क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा दिनू द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा

इतिहास के पन्नों में 17 अगस्त का दिन महत्वपूर्ण घटनाओं पर आधारित है। जिनके बारे में जानना बेहद दिलचस्प है। कई बार आपने भी इतिहास के विषय में बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में पढ़ा और सुना होगा जिसका संबंध 17 अगस्त के इतिहास से संबधित रहा होगा।

17 अगस्त, 1909 में क्रांति के महानायक कहे जाने वाले मदनलाल ढींगरा को वायली और लालकाका की हत्या के मामले में पेंटोनविली कैदखाने में फांसी दी गई। इस उपलक्ष में आज के दिन मदनलाल ढींगरा शहीद दिवस मनाया जाता है। आजादी की अलख जगाने वाले क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने मात्र 25 साल की उम्र में देश के लिए खुद को न्योछावर कर दिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को एक आंदोलन में तब्दील कर दिया।

18 सितंबर, 1883 को अमृतसर के सिकंदरी गेट में मदनलाल ढींगरा का जन्म हुआ था। इनके पिता दित्तामल जी पेशे से एक सिविल सर्जन थे और झुकाव अंग्रेजों की तरफ था। वहीं, मां भारतीय संस्कारों को मानने वाली महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का खास और विश्वासपात्र माना जाता था, लेकिन मदनलाल ढींगरा का स्वभाव सबसे अलग था।

परिवार ने नाता तोड़ा
वह कम उम्र से ही अंग्रेजों की बेड़ियों में जकड़े देश को आजाद कराना चाहते थे। वह देश में स्वतंत्रता संग्राम की अलख जलाने के लिए निकल पड़े थे। ऐसा करने के आरोप में उन्हें लाहौर के कॉलेज से निकाल दिया गया था। स्वतंत्रता संग्राम के पथ पर चलने के कारण परिवार ने भी उनसे नाता तोड़ दिया था। नतीजा, उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए तांगा चलाना पड़ता था।

1906 में उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एडमिशन लिया। विदेश में पढ़ाई के लिए उन्हें भाई और इंग्लैंड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादियों ने मदद की। यहां रहते हुए ही वो राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिले। कहा जाता है कि सावरकर ने मदनलाल ढींगरा को क्रांतिकारी संस्था भारत का सदस्य बनाया। इसके साथ हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी।

उस दौर में इंडियन हाउस भारतीय स्टूडेंट्स की बैठक का केंद्र हुआ करता था। यहां आने वाले भारतीय स्टूडेंट्सखुदीराम बोस, सतिन्दर पाल, काशी राम और कन्हाई लाल दत्त को फांसी से दुखी और गुस्सा थे। इसके लिए मदनलाल ढींगरा और दूसरे स्वतंत्रता सेनानी वायसराय लार्ड कर्जन और बंगाल एवं असम के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर बैम्पफ्यल्दे फुलर को जिम्मेदार मानते थे। बदला लेने के लिए लंदन में ढींगरा ने दोनों की हत्या करने की योजना बनाई। लंदन में दोनों से जुड़ी सूचनाएं जुटाईं ताकि उन तक पहुंचा जा सके। आखिरकार वो दिन आ ही गया।

जब दागी पांच गोलियां
साल 1909 में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन चल रहा था। एक जुलाई को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के एनुअल फंक्शन में बड़ी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकट्ठा हुए। इस कार्यक्रम के दौरान जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्नल वायली प्रोग्राम में पहुंचे, वैसे ही मदनलाल ढींगरा ने उनके चेहरे पर 5 गोली दाग दीं। हत्या के आरोप में उन पर मुकदमा चला। 23 जुलाई, 1909 को हत्या के मामले में पेशी हुई और फांसी की सजा सुनाई गई। सजा सुनाए जाने के दौरान उन्होंने कहा, मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन देश को समर्पित कर रहा हूं।17 अगस्त, 1909 को लंदन की पेंटविले जिले में उन्हें फांसी की सजा दी गई और देश के लिए वो शहीद हो गए।