"कहां चली आ रही है महारानी"
मटरू की मां ने अपनी पालतू गाय गंगा को घर की तरफ आते हुए देखकर कहा।
"यह नहीं कि बाहर से कुछ खा पी करके आए, सारा खाना घर में ही खाना है और दूध–वूध कुछ देना नहीं है"।
"पता नहीं पंडित जी ऐसी मरी सी गाय कहां से उठा लाए हैं,छाती का पीपल बन गई है" ।
"चल भाग यहां से यहां दिनभर खाना नहीं रखा रहता है,चल भाग"।
मटरू की मां के इतने डांट फटकार और तानों के बाद भी जब गंगा वहां से नहीं गई तो मटरू की मां ने पास ही रखी एक लाठी उठाई और सडाक से एक लाठी गंगा को दे मारी।
बेचारी गंगा अपना दर्द सहती हुई,बिना कुछ बोले वहां से भाग गई,बोलती भी कैसे ? मूक प्राणी जो ठहरी।
गंगा के पहले जो गाय मटरू की मां के पास थी उसका नाम था जमुना और वह पूरे 2 से 3 किलो दूध प्रतिदिन दिया करती थी,लेकिन उस घर में तो जमुना तक की कोई कीमत नहीं थी, फिर गंगा तो अभी गर्भवती मात्र थी, उसे दूध देने में तो अभी समय था।
"अरे क्या कर रही हो मिश्राइन"
पड़ोस की श्रीमती शर्मा ने मटरू की मां के दरवाजे को खटखटाते हुए कहा।
मटरू की मां – अरे आओ आओ शर्माइन, तुम कैसे यहां का रास्ता भटक पड़ी आज ?
मटरू की मां ने दरवाजा खोलते हुए कहा।
श्रीमती शर्मा – अरे कुछ नहीं मिश्राइन मैं तो भागवत सुनकर लौट रही थी सोचा तुमसे मुलाकात कर लूं।
"वैसे क्या चल रहा है" ?
मटरू की मां – अरे चल क्या रहा है मिश्राइन घर का काम कर रहे हैं और क्या, पंडित जी तो सुबह-सुबह फलाहार करके चले जाते हैं पंडिताई करने और हम बस खटते रहते हैं सारा दिन।
श्रीमती शर्मा – अरे तो मटरू से भी कुछ काम करवाया करो, और अगर काम धाम में मन ना लगता हो उसका तो उसकी शादी करवा दो, बहू आएगी तो कुछ काम धाम करवाएगी।
मटरू की मां – अरे शर्माइन मटरू किसी काम का नहीं है, मटरू की बहन रीता थी तो काम करवाया करती थी अब तो शादी के बाद उसको मायके आने की फुर्सत ही नहीं है, और कुछ काम–धाम जम जाए मटरू का, पैसा–वैसा कमाने लगे तब तो शादी ब्याह करें उसका, आजकल निठल्ले लड़कों को इतनी जल्दी लड़कियां मिलती भी कहां है।
श्रीमती शर्मा – बात तो तुम ठीक कह रही हो मिसराइन, अच्छा यह बताओ प्रवचन सुनने जाती हो क्या ?
वह जो नए वाले बाबा जी आए हैं वह बहुत अच्छा प्रवचन देते हैं।
मटरू की मां – हां शर्माइन शुरू-शुरू में गई थी सुनने,फिर नहीं जाती हूं। सभी बाबा लोग वही वही बातें तो करते हैं।
पिछली बार गई थी तो एक बाबा का रहे थे की कृष्ण जी को गायों से बड़ा प्रेम था, और हम लोग यदि गायों की सेवा करेंगे तो बड़ा पुण्य होगा, अरे मेरा तो सारा जीवन चला गया गायों की सेवा करते–करते शर्माइन, मुझे तो कोई पुण्य–वुण्य नहीं हुआ ।
श्रीमती शर्मा – लो कर लो बात, एक तुम हो जो कह रही हो कि तुम्हारा पूरा जीवन ही चला गया गायों की सेवा करते-करते, और एक वह ठकुराइन है जो कह रही थी, कि तुम्हारी पुरानी वाली गाय जमुना को तुम कड़ी सर्द में रात में बाहर निकाल दिया करती थी,एक दिन बारिश हुई, जमुना को पाला मार दिया और वो तड़प–तड़प के मर गई।
मटरू की मां – अरे नाश हो उस ठकुराइन का, अरे हमारी गाय को पाला मार दिया तो उसमें हमारी क्या गलती है भाई ?
हमने जितनी गाय की सेवा की है उतनी तो उसकी पूरी पुस्त ने नहीं की होगी ।
ठकुराइन की मति मारी गई है क्या, ब्राह्मण की बुराई करती है ? सर्वनाश हो जाएगा उसका ।
और तुम शरमाइन हमसे ज्यादा इधर-उधर की बातें मत किया करो और जाकर के कह देना उस ठकुराइन से की अपने कर्मों में ध्यान दिया करे नहीं तो नाश हो जाएगा उसके सारे परिवार का।
श्रीमती शर्मा – अरे मिश्राइन तुम नाराज क्यों हो रही हो लोग तो कुछ ना कुछ कहते ही रहते हैं। अच्छा मैं अब चलती हूं।
मटरू की मां को नाराज देखकर श्रीमती शर्मा वहां से चली जाती हैं।
रात को मटरू के पापा यानी पंडित जी,शहर–भर में पंडिताई कर के वापस आ जाते हैं।
पंडित जी – अरे क्या कर रही हो पंडिताइन,आज तो जजमान ने ढेर सारा सीधा और खासी दक्षिणा दी है, पूरे ₹5000।
चलो आज बढ़िया सा कुछ खाने के लिए बनाओ।
मटरू की मां – क्या बात कर रहे हैं पंडित जी ₹5000, चलिए आज तो पनीर की सब्जी और पूरी बनाते हैं। अच्छा हुआ कि जजमान ने इस बार पैसे दिए हैं पिछली बार की तरह आपको वो मरी सी गाय नहीं थमा दी।
पंडित जी – अरे पंडिताइन गंगा को दूध देने तो दो, कम से कम दो-तीन किलो दूध तो देगी ही। आजकल शुद्ध दूध मिलना कितना मुश्किल हो गया है जानती तो होना।
वैसे अभी तक गंगा आज आई क्यों नहीं ?
मटरू की मां – अरे तुम्हारी गंगा महारानी तो शाम को ही आ गई थी मैंने ही भगा दिया की जाए कहीं चारा–वारा चरे,किसी के घर जाके रोटी–वोटी खाए,बाहर से जल्दी आ जायेगी तो हम लोग कितना खिला पाएंगे, और घर में आकर के रहेगी कहां, उसको घर में बांध देते हैं तो आपकी मोटरसाइकल बाहर खड़ी करनी पड़ती है।
पंडित जी – वह सब तो ठीक है पंडिताइन लेकिन इतने बजे रात तक तो गंगा आ करके घर के सामने जरूर खड़ी हो जाया करती थी। आज क्या हो गया है उसको ? अभी तो गर्भवती भी है बेचारी, अभी तो तुम उसको घर के अंदर ही रखा करो।
कुछ देर बाद खाना–पीना खाकर पंडित जी, मटरू और उसकी मम्मी अब सो जाते हैं।
दूसरे दिन सुबह तड़के ही शर्मा जी दौड़ते–दौड़ते पंडित जी के घर आते हैं और चिल्लाते हुए बोलते हैं।
"अरे पंडित जी आपकी गाय को किसी गाड़ी ने ठोकर मार दी है" बेचारी पड़ी–पड़ी कराह रही है।
पंडित जी – अरे क्या बोल रहे हैं शर्मा जी, चलिए चलकर देखते हैं।
पंडित जी और शर्मा जी दौड़कर उस जगह पहुंचते हैं, जहां गंगा पड़ी हुई थी।
वहां का दृश्य भयावह था, गंगा का मृत शरीर जमीन पर पड़ा हुआ था, किसी भारी वाहन ने मानो उसे कुचल दिया था, कुचले जाने के कारण गंगा का बछड़ा जो उसके गर्भ में मौजूद था, वह भी गर्भ से आधा बाहर निकल चुका था, पर उसका शरीर भी मृत ही नजर आ रहा था। वाहन से कुचले जाने का असर बछड़े पर भी पड़ा था।
पंडित जी – अरे राम–राम, पता नहीं किस नासपीटे ने गाड़ी चढ़ा दी, ये म्लेक्ष लोग किस तरह गाड़ी चलाते हैं।
इनकी तो सात पुस्तें नर्क में सडेंगी, गौ–हत्यारी लगेगी इनको।
इतनी अच्छी गाय दी थी जजमान ने, अभी एक बार भी दूध दुहा नहीं था इसका अरे राम–राम ।
चलो शर्मा जी अब जो होना था हो गया अब घर चलते हैं।
शर्मा जी – लेकिन पंडित जी इस गाय का क्या ?
पंडित जी – गाय का क्या नगर पालिका वाले आएंगे और उठा कर ले जाएंगे, चलिए हम लोग चलते हैं मुझे तो बहुत सारा काम है आज, कई जगह कथा सुनानी है।
शर्मा जी – हां यह भी सही है चलिए घर चलते हैं,अब मृत गाय को उठाने वगैरा का काम तो नगर पालिका का ही है।
ऐसा कहकर शर्मा जी और पंडित जी अपने घर की ओर निकल पड़ते हैं।
उधर पड़ोस की ठकुराइन बडबडाते हुए बोलती हैं,
"लो एक और गाय मार डाली करमजलों ने,और कहते हैं कि हम गौ सेवक हैं,घोर कलयुग है भाई घोर कलयुग है"।