खूनी खंडर Vijay Sanga द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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खूनी खंडर

लोगों को लगता है की उनके बड़े उन्हे जो समझाते हैं वो उनके लिए किसी बकवास से कम नहीं होता। उनको लगता है की वो बस उनसे बड़े होने का उनपर धौंस जमा रहे हैं। इसलिए जब उनके बड़े उनको जिस काम के लिए मना करते हैं, वो लोग वही काम करते हैं। लेकिन कभी के बार बड़ों की बात ना मानने की वजह से बहुत कुछ भुगतना पड़ सकता है।

ये कहानी इंदौर जिले के एक छोटे से गांव हसलपुरा मे रहने वाले तीन दोस्तों की है जिन्होंने बड़ो की बातों को नजरंदाज करते हुए अपनी मनमानी की। और फिर उसकी कीमत उन लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

हसलपुर का जंगल बहुत दूर दूर तक फैला हुआ था। कई जगह ऐसी भी थीं, जहां पर लोग पार्टी वगैरा करने के लिए जाया करते थे। उस जंगल मे कई खूंखार जानवर भी थे जैसे तेंदुवे और बाघ। वहां पर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने भी जंगल के बाहरी हिस्से मे चेतावनी का बोर्ड लगा रखा था। उस बोर्ड मे साफ लिखा हुआ था की जंगल के अंधरूणी हिस्से जाने शक्त माना है, जान को खतरा हो सकता है। लेकिन लोग कहां ऐसी चेतावनियों पर ध्यान देते हैं। और इसी का नतीजा होता है की वो लोग जानवरों का शिकार बन जाते हैं।

रविवार का दिन और सुबह का वक्त था। मोहन , कपिल, और सोनल नामक तीन दोस्त अपने घर के पास वाले बरगद के पेड़ के नीचे बने ओटले पर बैठकर बातें कर रहें थे।

“अरे मोहन...! क्यों ना आज कहीं पार्टी करने के लिए चला जाए...!” कपिल और मोहन को देखकर सोनल पूछती है।

“हां यार मैं भी यही सोच रहा था। वैसे भी आज रविवार है और दिन भर कुछ करने को है नही। घर पर बैठे बैठे बोर होने से तो ये अच्छा ही है।” मोहन ने भी सोनल और कपिल को देखते हुए कहा। कपिल भी उनकी बातों से सहमत था।

मोहन , सोनल और कपिल उसी हसलपुरा गांव के ही सरकारी स्कूल की 12वी क्लास के स्टूडेंट थे। रविवार होने की वजह से स्कूल की छुट्टी थी, और वो तीनो घर बैठ कर बोर होते हुए sunday नही बिताना चाहते थे। इसलिए उन तीनो ने पार्टी करने का प्लान बना लिया।

वो तीनो गांव के आस पास की ही कोई अच्छी सी जगह के बारे मे पार्टी करने का सोच रहे थे, लेकिन उन्हें समझ नही आ रहा था की किस जगह पर पार्टी करना चाहिए। क्योंकि sunday के दिन वहां पर शहरी छेत्र के भी बहुत से लोग पार्टी करने के लिए आया करते थे, और वो तीनो किसी ऐसी जगह पर पार्टी करना चाहते थे जहां पर उनके अलावा कोई ना हो।

उन तीनो ने एक दूसरे को कई जगह के सुझाव दिए, पर तीनो किसी भी जगह से सहमत नही थी। कभी कपिल किसी जगह के लिए मना कर देता तो कभी सोनल मना कर देती।

“क्यों ना हम लोग जंगल के भीतरी हिस्से मे उस खंडर के पास पार्टी करने के लिए चले जहां पर कोई भी आता जाता नही है।” मोहन ने मुस्कुराते हुए सोनल और कपिल से कहा। लेकिन उनको उसका ये idea पसंद नही आया। क्योंकि वो लोग अच्छे से जानते थे की उस जगह पर जाने की मनाही थी। किसी को भी उस खंडर की तरफ जाने की इजाजत नहीं थी। कई लोगों ने वहां पर भूतियां गतिविधि होते हुए देखा था, इसी चलते उस जगह पर जाना वर्जित था।

मोहन की बात सुनकर कपिल बोल पड़ा, “अरे मैं नही जाने वाला उस जगह पर। तुझे अच्छे से पता है की वहां पर जाना वर्जित है , फिर भी तू वहां पर जाने की बात कर रहा है...!”

कपिल की बात से सोनल भी सहमत थी। उसने भी मोहन को देखते हुए कहा, “कपिल सही बोल रहा है मोहन। वो जगह ठीक नही है। पहले भी वहां पर कुछ लोगों की जान जा चुकी है। और वैसे भी वो जगह वर्जित है। अगर किसी को पता चल गया की हम लोग वहां जाने वाले हैं तो हम तीनो की खैर नहीं।”

कपिल और सोनल की बातें सुनकर मोहन को हंसी आ गई। वो अपनी हंसी को कंट्रोल करते हुए उन दोनो से बोला, “अरे क्या यार, तुम दोनो तो बहुत ज्यादा डरपोक हो। ये सब तो बस मनघड़त कहानियां हैं। और अगर ये बात सच भी है तो मैं भूत प्रेतों से नही डरता। डरपोक तो तुम दोनो हो।”

मोहन की बात सुनकर कपिल और सोनल को गुस्सा आने लगा। उन्हे मोहन का उन लोगों को डरपोक कहना बिलकुल अच्छा नही लग रहा था। अब बात उनके self respect पर आ गई थी। इसी वजह से वो दोनो मोहन के साथ वहां खंडर के पास जाने के लिए राजी हो गए।

दोपहर के लगभग 2 बज रहे थे। तीनो ने वहीं अपने घर के पास वाली नाश्ते की दुकान से समोसे और कुछ कचौरियां खरीदी और साथ मे एक पानी की बोतल लेकर जंगल की तरफ जाने लगे। वो तीनो वहीं पुराने खंडर के पास जा रहे थे जहां पर किसी का भी जाना वर्जित था।

तीनो के घर वालो ने उनके जाने से पहले उनसे पूछा था की वो लोग पार्टी करने के लिए कहां पर जा रहे थे ? लेकिन तीनो ने अपने अपने घर पर बोल दिया की वो लोग जंगल के बाहरी हिस्से मे को आम का पेड़ था, उसी के पास जाने वाले थे। उस आम के पेड़ के पास बहुत से लोग आए दिन पार्टी करने के लिए जाया करते थे। इसलिए उनके घर वालों को उनके वहां जाने से कोई आपत्ति नहीं थी।

लगभग 10 मिनट पैदल चलने के बाद मोहन सोनल और कपिल उस जंगल वाले खंडहर के पास पहुंच गए। दिखने में वो जगह बहुत ही भयानक नजर आ रहा था। बिल्कुल सुनसान सा और चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ। उस जगह के आस पास एक भी जीव जंतु दिखाई नही दे रहा था।

तीनों अपने साथ एक चटाई भी ले गए थे। उन्होंने चटाई बिछाई और खाने-पीने का सारा सामान उस चटाई में रख दिया।

“अरे यार मोहन...! लगता है हमने यहां पर आकर बहुत बड़ी गलती कर दी। देख ना कितनी भयानक जगह है ये। और यहां पर तो किसी जीव जंतु का भी नामो निशान नही है। मेरे खयाल से हमे यहां से जल्द से जल्द कहीं और चलना चाहिए।” सोनल ने उस खंडर को देखते हुए कहा। वो देखने से इतना ज्यादा भयानक था की उसको देख कर किसी की भी रूह कांप जाए।

“तू सही कह रही है सोनल । मुझे भी लगता है की हमे यहां पर नही आना चाहिए थे।” कपिल भी उस खंडर को देखते हुए सोनल से कहता है।

दोनो की बातें सुनकर मोहन हंसने लगता है। उसे वहां पर बिल्कुल डर नही लग रहा था। बल्कि वो जगह तो उसे मजेदार लग रही थी।

“अरे यार क्या तुम दोनो भी, फालतू मे इतना घबरा रहे हो। ये तो बस पुराना सा खंडर है, फालतू मे ही लोग यहां आने से घबराते हैं। मुझे तो यहां पर बिल्कुल भी डर नही लग रहा।” मोहन मुस्कुराते हुए कपिल और सोनल से कहता है। उन तीनो मे वही था जिसे उस जगह पर बिल्कुल भी डर नही लग रहा था। बाकी सोनल और कपिल की तो डर के मारे हालत खराब थी।

अब जब मोहन उनकी कोई भी बात मानने को राजी नहीं था, तो वो दोनो भी उसके साथ वहां पर बैठ गए। तीनो बातें करते करते समोसे खा रहे थे की तभी एक अजीब सी खुशबू आई। उस खुशबू से ऐसा लग रहा था मानो आस पास चमेली के फूल हों।

“अरे यार ये खुशबू तो गजब की है। चलो देखते हैं की ये खुशबू किस फूल की है और वो फूल कहां पर लगा हुआ है।” मोहन ने कपिल और सोनल से कहा।

मोहन की बात सुनने के बाद कपिल और सोनल भी उस फूल की तलाश करने लगे। वो तीनो उस खुशबू का पीछा करते करते खंडर के बहुत नजदीक पहुंच गए। उस खंडर के टूटे फूटे दरवाजे पर बहुत से रंग बिरंगे धागे और लाल कपड़ा बांध हुआ था। उसको देखकर ही पता चल रहा था की उसपर जादू टोना किया गया था।

“अरे यार ऐसा लग रहा है जैसे ये खुशबू इस खंडर के अंदर से आ रहा है...! क्या करें, चले खंडर के अंदर...?” मोहन ने जैसे ही सोनल और कपिल से ये कहा, वो दोनो वहां से पीछे हट गए।

“बहुत हो गई तेरे मन की, हम अब वापस लौटने वाले हैं। अगर तुझे इस खंडर के अंदर जाना है तो शौक से जा।” सोनल ने गुस्से मे मोहन से कहा। मोहन बहुत लापरवाह था। वो एक बार जिस चीज को करने की ठान लेता था, उसे करके ही मानता था।

सोनल की बात सुनकर मोहन मुस्कुराते हुए उससे बोला, “अरे यार सोनल , तू तो सच मे बहुत ज्यादा डरपोक है। चल ठीक है तू यहीं पर रूक, मैं और कपिल खंडर के अंदर चले जायेंगे।”

मोहन की बात सुनकर कपिल उसको हैरानी से देखते हुए बोला, “ओ भाई, मैं नही जाने वाला खंडर के अंदर, तुझे जाना है तो तू जा।”

अब जब कपिल ने भी सोनल की तरह खंडर के अंदर जाने से मना कर दिया, तो मोहन भी अपनी बात से पीछे हट गया। वो साफ देख पा रहा था की कपिल और सोनल उस समय कितने गुस्से मे थे।

तीनो वापस जाकर चटाई मे बैठ गए और समोसा और कचौरी खाने लगे। कचौरियां खाने के बाद कुछ देर तक तीनो ने आपस मे बातें की, उसके बाद तीनो वहां से घर वापस लौटने के लिए खड़े हो गए। उन लोगों ने कुछ कदम आगे बढ़ाए ही थे की तभी उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे उनके पीछे से कोई गुजरा। तीनो ने जब पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें वहां आस पास कोई भी नजर नहीं आया।

अब तीनो को थोड़ा डर लगने लगा था। वो इधर उधर देखते हुए धीमे धीमे कदमों से आगे बढ़ने लगे। वो लोग थोड़ा आगे बढ़े ही थे की तभी उन्हें एक अजीब सी आवाज आई। ये आवाज ऐसी थी जैसे घर का दरवाजा खुलने की आवाज आती थी।

तीनो जब पीछे मुड़े, तो उन्होंने देखा उस खंडर का वो दरवाजा खुल चुका था। अब उस जगह पर पहले से भी ज्यादा खुशबू आ रही थी। वो लोग हैरानी से उस खंडर की तरफ तरफ देखने लगे।

अब उन तीनो को बहुत ज्यादा घबराहट हो रही थी। तभी मोहन ने धीरे से सोनल और कपिल से कहा, “ सुनो, हम तीनो को जितना तेज हो सके उतना तेज भागना होगा। यहां पर जरूर कुछ गड़बड़ है।”

मोहन की बात सुनते ही सोनल और कपिल उसके साथ वहां से भागने लगे। वो तीनो भाग तो रहे थे, लेकिन वहां से आगे नहीं बढ़ रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उन्हें पकड़ रखा हो और आगे बढ़ने नही दे रहा हो।

तीनो भागते भागते थक चुके थे। तीनो गहरी सांसे लेते हुए हांफने लगे। तभी अचानक उन्हें घिंघुरूवों की आवाज आने लगी। इससे पहले की वो तीनो कुछ समझ पाते, उनके सर उनके धड़ से अलग होकर नीचे गिर गए। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने तलवार के तेज वार से एक ही झटके मे उनकी गर्दन अलग कर दी हो।

उन तीनो के मारने के बाद वहां पर एक काली रंग की साड़ी पहनी हुई औरत उनकी लाशों के पास आकर खड़ी वो गई। वो दिखने मे बहुत ही ज्यादा भयानक थी। बड़े बड़े नाखून, बिखरे हुए लंबे लंबे बाल और भयानक सा चेहरा।

उस औरत ने तीनो के सर उठाए , और फिर हंसते हुए उस खंडर के अंदर जाने लगी। वो खंडर के अंदर जाने ही वाली थी की तभी कुछ आहट सुनकर उसके कदम रूक गए। उसने पीछे मुड़कर इधर उधर देखा, और फिर कुछ नजर ना आने के बाद वो खंडर के अंदर चली गई।

असल मे वहां कुछ ही दूरी पर एक लड़का एक पेड़ के पीछे छिपकर ये सब देख रहा था। वो जंगल मे अपनी बकरियों चारा रहा था। उसकी एक बकरी बाकी बकरियों से अलग होकर कहीं चली गई थी। उसी को ढूंढते ढूंढते वो भी खंडर के पास जा पहुंचा था। उसने जो भयानक नजारा देखा था, उसके बाद वो बकरियों को वहीं जंगल मे छोड़ छाड़ कर भागता हुआ गांव जा पहुंचा। गांव पहुंचते ही उसने जो देखा था, उस बारे मे सभी लोगों को बताया। जब गांव वालो को इस बारे मे पता चला, तो वो सभी इकट्ठा होकर उस खंडर की तरफ चल पड़े।

गांव वाले जब उस खंडर के पास पहुंचे, वहां का भयानक मंजर देख कर उन सभी की हालत खराब हो गई। वहां पर अभी भी मोहन, सुनता और कपिल के धड़ वैसे के वैसे पड़े हुए थे।

गांव वाले अब कुछ नही कर सकते थे। उन लोगों ने मोहन , सोनल और कपिल के धड़ उठाए और गांव की तरफ चल पड़े। उस दिन के बाद लोगों ने उस खंडर के चारों तरफ कांटे वाली तारों का घेरा बना दिया। ताकि उस घेरे के अंदर कोई भी ना जा पाए।

इसलिए कहते हैं की बड़ो की बात माननी चाहिए। वो लोग बस हमारा भला ही चाहते हैं, इसलिए कभी कभी हमारे किए फैसलों पर रोक लगाते हैं। लेकिन फिर कभी कुछ लोगों को उनकी बातें किसी बकवास से कम नहीं लगती। वो लोग उनकी समझती गई बातों का उल्टा ही करते हैं, और फिर उसका नतीजा भी उन्हें भुगतना पड़ता है।