्रॉर में
एक पुरानी साड़ी का टुकड़ा, नीला…
ठीक वही रंग जो आशा की मुट्ठी में मिले कंगन के टुकड़े से मिलता था।

अर्जुन ने टुकड़ा उठाया और धीरे से बोला, “मैडम… ये साड़ी आपकी है?”

सविता ने हकलाते हुए कहा,
“वो… मेरी नहीं… शायद आशा—”

अर्जुन ने उसे बीच में रोक दिया, “आशा नीली साड़ी नहीं पहनती थी। उसकी अलमारी में एक भी नीला कपड़ा नहीं मिला।”

सावंत ने धीरे से फुसफुसाया, “सर… सविता मैडम की नीली साड़ी तो हमने तहखाने वाली रात भी देखी थी।”

सविता का चेहरा सफेद पड़ गया।

सच की पहली दरार

अर्जुन सीधा खड़ा होकर बोला,
“मैडम, आपकी बेटी ने अपनी मौत से ठीक पहले जिसे देखा…
उसने नीली साड़ी पहनी हुई थी।”

सविता की साँसें भारी होने लगीं।

> सविता (धीरे से): “आप… आप क्या कहना चाहते हैं?”



> अर्जुन: “मुझे लगता है आशा ने किसी को पहचाना था।
कोई ऐसा… जो उसे डराने नहीं, बल्कि चुप कराने आया था।”



सविता की आँखें फैल गईं।
“मैंने नहीं— मैं कभी अपनी बेटी को—”

अर्जुन की आवाज़ शांत थी,
“मैंने अभी आरोप नहीं लगाया।
लेकिन ये ज़रूर कह सकता हूँ कि
देवयानी से ज़्यादा
अब शक आपकी तरफ़ आ रहा है।”

कमरे में अचानक खिड़की से हवा का झोंका आया।
टेबल पर रखे कागज़ उड़कर गिर पड़े।

सावंत ने एक कागज़ उठाया —
एक पुराना मेडिकल रिपोर्ट।

> रिपोर्ट: 2006
“आशा देशमुख — Anxiety Treatment.
नोट: मरीज को नीली साड़ी में औरत दिखने की शिकायत।”



अर्जुन ने धीरे से रिपोर्ट पर उंगली फिराई।

“मतलब आशा कई सालों से नीली साड़ी वाली औरत देख रही थी…
और वो औरत देवयानी नहीं थी।
क्योंकि तब देवयानी मर चुकी थी।”

सावंत हकबका गया।
“तो सर… वो कौन थी?”

अर्जुन की गर्दन धीरे-धीरे सविता की तरफ़ मुड़ी।

सविता की आँखों में अचानक एक चमक उभरी —
डर और कुछ छिपाने का मिश्रण।



अर्जुन ने सख्त लहजे में पूछा,
“मैडम, क्या आशा की बीमारी आपकी वजह से शुरू हुई थी?
क्या आपने कभी नीली साड़ी—”

सविता चीख पड़ी,
“बस! बंद करो ये बकवास!”

एक पल के लिए पूरा कमरा गूंज उठा।

अर्जुन मेहरा धीरे से आगे बढ़ा।
“आपने अपनी बेटी से क्या छुपाया था?
देवयानी की मौत का सच?
या रघुनाथ का पाप?”

सविता की आँखों में आँसू नहीं थे —
बस गुस्सा और घबराहट।

> सविता: “तुम लोग समझते क्या हो?
जो कुछ हुआ… वो सब रघुनाथ ने किया था!
मैंने सिर्फ़… परिवार बचाने की कोशिश की…”



अर्जुन ने धीमे से कहा, “यही गलती बहुत से लोग करते हैं —
पाप छुपाकर परिवार नहीं बचते,
बस बर्बाद होते हैं।”


अर्जुन कमरे से निकलने ही वाला था कि उसके पाँव के नीचे कुछ “कड़क” कर टूटा।

उसने नीचे देखा…
एक नीले काँच का और टुकड़ा
ठीक वैसा ही, जैसा आशा की मुट्ठी में मिला था।

अर्जुन का माथा चढ़ गया।

“ये काँच… यही घर में टूटता रहा है।”

सावंत ने तुरंत कहा,
“सर, काँच का ये पैटर्न कमरे के बाहर तक फैला है… जैसे कोई इधर-उधर घूम रहा था।”

अर्जुन ने लंबा श्वास लिया। “और वो कोई…
दो घंटे पहले आशा के कमरे में भी गया था।”

सावंत चिंतित हुआ, “सर… मतलब कातिल—”

अर्जुन ने धीमे, भारी स्वर में कहा—

“कातिल कोई और नहीं…
इस घर का ही कोई है।”

उसकी नज़र सीधे सविता की आँखों में जा धँसी।

सविता कांपी।
जैसे उसकी रीढ़ में ठंडी हवा उतर गई हो।

अर्जुन धीरे से बोलता है, “देवयानी की आत्मा कहानी का हिस्सा हो सकती है…
लेकिन आशा की मौत नहीं।
वो इंसानी है — और किसी ऐसे ने की है
जो घर में था…
जो नीली साड़ी पहनता था…
और जिसे आशा पहचानती थी।”

सविता की उंगलियाँ अपने दुपट्टे को कसने लगीं।

> अर्जुन: “मैडम… क्या आप बता सकती हैं कि
आपकी नीली साड़ी कहाँ है?”



सविता ने धीमे से कहा, “…वो तो… पुराने स्टोर रूम में रखी है।”

अर्जुन ने ठंडी आवाज़ में कहा, “अच्छा। तो चलिए — अभी देखते हैं।”

सविता की सांस रुक गई —
मानो उसका दिल एक पल के लिए धड़कना भूल गया हो।


अर्जुन स्टोर रूम का दरवाज़ा खोलता है।
अंदर धूल… पुराने ट्रंक… और एक कोने में कपड़ों का ढेर।

सावंत टॉर्च मारता है।

अर्जुन आगे बढ़कर कपड़ों को हटाता है —
और वहीं पड़ी है…

नीली साड़ी —
फटी हुई, गंदी, और…
नीचे से खून के दाग़ों से भरी।

अर्जुन के चेहरे पर पसीना चमक गया।

सावंत की आवाज़ काँप गई: “सर… ये तो असली सबूत है।”

अर्जुन मेहरा ने दीवार को घूरते हुए कहा—

“शक की सुई अब पूरी तरह सविता की तरफ़ मुड़ चुकी है।”

और कमरे के बाहर खड़ी सविता…
उसकी साँसें टूटने लगीं।

उसकी आँखों में वो डर था
जो सिर्फ़ सच्चाई देखने वालों में होता है।