लक्की लाडो Sanjay Nayak Shilp द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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लक्की लाडो

कुकर में उबलने से पहले पढ़ लेती.....

लक्की लाडो

रात के बारह बज रहे थे उसका फ़ोन आया "हेल्लो" किसी ने फुसफुसा-हट भरे लफ़्ज़ों में कहा।

"हाँ, बोलो" उसने भी हौले से कहा।
"सब तैयारी हो गई क्या, सुबह चार बजे की बस है।"

"मैंने अपने कपड़ों का बैग तो पैक कर लिया है, पैसे और गहने लेने हैं।"

"अपने सब डॉक्यूमेंट भी ले लेना, हो सकता है दोनों को नौकरी करनी पड़े, नया घर संसार जो बसाना है।"

"ओके, मैं सब कुछ लेकर तुम्हें कॉल करती हूँ।"

उसने सबसे पहले माँ की अलमारी खोली, और उसमें से गहनों का डिब्बा निकाला, अपने लिए बनवाया गया मंगलसूत्र बैग में डाला, अंगूठी और झुमके पहन लिए, चूड़ियों का डिब्बा उठाकर बैग में डाल रही थी कि माँ की तस्वीर नीचे गिर पड़ी।

उसे याद आया माँ की बरसों की इच्छा थी सोने का चूड़ा पहनने की। मगर जब पापा का एरियर मिला था तो जो चूड़ा बनवाया गया वो माँ ने ये कहकर उसके लिए सम्भाल कर रख दिया था कि जब बिट्टू इंजीनियरिंग करके नौकरी लग जायेगा खूब सारे बनवा लूँगी। अभी तो तेरी शादी के लिए रख लेती हूँ, मेरी लाडो कितनी सुंदर लगेगी। उसने तस्वीर वापस अलमारी में रखी और चूड़ा बैग में रख लिया।

अब बारी थी नकदी की, घर में पिचहत्तर हज़ार पड़े थे पापा कल ही बैंक से एज्युकेशन लोन लेकर आये थे। बिट्टू का आई आई टी का दूसरा साल चल रहा था। घर के रुपये पैसे का हिसाब और चाबी उसी के पास रहती थी। पापा हमेशा कहते हैं, जब ये पैदा हुई उससे पहले मैं स्टेशन पर कुली का काम करता था, जैसे ही ये पैदा हुई मेरी सरकारी नौकरी लग गई, यही मेरे भाग्य की देवी है, मेरी लाडो बेटी।"

उसने अपने सभी डॉक्यूमेंट बैग में रख लिए, अब उसे चैक करना था की घर मे जाग तो नहीं है सब सो तो रहे हैं ना? सबसे पहले उसने बिट्टू के कमरे के दरवाज़े से अंदर झाँका, बिट्टू अभी तक पढ़ रहा था। उसकी खाने की थाली वैसे ही ढकी पड़ी थी जैसी वो रखकर आई थी।

अगले कमरे में झाँका, माँ गहरी नींद सोई थी दवा लेकर । माँ हमेशा कहती है इस दवा में कोई गड़बड़ है जो नींद बहुत आती है । ये मुई शुगर भी बुरी बीमारी है लगकर खत्म ही नहीं होती।
दरवाज़े की झिर्री में से पापा दिखाई दे रहे थे, वो अपनी वर्किंग टेबल पर बैठे व्यापारियों का बही खाता तैयार कर रहे थे। अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने ये नया काम ढूंढा था, पापा कहते है कॉमर्स पढ़ा हूँ बही खाते भूलने लगा था । चलो इससे भूलूंगा भी नही और एक्स्ट्रा इनकम भी हो जाएगी।

सब अपने काम मे व्यस्त थे वो अपने कमरे में आई और उसे फ़ोन लगाया "सब रास्ते साफ़ हैं, सब अपने काम में लगे है मैं चुपचाप घर से बाहर निकालूँगी, उससे पहले फ़ोन करके बता दूँगी।"

"अच्छा तुमने गहने और पैसे ले लिए न।"

"हाँ, ले लिए तुम बारबार गहनों और पैसों का क्यूँ पूछ रहे हो, मैंने कहा न ले लिए।"

"अरे बाबू वो इसलिये की नया घर संसार बसाना है, नई जगह जाते ही काम थोड़े मिल जाएगा। तो हमें घर के रूटीन कामों के लिए पैसा तो चाहिए ही मेरा मोबाइल भी बहुत पुराना है मुझे नया मोबाइल भी लेना है, और फिर मैं कोई न कोई नौकरी पकड़ लूँगा, जिससे हम आराम से जिंदगी गुजारेंगे।"

"सुनो एक बात पूछुं ? क्या तुम में इतनी हिम्मत नहीं कि मुझे कमा कर अपने पैसे से रख सको,खाना खिला सको।"

"ऐसी बात नहीं बाबू! तुम बिन रहा नहीं जाता, और हम जाते ही मंदिर में शादी कर लेंगे ओर काम मिलेगा तो आराम से जिएंगे न।"
"सुनो तुम एक काम करो, अभी भागने का प्लान कैंसल करते हैं। पहले तुम काम करो और इतना पैसा कमा कर इकट्ठे कर लो कि दो महीने तक काम न भी मिले तो हमें भूखों मरने की नौबत न आये। जैसे ही तुम पैसा इकट्ठा कर लोगे हम भाग चलेंगे। तब तक इन्तज़ार करो, दो महीने तक न कर पाए तो मुझे भूल जाना।"
"अरे बेबी, बात तो सुनो, मेरी बात….।" लड़की ने फ़ोन काट दिया वो अपने पिता के कमरे में झाँक आई। वो अभी भी बहीखाता कर रहे थे।

उसने दरवाजा खटखटाया, "क्या बात है लाडो, सोई नहीं तुम।"

"पापा एक बात कहनी है।"

"कहो लाडो।"

"पापा जब तक बिट्टू की पढ़ाई पूरी न हो मैं नौकरी करना चाहती हूँ, मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी है घर में बेकार बैठने से क्या फ़ायदा, घर में दो रुपये जुड़ेंगे ही।" उसकी बात सुनकर पापा ने लाडो के सर पर स्नेह से हाथ फिरा दिया पापा बेटी दोनों की आँखें नम थीं।

संजय नायक"शिल्प"