मैं अधूरा जी रहा हूं...... W.Brajendra द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं अधूरा जी रहा हूं......

मैं अधूरा जी रहा हूं…

“तेरे बिना साँसें तो हैं, पर ज़िंदगी नहीं…”


कमरे की खामोशी अब मेरी साथी बन चुकी है।

ये चार दीवारें हर रोज़ मेरी तन्हाई का मज़ाक उड़ाती हैं।

अलार्म बजता है, मोबाइल काँपता है,

पर उठने की हिम्मत नहीं होती।

चाय का कप हाथ में आता है,

भाप उठती है… पर स्वाद कहीं खो जाता है।

सब कुछ वैसा ही है…

सिर्फ़ मेरा दिल नहीं।

> “तेरे बिना सुबह भी सुबकती है,

दिन ढलता है, पर ढलती नहीं उदासी…”

मैं लोगों के बीच रहता हूँ,

पर अपनी ही दुनिया में गुम हूँ।

किसी की हँसी मेरे कानों तक पहुँचती है,

पर दिल तक नहीं उतरती।

किसी की बातें सुनता हूँ,

पर दिमाग़ में बस उसकी आवाज़ गूंजती है।

कभी-कभी सोचता हूँ…

ये कैसा प्यार है,

जहाँ वो पास नहीं,

फिर भी हर जगह वही है।

सुबहें फीकी हो गई हैं।

धूप खिड़की से अंदर आती है,

पर मेरे कमरे में रौशनी नहीं फैलती।

ज़िंदगी आगे बढ़ रही है,

लोग बदल रहे हैं, सपने नए बन रहे हैं…

पर मैं यहीं अटका हूँ,

वहीं, जहाँ उसकी यादें मुझे छोड़ नहीं रही।

> “वक़्त कहता है, सब बदल जाएगा,

पर तेरी यादें कहती हैं, ‘हम नहीं बदलेंगे…’”

किताबें खोलता हूँ तो पन्नों पर उसका नाम पढ़ता हूँ।

गाने सुनता हूँ तो हर शब्द में उसकी परछाई दिखती है।

रात को छत की तरफ़ देखता हूँ,

तो तारों में उसका चेहरा ढूँढता हूँ।

सब कुछ बदल गया है,

पर मैं नहीं बदला।

क्योंकि मैं उसे भूलना नहीं चाहता।

शायद इसलिए भी नहीं भूल पाता,

क्योंकि भूलना मतलब खुद को खो देना होगा।

कभी-कभी सोचता हूँ,

कितना अजीब है न ये एहसास…

वो कहीं और है, अपनी दुनिया में,

और मैं यहाँ,

उसकी यादों की दुनिया में कैद।

कभी अपनी हँसी ढूँढता हूँ,

कभी अपनी शांति,

पर हर बार ये एहसास होता है कि

वो सब उसी के साथ चली गई।

> “तेरे बिना ये दिल अधूरा है,

जैसे चाँद बिना रात,

जैसे लफ़्ज़ बिना आवाज़…”

रातें अब सबसे कठिन लगती हैं।

जब दुनिया सो जाती है,

तो मेरी आँखें जागती हैं।

नींद को मुझसे शायद नाराज़गी हो गई है।

जैसे ही आँखें बंद करता हूँ,

वो सामने आ खड़ी होती है।

उसकी मुस्कान, उसकी मासूमियत,

उसकी आँखों की वो चमक…

सब मेरी यादों में इतनी गहरी बसी है

कि चाहकर भी मिटा नहीं सकता।

कभी मैं सोचता हूँ,

उसके बिना जीना इतना मुश्किल क्यों है?

क्या मैंने उससे ज़्यादा प्यार कर लिया?

या फिर अपनी पूरी दुनिया ही उसके नाम लिख दी?

शायद दोनों ही बातें सच हैं।

क्योंकि जब दिल किसी को इस हद तक चाहने लगे,

तो उसकी गैरमौजूदगी सबसे बड़ा बोझ बन जाती है।

> “वो पास नहीं, पर हर जगह है…

मेरी साँसों में, मेरी धड़कनों में,

मेरे हर ख़याल में…”

मैं लोगों से बात करता हूँ,

मुस्कुराता हूँ, मज़ाक करता हूँ…

पर अंदर से खाली हूँ।

एक ऐसा खालीपन,

जिसमें आवाज़ भी गुम हो जाती है।

मेरे पास सबकुछ है,

पर उसका होना नहीं।

और उसका न होना…

मेरे हर होने को बेकार कर देता है।

दिन बीतते हैं, हफ़्ते गुजरते हैं,

महीनों का हिसाब खो गया है।

वक़्त कहता है, सब ठीक हो जाएगा।

पर मैं जानता हूँ,

उसके बिना कुछ भी ठीक नहीं होगा।

वो मेरी दुनिया की धड़कन थी।

अब भी है…

बस अब ये दुनिया उससे दूर हो गई है।

कभी खिड़की के पास बैठा रहता हूँ,

हवा का हल्का झोंका आता है,

तो लगता है जैसे उसका नाम लेकर गुज़रा हो।

उसकी मौजूदगी हर तरफ़ महसूस होती है,

हालाँकि वो कहीं नहीं है।

ये एहसास सबसे कठिन है —

वो मेरी ज़िंदगी में नहीं,

फिर भी मेरी ज़िंदगी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है।

> “तेरी यादों ने मेरी दुनिया बदल दी,

तू पास हो या न हो…

मेरा हर लम्हा तुझमें ही सांस लेता है।”

रात के सन्नाटे में,

मैं अक्सर खुद से बातें करता हूँ।

कभी कहता हूँ,

“सब ठीक हो जाएगा,”

तो कभी खुद से ही हार मान लेता हूँ।

दिल समझता नहीं,

और दिमाग़ मानता नहीं।

बस एक जंग चलती रहती है,

मेरे अंदर… हर पल।

और इस जंग में जीत किसी की नहीं होती।

क्योंकि चाहे जितना भी आगे बढ़ने की कोशिश करूँ,

मेरे हर रास्ते की मंज़िल वही है।

उसके नाम पर आकर सब थम जाता है।

जैसे मेरी ज़िंदगी की किताब का आख़िरी पन्ना

वहीं जाकर रुक गया हो।

> “तू पास नहीं, फिर भी हर जगह है,

मेरे दिल की हर धड़कन में,

मेरे हर सांस की वजह में…”

हाँ, मैं जी रहा हूँ।

लोग कहते हैं, ज़िंदगी चल रही है।

पर शायद उन्हें नहीं पता,

कि जीना और साँस लेना अलग बातें हैं।

मैं साँसें ले रहा हूँ,

पर ज़िंदगी वहीं छूट गई है…

जहाँ वो थी।

तेरे बिना हर खुशी अधूरी है।

तेरे बिना हर सपनों का रंग फीका है।

तेरे बिना मैं भी…

बस आधा हूँ।

क्योंकि मेरा आधा हिस्सा तो तेरे पास है।

“मैं अधूरा जी रहा हूं…”

और शायद…

हमेशा अधूरा ही रहूँगा।