Bhuli Bisri Khatti Meethi Yaade - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 26

फिर मुझे देखा गया।मैं नीचे कही नही मिला।तब सब बोले कहा गया।किसी ने बताया ऊपर की छत पर हूँ।
कोई बोला,"बुला लाओ।"
लेकिन मेरे स्वभाव से सब डरते थे।सबने मुझे जगाने से मना कर दिया तब सुशीला बहनजी मुझे ऊपर से बुलाकर लायी थी।
मैं बैठना नहीं चाहता था।इसलिए बड़ी मुश्किल से आया था।मेरी नवब्याहता पत्नी कमरे में बैठी सब सुन रही थी।
"बहु के पास बैठ जा"
वह मूझे कमरे में छोड़कर चली गयी थी।मैं खड़ा रहा तब पहली बार वह बोली,"बैठ जाओ।"
मैं फिर भी नही बैठा तब उसने फिर कहा था,"बैठ जाओ
"क्यो?
"मैं कह रही हूँ।"
और मै बैठ गया।उसने घूंघट निकाल रखा था।पर उसकी बड़ी बड़ी आंखे दिख रही थी।
और मैं उठना चाहता था।बैठना नही चाहता था।पर उसने उठने नही दिया।और काफी देर तक औरते आंगन में देवताओ के गीत गाती रही और हम दोनों देवता के सामने बैठे रहे।फिर औरते उसे उठाकर ले गयी।ऊपर सब छतों पर मेहमान सो रहे थे।एक छत पर कुछ औरते बहन आदि थी।वहां जाकर उसे बैठा दिया।वह घूंघट निकाल कर बैठी थी।मैं भी वहाँ बैठकर बात करने लगा।काफी देर बाद बहन बोली,"सो जाओ।यह भी थक गई होगी इसे भी आराम करने दो।और मैं सोने चला गया।उन दिनों गांव में बिजली नही थी।
दूसरे दिन जुए आदि की रस्म होनी थी और देवता के यहां जाना था।हमारे खेतो पर देवताओ के स्थान बने हुए है।शादी के बाद जोड़े से सिर झुकाने के लिए वहा जाना पड़ता है।उसके बाद ही पति पत्नी का मिलन होता है।काफी रिश्तेदार शादी में आये थे उनके जाने का सिलसिला शुरू होगया था।
मैं अपने रिश्तेदारी को ट्रेन में बैठाने के लिए स्टेशन जा रहा था।उस रात भी मै अपने बहन बहनोई को बैठाने के लिए स्टेशन गया था। ट्रेन लेट हो जाने के कारण मै लेट हो गया था।घर पर सब सो चुके थे।एक भाभी जग रही थी।उसने मुझे ऊपर जाने को कहा।ऊपर की छत पर हमारा एक कमरा था।जून का महीना।जैसा पहले भी कहा गांव में तब लाइट नही थी। पत्नी कमरे के बाहर दरी पर सो रही थी। मैने पहले मटके में से पानी पिया।फिर कुछ देर इंतजार करता रहा।पर उसकी आंख नही खुली तब मैने आवाज देकर जगाया था।
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और उस रात पहली मुलाकात में ही उसके रूप,सौंदर्य का जादू मेरे सिर पर चढ़ गया।उसके बेड की खुशबू मेरे मन में ऐसी बसी की आज तक दिल से गई नही।चाहे समय बीतने के साथ मेरी भी उम्र बढ़ी है।लेकिन आज भी मेरे दिल मे पत्नी की पहली रात की छवि बसी है।
और फिर अगले दिन पत्नी को वापस जाना था।उसे लेने उसके भाई आये थे।मुझे भी साथ जाना था।इस तरह शादी के बाद पहली बार मैं पत्नी के साथ ससुराल गया था।दूसरे दिन पत्नी को साथ लेकर मैं वापस गांव आ गया था।
और वो दिन बहुत ही कठिन थे।मा की पेंशन नही थी।उस समय दो सौ आठ रु मुझे तनख्वाह मिलती थी।हम सात भाई बहन और माँ कुल आठ मेम्बर तो पहले ही थे।पत्नी के आ जाने से एक मेम्बर और बढ़ गया था।
मैं अकेला आगरा में रहता था और बाकी सब गांव में इसलिए दो जगह का खर्च।मुश्किल काफी थी।पर क्या करते

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