धारा - 7 Jyoti Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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धारा - 7

दो दिन के लगातार सफर के बाद देव और धारा ने देहरादूरन की धरती पर कदम रखा..! देहरादूरन, देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी ! बेहद खूबसूरत..!

दोनो स्टेशन से बाहर आये ! देव ने पूछा, " अब कहाँ चलना है..??"

धारा "वो उस पेपर में एक एड्रेस था ना... वहीं चलते हैं !!"

स्टेशन से दोनो ने टेक्सी ली और ड्राइवर को एड्रेस बताया..! ड्राइवर ने कहा ," लगभग आधे घण्टे का सफर है ! ढाई सौ रुपये किराया लूंगा..!!"

देव "कोई आधे घण्टे का सफर नही है ! आदमी अगर पैदल भी जाये न तो बीस मिनट में पहुंच जाए ! ये तो फिर टेक्सी है.!!"

धारा और ड्राइवर दोनो हैरानी से देव को देखने लगे ! देव ने उनकी हैरानी दूर करने के लिए कहा, " हम कोई नए नही है यहां..! पहले भी आ चुके हैं ! तो नए लोग समझकर लूटने की कोशिश मत करो ! मीटर ऑन करो टेक्सी का ! उसी के हिसाब से किराया देंगे..!!"

ड्राइवर थोड़ा हड़बड़ा गया देव की बात सुनकर ! मगर धारा अब भी मुंह खोलकर, देव को घूरे जा रही थी!
देव ने धीरे से धारा का हाथ दबाते हुए उसके हाथ मे मोबाइल रख दिया ! धारा ने मोबाइल देखा ! उसमे मैप ओपन था, और उस जगह का एड्रेस भी डाला हुआ था देव ने ! अब धारा को समझ आया, देव की बातों का मतलब की उसे यहां के बारे में इतनी जानकारी कैसे याद आ गयी.?

दोनो उस एड्रेस पर पहुंचे ! एक कॉलोनी थी ! शहर का पॉश एरिया ! धारा और देव दोनो अपने बैग लेकर टेक्सी से बाहर आये !! टेक्सी वाले ने देव से किराया मांगा !
देव ने कहा," मुझ गरीब बच्चे के पास रुपये कहां से आएंगे..!! किराया ये मैडम देंगी ! बहुत रुपये हैं ईनके पास !!"

धारा ने देव को गुस्से से देखा ! फिर मीटर देखकर, सत्तर रुपये टेक्सी वाले को दे दिए !!

देव मुंह बनाकर हंसते हुए बोला, "हुह... ढाई सौ रुपये मांग रहा था ! मात्र सत्तर रुपये बिन बना और !!"

कॉलोनी में अंदर जाने से पहले, धारा ने अपने गले मे डला स्कार्फ देव को देते हुए कहा, " ये लो ! चेहरे पर लपेट लो इसे... ताकि कोई पहचान नही पाए तुम्हे !!"

देव में वो स्कार्फ लेते हुए कहा, " मुझे पहचान नही पाए मतलब..? मेरे अतीत को ढूंढने ही तो आये हैं...! अगर मैंने फेस कवर कर लिया तो मुझे जानने वाले पहचानेंगे कैसे..?? पता कैसे चलेगा मेरे बारे में..??"

धारा, "कितने सवाल करते हो यार तुम,कसम से..!! परेशान हो गयी मैं सुन सुनकर !! चेहरा इसलिए कवर करो, ताकि तुम्हारा कोई दुश्मन तुम्हे पहचान ना सके ..!!"

देव, " वाह ! स्टेशन ये यहां तक तो ऐसे ही आ गए हम लोग! अगर तब ही किसी ने देख लिया होगा तो...??"

धारा, " तब का तब सोचेंगे !! अभी फेस कवर करो और अंदर चलो !!"

धारा ने देव की हथेली को थाम लिया ! एक अजीब सा अहसास हुआ देव को..! धारा किसी बच्चे की तरह देव का हाथ पकड़कर अपने साथ लेकर जा रही थी। दोनो कॉलोनी के गेट पर पहुंचे! जैसे ही दोनो अंदर जाने लगे, गार्ड ने उन्हें रोक लिया! गार्ड एक उम्रदराज व्यक्ति था ।

"रुकिए..! किस्से मिलना है आप लोगों को..??' गार्ड ने पूछा।

"हमे यहां से कुछ पता करना था..!! धारा ने कहा।

गार्ड, "किससे क्या पता करना था आपको..? पहले अपना नाम पता बताइए..!!

धारा, " देखिए मेरा नाम धारा है ! मैं एक डॉक्टर हूँ इंदौर में! और हम दोनो इंदौर से ही आये हैं.!!" धारा उस गार्ड को पेपर दिखाते हुए," ये एड्रेस और जिसका नाम लिखा है उसके बारे में पता करना है !!"

गार्ड ने पेपर पढ़ा और हैरानी से धारा को देखने लगा..!
धारा ने कहा, " क्या हुआ..? आप ऐसे क्यों देख रहे हैं मुझे..?? जानते हैं क्या इस पते के बारे में कुछ या फिर इस इंसान के बारे में..??"

गार्ड ने देव को देखा फिर धारा से पूछा, " ये कौन है..? और चेहरा क्यों छुपाया हुआ है इन्होंने..??"

"ये मेरे मित्र हैं..!! देवेश!! इन्हें डस्ट से एलर्जी है !! और ठंडी हवाओं से भी ! सांस लेने में तकलीफ होने लगती है !! इनका मास्क हम लोग जल्दी-जल्दी में लाना भूल गए इसलिए स्कार्फ ही लपेट लिया..सेफ्टी के लिए !!"

"क्या बातें बनाती है ये लड़की..? गजब !" देव ने मन मे सोचा।

गार्ड ने कहा, " ये पता यहीं का है..!हमारे देव बाबू के घर का ! पर तकरीबन सालभर से वो गायब हैं..! मतलब यहां आए ही नही हैं ! " ये कहते हुए गार्ड के चेहरे पर एक उदासी आ गयी! जिसे धारा और देव दोनो ने नॉटिस किया। उस गार्ड ने कहा, " पर आप लोगो को क्यों जानना है इनके बारे में..? ये कौन आप दोनो..??"

"मैं दोस्त हो देव की..!! कुछ दिनों पहले मुझे पता चला था कि देव पर किसी ने जानलेवा हमला किया था ! वो हॉस्पिटल में है.... " धारा आगे कुछ बोलती उसके पहले ही उस गार्ड ने उसे चुप होने का इशारा किया उन्हें सामने पेड़ के नीचे उसका इंतजार करने का बोलकर गार्ड तुरंत अंदर गया और पांच मिनट बाद कपड़े बदलकर बाहर आ गया।

देव और धारा दोनो हैरानी से कभी उस गार्ड को तो कभी एकदूसरे को देखते। गार्ड थोड़ी आगे निकल गया और फिर दोनो से उसके पीछे आने का इशारा किया। धारा उस गार्ड के पीछे जाने लगी। देव ने उसे रोका, " कहां जा रही हो उसके पीछे..?? पता नही कौन है, कहां जाने का कह रहा है.? कहीं नही जाना ! अंदर चलते हैं वही कुछ पता चलेगा !"

धारा को देव की बात सही लगी ! वो वहीं रुक गयी ! थोड़ी दूर जाकर गार्ड ने मुड़कर देखा ! देव ओर धारा अब भी वहीं खड़े थे ! गार्ड समझ गया कि उन दोनों को उस पर विश्वास नही है ! इसलिए उसने एक छोटी सी पॉकेट डायरी निकाली और उसमे कुछ लिखकर कागज फाड़कर वहीं पास में पेड़ की छाल में फंसा दी !! और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

धारा और देव उस पेड़ के पास पहुंचे और उस चुपके से उस कागज को निकालकर पढ़ने लगे! उसमें लिखा था, "यहां पर देव बाबू की जान को खतरा है ! उन्हें लेकर मेरे पीछे आइए ! अगर सच का पता लगाना है तो थोड़ा विश्वास तो करना ही होगा आपको मुझपर !!"

कागज पर लिखे को पढ़कर देव और धारा दोनो आवक रह गए ! " गार्ड को कैसे पता चला मैं ही देव हूँ..??"
दोनो के दिमाग मे सवाल घूमने लगे और उनका सिर्फ एक ही जवाब था, वो गार्ड !! दोनो के पास उस गार्ड के पीछे जाने के सिवाय कोई अन्य मार्ग था ही नही...!!!
धारा और देव उस गार्ड का पीछा करते हुए एक मंदिर पहुंचे !! दोनो को बड़ा आश्चर्य हुआ ! उन्हें लगा था कि वो गार्ड उन्हें किसी घर या होटल में लेकर जाएगा पर वो तो मंदिर ले आया !!
गार्ड ने मंदिर की सीढ़ियों से माथा लगाया और अंदर चला गया ! वही काम उन दोनों ने भी किया। भोलेनाथ का मंदिर था!!

मंदिर के प्रांगण की एक दुकान से गार्ड ने फूल और प्रसाद की टोकरी ली! देव और धारा भी उसका अनुसरण कर रहे थे..!! बाहर नल में हाथ धोकर वे गर्भगृह में पहुंचे !!
मंदिर में कम ही लोग थे !! गार्ड वहीं जलेरी के पास आराम से बैठ गया..!! देव और धारा भी उस गार्ड के सामने बैठ गए। धारा ने अपने दुपट्टे को सिर पर ओढ़ लिया !! देव ने उसे देखा, जालीदार दुपट्टे में धारा का चेहरा इतना प्यारा लग रहा था कि देव भगवान की पूजा करना भूल गया !
धारा ने आंखों के इशारे से उसे सामने देखने को कहा।

गार्ड, शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए बोला, " देव बाबू आपने वापस आकर गलती कर दी है..!! आप जानते हैं वे लोग आज भी खुले आम घूम रहे हैं..!!"

धारा और देव दोनो ही समझ नही पा रहे थे कि गार्ड किस बारे में और किसके बारे में बोल रहा था !! लेकिन धारा को सच्चाई नज़र आई उसकी बातों में..!!धारा ने बिना किसी घुमाव के स्पष्ट कह दिया, " देखिए हम नही जानते आप कौन हैं .? देव को कैसे जानते हैं..? पर सच्चाई ये है कि देव को कुछ भी याद नही है ! ये सब कुछ भूल चुका है!इसकी याददाश्त जा चुकी है !!"

गार्ड के चेहरे का रंग उड़ गया ! वो बोला, " फिर तो इन्हें अपने दुश्मनों का चेहरा भी याद नही होगा ! अगर कोई सामने आ भी जाता है तो ये पहचान ही नही पायेंगे।"

इस बार देव ने पूछा, "लेकिन मेरे दुश्मन हैं कौन..? और आप मुझे कैसे जानते हैं..??"
गार्ड ने कहा, " मैं आज जो कुछ भी हूँ वो आपकी वजह से ही हूँ देव बाबू..!! आपके एहसानों की वजह से ही मैं आज ज़िंदा हूँ..!!"

धारा और देव कुछ समझने की बजाय और ज्यादा कंफ्यूज हो रहे थे!! उन्हें कुछ भी समझ नही आ रहा था !!

धारा ने कहा, " देखिए , मैं देव को दोस्त हूँ बचपन की ! पर पिछले आठ-दस सालों से हमारा सम्पर्क बिल्कुल खत्म सा हो गया था ! अब ना ही देव अपने बारे में जानता है और ना ही मैं !! आप जहां से जितना भी जानते हैं इसके बारे में ! बताने का कष्ट कर सकते हैं क्या..? आपका बहुत बड़ा उपकार होगा हमपर..!!"

गार्ड, "ठीक है ! मैं आपको एक पता देता हूँ !! मैं शाम को जल्दी आ जाऊंगा !! फिर आपको सब कुछ बताऊंगा ! जितना भी मैं देव बाबू के बारे में जानता हूँ..!!"

"वैसे आप हैं कौन..? और हम देव के ही घर मे क्यों नही जा सकते..??" धारा ने पूछा।

गार्ड अपना परिचय देते हुए बोला, " मेरा नाम विमलेश जाधव है ! मुझे यहां गार्ड की नौकरी देव बाबू ने ही दिलवाई थी ! और रहने के लिए छत भी !! और रही बात देव बाबू के घर की, तो उसकी चाभी ना मेरे पास है और ना ही आप लोगो के पास होगी !! वैसे फिलहाल तो कॉलोनी में उनका घर ही सबसे सेफ रहेगा इनके लिए..!! और मैं प्रयत्न करता हूँ डुप्लिकेट चाभी की व्यवस्था हो जयर किसी तरह...!!"

धारा ने कहा, " आप किसी भी परह डुप्लिकेट चाभी ले आइए..!! हमे देव के घर से भी बहुत सारा ज़रूरी सामान लेना है..!!"

"ठीक है, मेरे एक दोस्त का काम है ताले-चाभी का ! मैं करता हूँ कुछ प्रबंध ! किंतु तब तक आप दोनो सतर्क रहना! और देव बाबू आप अपना चेहरा छुपा कर ही रखियेएगा भगवान के लिए..!!"



क्रमशः