कॉफ़ी विद कोरोना Mahaveer Prasad द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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कॉफ़ी विद कोरोना

मेरे प्यारे-प्यारे पाठकों! आपका स्वागत है! मैं हूँ आपका अपना मुरारी लाल। क्या!ऽऽऽ आप मुझे नहीं जानते। कोई बात नहीं। १३५ करोड़ लोगों में सब सबको जानें यह जरूरी तो नहीं।पर मैं आपकी जानकारी के लिए बतादूँ , मैं एक अप्रकाशित महान पत्रकार हूँ। और सुप्रसिद्ध कोरोना जी ने मुझे इस धरती पर अपना पहला इंटरव्यू देने के लिए चुना है। आप सोच रहे होंगे कि मैं महान पत्रकार हूँ तो आज तक आपने मेरा नाम क्यों नहीं सुना। आप भूल कर रहें है।जब मैं प्रकाशित ही नहीं हुआ तो आप मेरा नाम कैसे सुन सकते थे। मैं प्रकाशित ही नहीं हुआ, तो महान कैसे हो सकता हूँ। हाँ, आपकी इस बात में दम है। कल तक यह मुझे भी पता नहीं था। बस मैं इधर-उधर भटकता रहता था और कोई अज़ीब बात नज़र आती तो आकर भैया को बता देता था। भैया इसे चाय-पकौड़े की जुगत समझकर सुन लिया करते थे। मुझे अपने निठल्लेपन का अहसास न हो, इसलिए एक-दो तर्क-कुतर्क भी कर लिया करते थे। पर कल जब अचानक कोरोना जी ने मुझे आकर कहा कि मैं अपना मैडन इंटरव्यू तुझे दूँगा, तो मैं भी आपकी तरह आश्चर्य में पड़ गया।
मैंने कहा, कोरोना भाई......... बस कोरोना का नाम लिया और वह भड़क गया! बोला यार तुम धरती वालों की यह बड़ी हिमाक़त है। तुम जानते नहीं हो बैर की पूँछ और सर्वज्ञाता बने फिरते हो। जिसको जो चाहा नाम दे देते हो। लम्पट को महात्मा कह देते हो और महात्मा को लम्पट घोषित कर देते हो। कोरोना का विकराल रूप देख कर मैं काँप गया। काँपने का कारण भी था। एक तो साक्षात मौत का स्वरूप और ऊपर से क्रोधित। मैंने डरते-डरते कहा कोरोना भाई मैंने तो ज्ञानियों से जो नाम सुना था उसी से आपको पुकार लिया। ज्ञानी माई फुट! कोरोना नें उपहास के साथ कहा। फिर बोला- “ देख मुरारी मैं कोई कोरोना-वोरोना नहीं हूँ। धरती की महामूर्ख मंडली मेरे बारे में तरह-तरह की अफ़वाहें फैला रही है। इसलिए मैंने तय किया है कि मैं अपने बारे में लोगों को खुद बताऊँगा। इसके लिए धरती के किसी महान पत्रकार को इंटरव्यू दूँगा। और इस इंटरव्यू के लिए मैंने तुम्हें चुना है।”
मैंने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की। जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू। फिर बड़ी विनम्रता और मासूमियत के साथ बोला- को.... नहीं! नहीं! बड़े भाई , इस धरती पर एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े, ख़ूबसूरत और दिग़ज्ज पत्रकार हैं। बड़े- बड़े संस्थानों से लाईव प्रसारण करते हैं। जो एकसाथ पूरे विश्व में दिखाई देते हैं। उनको छोड़ कर आप मुझे इंटरव्यू क्यों दे रहे हैं। मेरा लिया इंटरव्यू तो कोई छपेगा भी नहीं! पहले से ही हज़ारों काग़ज़ ख़राब कर चुका हूँ। इबारत अव्वल तो सम्पादक की मेज़ तक पहुँचती ही नहीं है और कभी पहुँच भी जाये तो या तो सम्पादक के बहते नाक को पौंछने के काम आती है या फिर उनकी मेज़ पर फैली चाय को साफ़ करने के काम आती है। आख़िर एकदिन भैया ने भी कह ही दिया कि यार क्यों काग़ज़ ख़राब करता है, तेरी यह आग उंढेल कर कोई भी अपना अख़बार नहीं जलायेगा। तब से अपनी पत्रकारिता केवल भैया के कानों तक सीमित है। आप क्यों मेरे काग़ज़ ख़राब करते हो। मुझे इंटरव्यू देकर तो आप जनता को अपने विचारों से मरहूम ही करोगे।
कोरोना बोला- देख मुरारी तू जिनको पत्रकार कह रहा है, वे स्याही फ़रोस हैं। वे अपनी कलमों से मूर्खों को महिमामंडित करते हैं और सज्जनगणों का मुँह पोतते रहते हैं। जिसको तू लाईव कह रहा है, वह मृतकों का मजाक है। मृत-बुद्धि के लोग टीवी के पर्दों की ओर मुँह फाड़ते रहते हैं और स्टूडीओ में बैठे रोशनाई फ़रोश उनकी मूर्खता की भट्टी पर अपने कैरियर के पकौड़े तलते रहते हैं। मैंने तेरी यथातथ्य पत्रकारिता वर्षों तक देखी है। तेरे जैसे रात को रात और दिन को दिन कहने वाले पत्रकार सदियों में पैदा होते हैं। रही बात छपने की, तो इसबारे में तुम्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।अब मातृभारती एप तेरे जैसे लोगों को सीधे अपनी एप पर रचनाएँ प्रकाशित करने की सुविधा देती है।
आख़िर मुझे कोरोना का इंटरव्यू लेना पड़ा। करन थापर की तरह न तो राउंड टेबल का ढकोसला था। न ही जैसा आप सोच रहे होंगे वैसे मेरे सामने काफ़ी का कोई ख़ूबसूरत कप रखा था। मैं खाट पर लेटा हुआ था और कोरोना मेरी खुली छाती पर बैठा हुआ मेरे नाक और मुँह की तरफ़ देख रहा था। मैंने उचक कर एक मास्क उठाया। कोरोना खिलखिलाकर हँसने लगा। बोला- डर मत मैं तेरी सूखी हुई देह में नहीं घुसूँगा। तू तो बस इंटरव्यू शुरू कर।
मैंने खंखार कर गला साफ़ किया और मँजे हुए पत्रकार की तरह कोरोना की नाराज़गी से बचने का हर उपाय करते हुए बोला- हाँ तो बड़े भई सबसे पहले आपका परिचय हो जाए।
कोरोना: देख मुरारी मेरे से रिस्ता गाँठने की कोशिश मत कर। नहीं तो कुंवारा तो पहले ही है, भैया भी घर में नहीं घुसने देगा। रही मेरी बात, तो मैं कोई कोरोना-वोरोना नहीं हूँ। मैं देवदूत हूँ।
मुरारी: देवदूत?
कोरोना: हाँ। देवदूत। तुम क्या सोचते हो, देवदूत हमेशा चारभुजा वाले, सुनहरी वस्त्रों वाले ही होते हैं। वैसे स्वरूप मेरा भी चमकदार है। तुम्हारे देवदूतों की तरह मैं भी थोड़ा-बहुत हवा में उड़ लेता हूँ।
मुरारी: तो हे! देवदूत इस धरा पर आपके अवतरण का क्या प्रयोजन है?
कोरोना: मुरारी तूने यह तो सुना ही होगा की जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है तब-तब दुष्टों का दमन करने और सज्जनों का परित्राण करने के लिए मैं अवतरित होता हूँ।
मुरारी: क्यों नहीं भगवन! महाभारत में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपने श्रीमुख से यही तो कहा था।
कोरोना: हाँ। कहा था। पर तुम्हारे पोंगा पंडितों ने न तो तुम्हें धर्म का अर्थ समझनें दिया, न ही यह जानने दिया कि वो निराकार किसी भी रूप में प्रकट हो सकता है। यह जरूरी नहीं है कि वो हमेशा ही चार भुजा युक्त और शंख, गदा, चक्र और धनुष ही लेकर प्रकट होगा। और हाँ धर्म का अर्थ भी वो नहीं है जो अपनी अर्थसिद्धि के लिए पोंग़े पंडित तुमको समझाते हैं।
मुरारी: तो भगवन! आपकी नज़र में धर्म क्या है?
कोरोना: मेरी नज़र की ज़रूरत ही नहीं! आपका अपना ऋग़वेद पढ़िए। उसमें साफ़-साफ़ लिखा है। यह सम्पूर्ण सृष्टि एक अदृश्य नियम से संचालित है। जिसका नाम है- ऋत। यही वह नियम है, जो सृष्टि के पदार्थों में संतुलन बनाए रखता है। इस नियम का नाम ही धर्म है। इस धर्म के विचलन से ही सृष्टि अशांत होती है और मेरे जैसे दूत प्रकट होते हैं।
मुरारी: हे! देव, आपके प्रकट होने से यह संतुलन कैसे क़ायम होता है?
कोरोना: अरे मूर्ख! तू जान कर भी अनजान क्यों बन रहा है। तूने देखा नहीं, तुम लोग मेरे डर से अपने दड़बों में घुस कर बैठ गए हो। और परिणाम देखो! जिस दिल्ली में साँस लेना भी दुर्भर था, आज वह कितनी स्वच्छ हो गई है। नदियों में स्वच्छ जल कल-कल करके बहने लगा है। पेड़ों पर पक्षी कलरव करने लगे है। सोचो! वर्षों से तुम जिस प्रकृति को नष्ट-भ्रष्ट करते रहे हो, वह चन्द दिनों में मुस्कुरा उठी है।
मुरारी: तो देव! क्या आपके प्रकट होने का एक मात्र यही उद्देश्य था?
कोरोना: नहीं! मेरे दो उद्देश्य और भी थे।
मुरारी: महात्मन! यदि कष्ट न हो तो उनका भी खुलासा कर दीजिए।
कोरोना: क्यों नहीं! वो भी सूनलो। इस धरती के मरणधर्मा लोगों को अपने ज्ञान का इतना घमंड हो गया था कि वे आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स और डिज़ाइनर बच्चों की बातें करने लगे थे। उनको यह बताना बेहद ज़रूरी हो गया था कि तुम्हारा ज्ञान बाल के दो हज़ारवें हिस्से के बराबर एक निर्जीव अणु से टक्कर लेने की भी हैसियत नहीं रखता है, इसलिए अपने ज्ञान पर घमंड मत करो। उसका उपयोग पीड़ित जीवों का संताप हरने, उनको सुख पहुँचाने और उनकी संरक्षा के लिए करो।
मुरारी: और भगवन दूसरा उद्देश्य?
कोरोना: मेरा दूसरा उद्देश्य उन महामूर्खों को अक़्ल देने का था जो हज़ारों आकाशों में से एक, इस छोटे से आकाश के नीचे रहकर स्वयं को सृष्टि से ऊपर समझने लगे थे। कहते थे हमने परमाणु बंब बना लिया है! हाइड्रोजन बंब बना लिया है! हम पूरी दुनियाँ को नष्ट कर सकते हैं, ख़रीद सकते हैं! हम महाशक्ति हैं! मैंने उनको उनकी औक़ात दिखाई है। उनको बताया है कि तुमको घुटनों पर लाने के लिए एक ज़र्रा काफ़ी है। इन तथाकथित महाशक्तियों ने तीसरे विश्व को नीचा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी थी। मैंने उनके ज्ञान और विज्ञान की पोल खोली है ताकि तीसरा विश्व भी सिर उठाकर कह सके कि महामारियों का मुक़ाबला हम भी तुमसे बेहतर कर सकते हैं।
मुरारी: मगर हे स्वयंभू देवदूत! आपके इस उद्योग से तो लाखों निर्दोषों की जान जा चुकी है, उनका क्या दोष था?
कोरोना: था। उनका भी दोष था। महाभारत की कहानी तो तूने सुनी ही होगी। विकार केवल दुर्योधन में था किंतु युद्ध में कितने महारथी मरे? क्यों? क्योंकि वे उसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा सके। उसके पापों के भागीदार बने रहे। रामायण की कहानी तो तू जनता ही होगा? कितने निर्दोष मरे? दोषी तो केवल रावण था!
मुरारी: मगर तीसरे विश्व के लोग भी तो मरे हैं।
कोरोना: हाँ। पर बहुत कम । जब आग लगती है तो दोष-निर्दोष की व्याख्या नहीं होती। मोठ के साथ घुन भी पिसता है।
मुरारी: ख़ैर जो हुआ सो हुआ, अब आप विदा कब होंगे?
कोरोना: मूर्खतापूर्ण बात मत करो! कल क्या होगा, यह स्वयं सृष्टिकर्ता को भी पता नहीं है। यदि राम और कृष्ण को पता होता कि उनको धरती पर इतने कष्ट भोगने होंगे तो वो क़तई अवतार नहीं लेते। यदि सृष्टिचक्र उनके हाथ में होता तो वे उसको स्थिर कर देते। न राम का वनगमन होता, न सीता हरण होता, न दशरथ का मरण होता! मेरा प्रकट होना सत्य है, मेरा अस्तित्व सत्य है, पर मेरा जाना प्रकृति के हाथ में है, ऋत के हाथ में है। मेरा काम हो गया। पर मेरे जाने का आपको इंतज़ार करना होगा।
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