अपराध ही अपराध - भाग 49 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अपराध ही अपराध - भाग 49

अध्याय 49

 

पिछला सारांश: 

‘कार्तिका इंडस्ट्रीज संस्थापक के कृष्णा राज के गुमशुदा लड़का, सफाई कर्मचारी के घर में संतोष के नाम से पल रहा लड़का, अब उसकी शादी होकर उसके दो बच्चों बाप बन गया था। इस बात को कृष्णराज को धनराज ने बताया। 

इसे सुन कर दोनों बड़े खुश हुए। 

दूसरे दिन सवेरे 10:00 बजे कृष्णा राज के घर पर आने के बारे में संतोष ने कह दिया। 

इस बात को कृष्णा राज के विरोधी दामोदरन के लड़के विवेक को संतोष ने बताया।

‘इस समाचार को कृष्णा राज के विरोधी दामोदरन के लड़के विवेक को बताते ही उसने कहा। 

मुझे और मेरे अप्पा को पुलिस ढूंढ रही है। इसीलिए हम बार-बार जगह बदल रहें हैं। 

तुम कृष्णा राज के घर में रहते हुए, मैं जैसे कहूं वैसे करो। तुम्हें महीने में पांच लाख रुपए मैं दूंगा…’ विवेक ने संतोष से कहा। 

‘कृष्णराज के सारी प्रॉपर्टी को लेकर मुझे सिर्फ पांच लाख रुपए! सबसे पहले इसे पुलिस में पकड़वाना ही मेरा पहला काम है…’ अपने मन में संतोष ने सोचा।

संतोष, के विवेक से बात करने के बाद ही उसके सामने उसकी पत्नी सुमति आई।

“कौन है जी…वह विवेक है क्या?”

“हां वहीं धोखेबाज ही है।”

“टीवी में आपने वह समाचार देखा?”

“नहीं तो कौन सा समाचार?”

“वहीं विवेक के अप्पा दामोदरन के बारे में ही था। उनका पूरा परिवार बहुत बड़ा धोखेबाज और चोर हैं। वह विदेश के जिस देश में जाएं वहां के पुलिस उसे पकड़ लेगी ना?”

“हां ये सभी इंटरनेशनल स्मगलर्स हैं।”

“ऐसा बोले तो?”

“तस्करी करके गांजा अफीम भगवान की मूर्तियों आदि किसी चीज की भी वे तस्करी करते हैं।”

“आपके अप्पा जिसे आप बोल रहे हो वह कृष्णराज ही तो है?”

“हां इसीलिए तो उसने अपने पैदा हुए बच्चे को उठाकर कचरे के डिब्बे में डाला। अच्छा आदमी होता तो ऐसा करता।”

“ऐसा एक बदमाशों के साथ आपको जाना है?”

“शुरू हो गई…मैं कहां गया रे। वे ही तो मुझे ढूंढ कर आए?”

“फिर भी मुझे बहुत डर लग रहा है। चुपचाप ‘मैं तुम्हारा बेटा नहीं हूं कहकर अलग हो जाइए’।”

“जा रे बेवकूफ…जिंदगी में भाग्य कभी-कभी ही खुलता है वहीं अभी मेरे पास आया है। मैं भी उसे चुपचाप हाथ से कैसे छोड़ दूं? मैं नहीं छोडूंगा। उस बंगले में जाकर सारे संपत्ति को मेरे कब्जे में करने के बाद दूसरे ही मिनट मैं उस विवेक को गिरा दूंगा। तुम बेकार में मत डरो।”

“आदमी को बदलना बहुत बड़ा अपराध है । फिर एक हत्या भी? क्या पुलिस तुम्हें ऐसे ही छोड़ देगी?”

“उनके किसी भी विषय में पुलिस नहीं आएगी। यह विवेक मर जाएगा मालूम होते ही उनके ग्रुप में ही किसी ने उसे मार दिया ऐसा ही सोच लेंगी। 

“यह सब मैं देख लूंगा तुम थोड़ा अपना मुंह बंद करके रखों। एक टूव्हीलर का मैकेनिक करोड़पति बनने वाला है इस बात को सोचकर तुम्हें खुश होना चाहिए।” ऐसा अहंकार के साथ कहकर संतोष शेविंग करने लगा।   

कृष्णा राज के बंगले में केले के पेड़ आम के पत्तों का तोरण लगा कार्तिका सजाने-संवारने में लगी हुई थी।

संतोष को लाने के लिए कृष्णा राज की बी.एम.डब्ल्यू गाड़ी तैयार खड़ी थी। 

पंडित जी ने अच्छा मुहूर्त देखकर बताया था। उसी समय कुमार और धना दोनों संतोष को लेने के लिए रवाना हुए। कार्तिका ने बड़ी उत्सुकता के साथ उन्हें भेजा।

कार के रवाना होते ही कृष्णराज के कमरे में आकर “अप्पा अन्ना को लेने के लिए कार को भेज दिया” कार्तिका ने बताया।

“मैं भी टेंशन में ही हूं। उसे मैं बड़ी लापरवाही से भगा दिया था। आज मैं उसकी आरती उतारकर उसका स्वागत करने वाला हूं मेरे जिंदगी कितनी विचित्र है।”

“गलती करने से भी बड़ा है अपनी गलती को महसूस करके उसे फिर से सुधार लेना। यह बात तो आपके ही पास है ना अप्पा।”

“मेरी तारीफ मत करो बेटी, मैं एक बड़ा अपराधी हूं। बस अभी थोड़ा मनुष्य बन गया हूं।”

“सिर्फ मनुष्य ही नहीं आप देवता ही बन गए हो।”

“हां मैंने अपने वकील को आने के लिए बोला था ना आ गए क्या?”

“मैं रास्ते में हूं ऐसा उनका फोन आया था” ऐसा कार्तिका ने बताया।

“हां फिर हमें धनंजयन के परिवार के लिए कुछ करना चाहिए। तुम क्या कहती हो?”

“इसमें बोलने के लिए क्या है अप्पा धना यहां नहीं आए होते तो अभी यहां यह अच्छी बात नहीं हुई होती। उन्हें अपना जॉइंट डायरेक्टर बनाकर उन्हें शेयर दे दीजिएगा। एक यह अच्छा तरीका है उनको धन्यवाद देने जैसे भी होगा।”

“मैंने जो सोचा था वही तुम भी सोच रही हो।”

कृष्णराज, और कार्तिका दोनों आपस में खुशी से बात कर रहे थे उसी समय धना और कुमार गाड़ी में बड़े खुशी के साथ झोपड़ी नुमा घर पर प्रवेश किया। 

कार के आते ही, उनके घर पर ताला लगाते देख सब लोग अड़ोसी -पड़ोसी आश्चर्य से देख रहे थे। इसे देख सुमति को बहुत ही अजीब सा लगा।

“क्यों जी सभी लोग देख रहे हैं।”

“अच्छी तरह देखने दो उससे क्या हुआ अभी?”

“कार में चढ़कर बैठकर “चुपचाप रह…बेकार की बातें यह-वह मत कर। अब से तू करोड़पति की पत्नी है। उसी की तरह से तो व्यवहार कर” ऐसा कहकर डांट कर अपनी पत्नी को संतोष ने चुप कराया। 

“धना को भी उसने लापरवाही से देखा। धना भी उसे देख मुस्कुराया। कार रवाना हो हुई।

आगे पढ़िएगा....