भाग 15
उस दिन दोनों दोस्त (जवाहर और अरविंद)आपस में मिल कर बहुत खुश थे ;पुरानी याद ताजा हो गई थी ।
जवाहर जी भी अपने घर जा कर पत्नी रत्ना से सारी बात बताई,
"आज मै अरविंद के घर गया था।"
जवाहर जी ने रात को सोते समय कहा,
"मै तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं। जब से आया हूं अरविंद के घर से तभी से सोच रहा हूं पर तुम्हे फुरसत हीं नहीं है सुनने की।"
रत्ना बोली,
"मै अकेले ही पूरा घर संभालती हूं ,फुरसत कहां से मिलेगी। बोलिए क्या बात है ? पर थोड़ा जल्दी
बोलिएगा मुझे नींद आ रही है और सुबह जल्दी उठना भी है। आप सब को ड्यूटी भी तो जाना है।"
जवाहर जी बोले,
"हां ! हां ! जल्दी ही बोलूंगा तुम घबराओ मत। तुम अकेले घर संभालने में थक जाती हो, इसी लिए तो तुम्हारे लिए ही सोच रहा हूं।"
रत्ना हंस कर बोली,"क्या कल से रसोई संभालने का इरादा है ?"
"अरी ! भाग्यवान मै रसोई कि ही नहीं पूरे घर की जिम्मेदारी से ही आराम दिलवाना चाहता हूं।"
"वो तो मै मरूंगी तभी आराम मिलेगा।"
रत्ना बोली।
जवाहर जी ने रत्ना के मुंह पर हाथ रख दिया,
"शुभ शुभ बोलो। मै बाल और गोविन्द की शादी की बात कर रहा हूं और तुम उल्टी सीधी बात कर रही हो।"
रत्ना उठ कर बैठ गई , "क्या कहा ? जल्दी बताओ क्या बात है?"
"अरे ! थोड़ा धैर्य रक्खो बताता हूं।"
जवाहर बोले।
"वो आज मै अरविंद के घर गया था ,तुम्हे सुबह बताया था ना। रत्ना अरविंद की बेटियां हनी और मनी इतनी प्यारी है कि क्या बताऊं ? इसके साथ ही गृह कार्य में इतनी निपुण की भाभी और अरविंद के बिना कहे ही मेरे लिए इतनी सारी चीजें बनाकर लाई और आग्रह कर बिना खाए आने नहीं दिया। हर चीज इतनी स्वादिष्ट बनी थी कि क्या बताऊं ?"
"मै सोचता हूं अपने बाल और गोविन्द की शादी हनी और मनी से कर दूं। बहुत सुघड़ बहुएं मिलेगी तुम्हे।
उनका घर इतने करीने से सजा था कि मै बता नहीं सकता?"
पुनः जवाहर जी बोले,"अरविंद ने तुम्हे भी बुलाया है । मैंने अगले सन्डे तुम सब को ले कर आने का वादा कर दिया है।"
रत्ना खुशी से बोली,
"ये तो आप ने बहुत अच्छा किया।मै भी सावित्री बहन और बच्चों से मिलना चाहती हूं । बहुत समय हो गया मिले। हनी और मनी तो बचपन में भी सुंदर थी।
कितना अच्छा हो जो ये दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाए ? मुझे याद है हनी तो आपके बाइक से उतरती ही नहीं थी। बाल और गोविन्द के साथ मिल कर सारा दिन खेलती थी। ठीक है । हम सब सन्डे को अरविंद भाई साहब के यहां चलेंगे।"
रत्ना बोली,
"हां मैं जरूर चलूंगी । उन लोगों से मिलना भी हो जाएगा और मै भी हनी और मनी को देख लूंगी। फिर बाल ओर गोविन्द भी एक नजर देख लें तो उनका मन टटोलूं की वो क्या चाहते है।"
सारा कुछ तय हो गया । रत्ना ने बच्चों से भी बता दिया कि अरविंद जी के यहां चलना है, सन्डे को तैयार रहें ।
पहले तो दोनों ने मना किया कि एक दिन मिलता है छुट्टी का आराम करेंगे। पर जब मां ने कहा कि चलना हीं होगा तो दोनों तैयार हो गए ।
सुबह से ही अरविंद जी उत्साहित थे कि दोस्त परिवार सहित मिलने आ रहा है। वो स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे।
उनकी सावित्री भी हनी को विशेष हिदायत दे रही थी, सब की पसन्द को ध्यान में रख कर कि वो लोग फीका खाना नहीं पसन्द करते ,अच्छे से मसाले और मिर्च डाल कर बनाए।
रत्ना और जवाहर को अरविंद जी की पत्नी सावित्री के हाथ के रसगुल्ले और दही बड़े बहुत पसंद थे । सावित्री ने सहयोग किया पर बनवाया हनी से ही । सावित्री के हाथ बहुत सधे हुए थे रसोई में । वो पाक कला में बेहद कुशल थी।
यही गुण उसने अपनी बेटियों को भी सिखाया था। मां के सारे गुण हनी और मनी में थे।
करीब ग्यारह बजे जवाहर जी बाल,गोविन्द और रत्ना के साथ अरविंद जी के घर पहुंचे।
बड़े गर्मजोशी से अरविंद जी सब को घर के अंदर ले आए। सब के ड्राइंग रूम में बैठते ही सावित्री भी अंदर से आई और जवाहर जी को नमस्कार कर रत्ना के गले लग गई।
सावित्री और रत्ना एक दूसरे से मिल कर खड़ी खुश थी। तभी बाल और गोविन्द दोनो भाई आए और सावित्री के पांव छुए, गोविंद जो थोड़ा चंचल था बोला,
"अरे आंटी..! हम भी है! थोड़ा सा प्यार हमें भी दे दीजिए।"
सावित्री को अपनी गलती का अहसास हुआ,
"वो बोली,
"अरे ! मैंने जब देखा था तो तुम दोनों (हाथ से इशारा करते हुए) इत्ते इत्ते से थे मैंने पहचाना नहीं। " सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराकर बोलीं,
" सदा खुश रहो मेरे बच्चों ।'
कुछ ही देर में चाय और नाश्ता आ गया।
नाश्ता रख कर वापस जाती हनी और मनी को भी रत्ना ने आग्रह कर रोक लिया और अपने साथ बिठा लिया।
परी तो वैसे भी सब से जल्दी ही घुल मिल जाती थी। उसका स्वभाव भी ज्यादा संकोची नहीं था।
सभी साथ बैठ कर बातें करते हुए चाय नाश्ते का आनंद लेने लगे ।
सावित्री और रत्ना इतना खो गई बीते समय की चर्चा में की उन्हे बाकी सब की आवाज से असुविधा होने लगी ।
सावित्री बोली,
"चलो रत्ना बहन हम अंदर वाले कमरे में बैठते है ।"
इतना कह कर सावित्री रत्ना को लेकर अंदर के बेड रूम में आ गई, और दोनों अपना सुख दुख साझा करने लगी।
इधर अरविंद जी को जवाहर जी ने शतरंज कि बाज़ी की चुनौती दे दी कि चलो एक एक बाज़ी हो जाए ।
वे दोनों शतरंज लेकर बैठ गए, और अपने खेल में मशगूल हो गए ।
हनी ,मनी और परी तथा बाल गोविन्द की जोड़ी बात चीत में लग गई।
कुछ देर बाद हनी उठ कर रसोई में चली गई। जो कुछ बाकी था बनाना उसे भी तैयार कर खाने की टेबल लगा दी। फिर आवाज देकर मनी को बुलाया और कहा, "मनी..! जा सब को आवाज देकर बुला ले खाना तैयार है, और काफी समय भी हो गया है सब को भूख लगी होगी।"
मनी गई मां और रत्ना आंटी को बुलाने और परी पापा और जवाहर अंकल को बुलाने चली गई।
जब मनी ने कहा,
"मां..! चलिए आंटी को लेकर खाना लग गया है।"
तो रत्ना ने आश्चर्य से कहा,
"अरे... ! आप तो ना ही यहां से उठी ना ही कुछ बताया और बच्चियों ना पूरा खाना तैयार कर लगा भी दिया। "
जवाब में सावित्री मुस्कुरा कर बोली,
"रत्ना बहन..! मैंने अपनी बेटियों को सब कुछ सिखाया है , इन्हे सर्व गुण सम्पन्न बनाने में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी पर देखो ना अब इन सब की कोई कद्र ही नहीं है जहां भी इनके विवाह की बात करने जाते है सब लड़के वाले बाकी बाते बाद में पहले दहेज़ की ही बात करते है और मांग इतनी ज्यादा होती है कि हम लोग पूरा नहीं कर सकते है। बच्चो की पढ़ाई में इतना खर्च हो जाता है कि कुछ बचत ही नहीं हो पाई। अब अनमोल की पढ़ाई में बहुत खर्च हो जाता है।"
जवाब में रत्ना ने कहा,
"बहन..! चिंता मत करो, देखना बच्चियों की शादी घर बैठे ही हो जाएगी।
सावित्री लंबी सांस लेकर बोली,
"पता नहीं रत्ना बहन..! बच्चियों के भाग्य में क्या लिखा है ; मुझे तो बहुत चिंता होती है।"
रत्ना ने सावित्री को दिलासा देते हुए कहा,
"सब अच्छा ही होगा ; चलो खाना लग गया है वरना ठंडा हो जाएगा बच्चियों ने बड़ी मेहनत से बनाया है।"
इसके बाद दोनों डाइनिंग टेबल के पास आ गई खाना लग चुका था ।
अरविंद जी भी जवाहर के साथ बैठे थे । बाल और गोविन्द भी आ गए थे ।
हनी गरमा गरम रोटियां सेक कर देती और मनी लाकर सब को देती जाती ।
सभी ने तारीफ कर कर खाना खाया। जवाहर जी इशारों में रत्ना से पूंछ रहे कि ' मैंने झूठ तो नहीं कहा था।'
रत्ना ने भी सहमति में सिर हिला कर हां कर दिया।
सावित्री ने बाल गोविन्द के लिए रसगुल्ले और दही बड़े पैक करवा दिए , क्यों की उन्हे बहुत पसंद आया था ।
जवाहर जी घर आ गए और सब को बोला
"चेंज कर मेरे बेड रूम में आओ ।"
सब चेंज कर थोड़ी ही देर में आ गए।
जवाहर जी ने बिना किसी भूमिका के कहना शुरू किया।
"बाल और गोविन्द…! बेटा तुम दोनों ध्यान से सुनो, हनी और मनी तुमको कैसी लगी ? "
दोनों एक स्वर में बोले,
"ठीक हैं पापा ..! पर आप ये क्यों पूछ रहे है?"
"मै तुम दोनों की शादी उनके साथ करना चाहता हूं । इतनी अच्छी और जानी समझी लड़कियां दूसरी नहीं मिलेगी।"
जवाहर जी बोले ।
बाल और गोविन्द दोनो ये कहते हुए उठ गए कि जैसा आपको उचित लगे करिए इसमें हमसे पूछने कि क्या जरूरत है?"
आगे क्या अरविंद जी की प्रतिक्रिया हुई जब जवाहर की ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने की बात की