सुनहरा केकड़ा |
एक समय की बात है की एक गांव में एक ब्राह्माण खेतीबाड़ी था । वह ब्राह्मण खेतीबाड़ी करता था । उसके पास कुछ खेत भी थे जिनसे अच्छी पैदावार होती थी और मजे में उसकी गुजर-बसर हो जाया करती थी । उसके खेतों के पास ही एक तालाब था ।
एक दिन खूब गर्मी पड़ रही थी । ब्राह्मण खेतों में काम कर रहा था। दोपहर को काम बंद करके वह नहाकर ठंडा होने के लिए तालाब के जल में उतरा । नहाते - नहाते उसकी नजर एक सुनहरे केकड़े पर पड़ी। उसे वह केकड़ा बहुत प्यारा लगा ।
उसने केकड़े को हाथों में लेकर पुचकारा । केकड़ा भी उससे प्यार करने लगा । वह अपने जम्बूर जैसे पंजों से कभी ब्राह्मण की नाक तो कभी होंठ या कान पकड़कर धीरे से खींचते । ब्राह्मण को केकड़े का यह खिलवाड़ अच्छा लगा ।
नहाने के बाद उसने तालाब के किनारे लकड़ियां गाड़कर अपना गीला अंगोछा उस पर तानकर छोटा-सा तम्पू बनाया और केकड़े को उसमें रख दिया । ताकि गर्मी से बचाव हो । शाम को काम समाप्त करने के बाद ब्राह्मण तालाब के किनारे अंगोछा लेने गया ।
केकड़ा उसके अंगोछे की छांव में आराम से सो रहा था । यह देखकर वह बहुत खुश हुआ । ब्राह्मण अंगोछा लेकर चलने लगा तो केकड़ा उसके पीछे चलने लगा । उसने केकड़े को अप ने अंगोछे में लपेटकर पूछा : "मित्र, तुम मेरे घर चलना चाहते हो न ? चलो ।
तुम्हें तुम्हारी भाभी से मिलवाऊंगा ।" इस प्रकार केकड़े से बतियाता हुआ वह घर पहुंचा । घर पहुंचकर केकड़ा अपनी पत्नी को दिखाकर वह बोला : " यह सुनहरा केकड़ा मेरा दोस्त है ।” ब्राह्मणी हंसी : "कहीं आदमी और केकड़े में भी दोस्ती हुई है ?"
वह बोला : "क्यों नहीं ? दोस्ती किन्हीं के बीच भी हो सकती है। बस प्रेम और विश्वास होना चाहिए ।" इस प्रकार अब वह ब्राह्मण रोज रात को केकड़े को घर ले आ और सुबह काम पर जाता हुआ साथ ले जाता । खेतों पर पहचक केकड़े के नामात्र में छोड़ देता ।
उसी ब्राह्मण के खेतों के पास एक ताड़ का पेड़ था । उस पर एक कौआ और कौवी रहते थे । कौवा लालची और पेटू स्वभाव की थी । वह रोज ब्राह्मण को खेतों की और जाते हुए देखती तो सोचती, कितनी बड़ी-बड़ी आँखें हैं उस आदमी की । चर्बी भरी होगी इनमें ।
खाने में कितनी स्वादिष्ट होंगी। एक दिन कौवी कौए से कह ही दिया : "मैं उस आदमी की आंखें खाना चाहती हूं ।” कौए ने उसे समझाना चाहा, पर कौवी ने हट दंड ली कि किसी भी तरह उसकी औखें लाकर खिलाओ । जब भी ब्राह्मण नीचे से गुजरता, कीवी की लार टपकने लगती ।
कौआ कौवी की जिद पूरी करना चाहता था, क्योंकि कौवी अंडे देने वाली थी। मां बनने वाली मादा का दिल नहीं दुखाना चाहिए । एक दिन कौआ उड़ रहा था कि नीचे उसे एक भयंकर नाग अपने बिल में पुसता नजर आया । नाग को देख कौए के दिमाग में ख्याल आया कि अगर यह नाग दोस्त बन जाए तो काम बन सकता है ।
यह ब्राह्मण को डसेगा । जब वह बेहोश होकर गिर पड़ेगा तो मैं उसकी औखें चोंच से खोद निकालूंगा । कौआ शहर के बाहर पड़े कूड़े के ढेर पर मंडराया । कूड़े में चूहे पलते ही हैं । उसने एक मोटा-सा चूहा पकड़ा और उसे लेकर नाग के बिल के पास जाकर पंजों में चूहे को जकड़कर 'कां-कां' करने लगा ।
शोर सुनकर नाग बाहर आया तो कौए ने उसके आगे चूहा फेंक दिया । नाग घप से चूहा खा गया । अब कौआ रोज चूहे लाकर नाग को खिलाने लगा। दोनों में दोस्ती हो गई । एक दिन कौए ने अपने मित्र नाग में कहा: “नाग भाई, तुम्हारी भाभी को एक आदमी की आखें खाने की बड़ी तमन्ना है ।
तुम मदद करो तो काम बन सकता है। तुम उसे डसना । जब वह गिर पड़ेगा तो मैं उसकी आँखें निकाल लूँगा ।” नाग बोला : “यह कौन-सी बड़ी बात है । तुम्हारे लिए तो मैं जान भी दे सकता हूं ।” बस, दूसरे ही दिन प्रात: अपने खेतों में जाने के लिए ब्राह्मण उधर से गुजरा तो घास में ताक में बैठे नाग ने उसे डस लिया ।
नाद द्वारा इसे जाते ही ब्राह्मण चिल्लाकर गिर पड़ा । उसका अंगोछा एक ओर जा गिरा । अंगोछे में उसका मित्र केकड़ा था । ब्राह्मण गिरकर विष के असर से बेहोश हो गया तो कौआ उसकी आंखें निकालने के लिए छाती पर आ बैठा । केकड़ा यह सब देखकर सारा माजरा समझ गया ।
केकड़े ने उछलकर कौए की गर्दन को अपने जम्बूर जैसे पंजों में पकड़ लिया । कौआ 'कां कां' कर पंख फड़फड़ाने लगा । पर केकड़े ने खप छोड़ा नहीं । कौए को मृत्युपाश में फंसा देखकर नाग उसकी सहायता करने आया तो केकड़े ने दूसरे पंजे से नाग की गर्दन पकडू ली और बोला : “तू चुपचाप मेरे मित्र को जहां तूने डसा है, वहां से विष चूस ले, वर्ना दोनों की गर्दनें तोड़ दूंगा ।"
ऐसा कहकर उसने अपना जम्बूरी पंजा नीचे सरकार साप को पूंछ की ओर से पकड़ा ताकि वह भाग न सके, पर मुँह से विष चूस सके । मरता क्या न करता, नागको विष चूसना पड़ा। जैसे ही उसने विष चूसा, केकड़े ने कौए व नाग दोनों की गर्दनें दबाकर उन्हें धड़ों से अलग कर दिया और बोला : "तुम जैसे दुष्टों का जीवित रहना सबके लिए खतरनाक होगा ।"
ब्राह्मण को होश आया तो केकड़े, मरे साप और कौए को देखकर वह सारी कहानी समझ गया । तब तक और किसान भी आकर तमाशा देखने लगे थे । ब्राह्मण ने अपने मित्र केकड़े को छाती से लगा लिया ।
सीख : मित्रता किन्हीं भी दो प्राणियों के बीच हो सकती है । बस प्रेम व विश्वास होना चाहिए ।
लेखक.. अल्पेश सिंह
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