दो परिवारों की कथा Satish Sardana Kumar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दो परिवारों की कथा


उसने घर के खुले दरवाजे में एक पैर रखा और अपना स्कूलबैग वहीं से इस अंदाज में उछलकर फेंका कि बैग आंगन को पार करता हुआ बरामदे में रखे तख़्त पर जाकर गिरा।
उसे ऐसा करते देख उसकी मां ने देखा और वहीं बैठी बैठी चिल्लाई,"ठहर जा कमीने!अभी तेरी हड्डियां सेंकती हूं।"
उसने मां की धमकी सुना अनसुना किया और गली भागकर पार कर गया।
बच्चे का नाम गोपाल और उसकी मां का नाम शकुंतला था।लेकिन मां सब जगह कुंतो और बेटा गोपी के नाम से जाना जाता है।
गोपी की माँ कुंतो उस वक़्त अपनी घनिष्ठ सहेली दिलजीत कौर के साथ बैठी हुई एक दिन पहले देखी गई फ़िल्म की हीरोइन नंदा की अदाओं और संवादों पर गंभीर चर्चा कर रही थी।
दिलजीत कौर जिसके निकनेम जीतो है,उसका बेटा दस साल का सन्नी गुस्से से भरा हुआ आया और आव देखा न ताव अपनी मां को बालों से पकड़कर घसीटने लगा।उसकी मां जीतो चिल्लाई,"ठहर जा कुत्ते!तुझे देती हूं बदतमीजी का परशाद!"कहकर तड़ातड़ उसके दस बारह चांटे जड़ दिया।
चांटे की मार से लाल हुए गालों के साथ रोता हुआ सन्नी कहता जा रहा था,"इधर बातें करने की आग लगी है।रोटी नहीं बनाई है।मुझे भूख लगी है।"
यह सुनकर कुंतो को ममता हो आई।वह कहने लगी,"आ मैं देती हूं रोटी।तू रो मत!!"
"मैं नहीं खाता किराडों के घर की रोटी।दाल पीने वाले बाणिये!मेरी झाई को खराब कर रखा है।"
यह सुनकर कुंतो का चेहरा फक पड़ गया और जीतो ठठाकर हंसते हुए बोली,"बिल्कुल अपने वाहियात बाप की बोली बोलता है कमीना!चल!!"
जीतो और उसका बेटा सन्नी तो चले गए ।कुंतो सोच में पड़ गई।कितना जहरीला होता जा रहा है समाज।जीतो का पति हरजीत सिंह जिसे सब लोग जीते के नाम से पहचानते हैं,इतना मंदा बोलता है हमारे बारे में।
जीते का परिवार पहले कांग्रेसी था।उसके पिता हरनेक सिंह उर्फ निक्का बाकायदा कांग्रेस के कार्ड होल्डर मेम्बर थे और हमेशा सफेद कुर्ता पायजामा और सफेद ही पगड़ी पहनते थे।लेकिन उनका बेटा हरजीत सिंह उर्फ जीते नीली पगड़ी पहनने लगा था।यह सन 1979 था और थोड़ी थोड़ी आग सुलगने लगी थी।चौरासी अभी पांच साल दूर था।
जीते भी इसी शहर का था कुंतो भी इसी शहर की।उनकी स्कूलिंग भी आसपास ही हुई थी।इस नाते से वह कुंतो को बहन कहता था।इस वजह से कुंतो जीतो को परजाई कहती आई थी।
जीते की मेन बाजार में मैले और चिट्टे लठ्ठे की दुकान थी।समय की मांग के हिसाब से एटी ट्वेंटी और टेरीकॉट भी रखने लगा था।नितनेम से गुरुद्वारा जाता और पंथ की सेवा में भी आगे आगे रहता।
जब से अकाली लहर आई थी उसे कांग्रेस दुश्मन पार्टी के
लगने लगी थी।इससे पहले भी वह कांग्रेस का कोई मुरीद न था।कॉलेज के वक्तों में वह कम्युनिस्ट था।
कुंतो के पेट में बात न पची।रात को डबल बेड पर पति के संग लेटी तो उसने दिन की घटना पति गुरजीत लाल को कह सुनाई।
सुनकर गुरजीत लाल बोला,"इन उल्टी कंघी करने वालों से दूरी बनाकर रखना बेहतर है।उल्टे जुन्डे उल्टी मति!!कहकर वह करवट बदलकर लेट गया लेकिन कुंतो को बहुत देर तक नींद न आई।
अगले दिन रोज की भांति जीतो आई और कुंतो से बहन बहन करके हँस हँस कर बतलाने लगी।कुंतो उसके साथ न तो रोजाना जैसी स्वाभाविक रह पाई न ही कृत्रिमता से भरा व्यवहार कर पाई।उसके व्यवहार के रूखेपन को जीतो ने भाँप लिया और जल्दी ही बहाना बनाकर वापिस चली गई।फिर बहुत दिन तक उधर न आई।
"मम्मी!मम्मी!!"एक दिन गोपी रोता हुआ आया उसका माथा खून से सना था।
"क्या हुआ!क्या हुआ।"उसे इस हालत में देख कुंतो घबरा गई।
"उस जूथड़े ने मुझे मारा है।"गोपी रोता हुआ कह रहा था।
उसकी बात सुनने और समझने का समय न था।वह उसे लेकर भागकर पड़ोस में रहने वाले आर एम पी डॉक्टर पर गई।
डॉक्टर ने तीन टांके लगाकर पट्टी कर दी।एक इंजेक्शन भी दिया।खून बहुत बह गया था।गोपी दवा के असर से सो गया था।
कुंतो सोचने लगी।आखिर किसने इतनी बेरहमी से उसे मारा है।कोई बच्चा था या जवान!गोपी उठे तो पूछूं।
यह गोपी भी तो स्कूल से आने के बाद कहां कहां किन गलियों की खाक छानता है।पूरा नंबरी आवारा हो गया है।
रात में गुरजीत घर आया तब तक भी गोपी सो रहा था।बेटे की हालत देख उसे पत्नी पर क्रोध आया।उसने उसे क्यों नहीं बुला भेजा।आखिर पता तो चलना चाहिए यह किसकी हरकत है।
"अब वह सो रहा है।सुबह पूछेंगे।आप रोटी खा लो।दूध भी ठंडा हो रहा।कल की कल देखी जाएगी।"कुंतो उबासी लेते हुए बोली।उसे जोरों की नींद चढ़ी थी।
पत्नी की बात सुनकर गुस्से से उफनता गुरजीत लाल शांत हो गया।
सुबह गोपी के जागने के बात पता चला उसके माथे पर ईंट मारने वाला और कोई नहीं जीतो का लड़का सन्नी है।
यह रहस्योद्घाटन होने के बाद कुंतो गोपी का बाजू पकड़कर बोली,"चल!तेरी मामी को दिखाती हूं उसके बेटे की करतूत!"उसे बहुत तेज क्रोध हो आया था।
"उसके पास जाने की जरूरत नहीं।तू आराम से बैठ।मैं इसे लेकर थाने जाता हूं।इन लोगों की हिम्मत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।"
गुरजीत गोपी को लेकर थाने चला गया।पीछे अकेली बैठी कुंतो सोच रही है कि गली मोहल्ले की बात के बीच में थाना पुलिस को लाना ठीक है या गलत!
जाने यह बात क्या रुख ले।वह हरजीत भाई का गुस्सा जानती है।बालकों की बात में बड़ों के रिश्ते कहीं खराब न हो जायें।
बच्चे तो फिर हिलमिल जाएंगे लेकिन क्या कभी जीतो उसके पास पहले की तरह बैठ पाएगी?
गुरजीत ने थाने जाकर जाने क्या कहा या क्या किया कुंतो को कुछ पता नहीं चला।अगले ही दिन सुबह- सुबह ही जीतो रोती हुई आई और कुंतो के गले लगकर फफक पड़ी।
"बहन!जीजा ने यह अच्छा नहीं किया।मेरे सन्नी को पुलिस वालों ने बेल्ट से पीटा।उसका बाप गुस्से से उफन रहा है।जीजा ने परिवारों में फाड़ डाल दी।कोई बात थी तो तू मुझसे कहती मैं सन्नी को दो थप्पड़ लगाती।"
कुंतो अपनी प्रिय सहेली का रोना देखकर एक बारगी द्रवित हो गई।फिर संभलकर बोली,"गोपी का माथा फट गया था।दो टांके आए उसके।इतना खून बहा कि मेरे तो हाथ पांव फूल गए।उसके पापा का गुस्सा नाजायज नहीं है।"
"हां, मैं जानती हूं सन्नी हुछरा लड़का है।लेकिन अपने पापा की जान है।उसके पापा इस घटना को कभी भूलेंगे नहीं।"जीतो आंसू पोंछती हुई बोली।
"कोई भी बच्चा अपने माँ- बाप के लिए दोप्यारा नहीं होता।तुम जीते भाई को समझाओ।मैं तेरे जीजा को समझाती हूं।बात को यही खत्म करो।"
"कोशिश करती हूं।पर लगता मुश्किल ही है।तुम जानती हो अपने भाई को।बड़ा जहरी है,मैं ज्यादा कुछ कहूंगी तो मेरे ही दो जड़ देगा।"कहकर जीतो आंसुओं के बीच मुस्करा दी।
दोनों स्त्रियों ने अपने पतियों को बहुतेरा समझाया।लेकिन वे न समझे।परिवारों के बीच एक कड़छी सब्जी की सांझ भी खत्म हो गई।
औरतें अपना मन मारकर अपने घरों में कैद रही।राह चलते एक दूसरे को देखकर मुस्करा भर लेती थी।राम कलाम बंद था।सन्नी और गोपी इस घटना के बाद घनिष्ट मित्र बन गए थे।एक दूसरे के मुँह में बुर्कियाँ देते थे।
1984 का मई महीना आ गया था।जब सिखी और सरकार में सीधे सीधे ठन गई।बीच में पिसे बेकसूर लोग।
एक और आठ जून को हरिमंदिर साहब में जो हुआ उसे दुनिया ने भौंचक होकर देखा।जो बेअदबी हुई,जो मर्यादाएं टूटी उन्होंने मुग़लों को भी मात दे दी।
मानवता सिसकती रही और जिंदा लोग मुर्दे बनकर गिरते गए,गिरते गए।
तनाव आम जनता के चेहरे पर चिरस्थायी चिन्ह बनकर पसर गया था।
जहां सिख अल्पसंख्यक थे वहां वे डरे रहते।जहां हिंदू कम तादाद में थे वे पलायन की सोचने लगे।
गुरजीत और हरजीत अभी भी एक दूसरे से बोलते न थे।इस वजह से जीतो और कुंतो भी कभी इकट्ठे नहीं बैठती।दिल तो बहुत करता,लेकिन अपने पतियों से डरती।मर्द का क्या पता!कब हाथ छोड़ दे।
इस उथल पुथल के माहौल में भी गोपी और सन्नी एक ही मोटरसाइकिल पर कॉलेज जाते।दोनों पढ़ाई और स्पोर्ट्स में एक जिस्म और दो जान होकर भाग लेते।दोनों इंटर यूनिवर्सिटी खेलने पटियाला इकठ्ठे गए।सन्नी क्रिकेट में मैडल लाया और गोपी कबड्डी में।दोनों के मां बाप के सीने गर्व से फूले।लेकिन अलग अलग ही।बच्चों की दोस्ती से भी उनके दरम्यां की अदृश्य दीवार न टूटी।
जैसे जून आया था और कहर लाया था उससे भी कहीं तेजी से अक्टूबर आया और कयामत बरपा हो गई।इंदिरा गांधी को उसके गार्डों ने ही मार दिया।अगले एक हफ्ते तक पूरा देश सुलग उठा।
उनका शहर भी अछूता न रहा।खबर मिली की जीते की कपड़े की दुकान को किसी ने आग लगा दी।पूरी दुकान धू धू कर जली।किसी ने आग भी बुझाने नहीं दी।माल से भरी दुकान राख के ढेर में तबदील हो गई।
शहर में दंगे के माहौल से उनका मुहल्ला अभी अछूता था।क्योंकि एक हरजीत के घर को छोड़कर सभी घर हिंदुओं के थे।
इंदिरा गांधी की हत्या के कोई चार रोज बाद एक सिख किसान अपने गांव से उनके मुहल्ले में तूड़े से भरी ऊंटगाड़ी लेकर आया।किसी भैंस पालक ने अपने पशुओं के लिए तूड़ा खरीदा था शायद।बदनसीबी से वह दंगाईयों में घिर गया।भीड़ ने उसकी बुरी तरह से पिटाई की और उसके कपड़े चीर कर तार तार कर दिए।उसकी पगड़ी कहीं जा गिरी और उसके लंबे केश खुलकर बहते खून से लाल होकर उसकी दाढ़ी में ही चिपक गए।
कुंतो के घर का दरवाजा बंद था लेकिन बाहरी दीवार अपेक्षाकृत कम ऊंची थी।भीड़ से बचने के लिए वह बदहवास भागता हुआ उनकी दीवार पर चढ़कर आंगन में कूद गया।उसके वीभत्स रूप को देखकर कुंतो ने जोरों की चीख मारी और अंदर की तरफ भागी।बरामदे में वर्जिश करते हुए गोपी ने उसे देखा और जफ्फा मारकर गिरा लिया।
सिख गिड़गिड़ाते हुए हाथ जोड़ने लगा,"न मारीं!छोटे वीर,न मारीं।"
उसके जुड़े हाथों और रिरियाने का सकारात्मक असर उस पर पड़ा और गोपी का उठा हाथ वहीं रुक गया।
गोपी का ध्यान उसके फटे कपडों और बहते खून पर गया।
"हमारे घर क्यों कूदा?"
"मेरे पीछे भीड़ लगी है।मुझे मार देंगे!"वह रिरियाता हुआ बोला।
"क्यों?क्या किया है तुमने!"
"कुछ नहीं।मैं तो गरीब काश्तकार हूं।तूड़ा लेकर आया था इस आस में कि चार पैसे बन जाते।ये लोग पता नहीं कहां से आए और मुझे मारने लगे।"वह डर से कांप रहा था।उसके खून अभी भी बहकर फर्श पर जमा होने लगा था।
कुंतो कांपती टांगों से कमरे के दरवाजे से झांक रही थी।
"आ जाओ,मम्मी!कोई गरीब है बेचारा।इसको पहनने के लिए कोई पुराना कपड़ा दो और पोंछने के लिए कोई साफा वगैरह भी।"
यह सुनकर कुंतो बाहर आ गई और आंगन में तार पर टंगे गोपी के पापा के कपड़े उस सिख काश्तकार को दिए।
गोपी ने उसे बाथरूम दिखाया।
वह सिख बाथरूम में घुसा तो गोपी ने मां से बेटाडीन और डेटोल के साथ थोड़ी रुई देने को कहा।
सब सामान देकर कुंतो किचन में अचानक आए मेहमान के लिए हल्दी वाला दूध बनाने के लिए घुसी तो गली में शोर सुनाई दिया।
कोई दरवाजा पीट रहा था।कुंतो की टांगे फिर से कांपने लगी।
गोपी दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ा तो कुंतो चिल्लाई,"खबरदार!दरवाजा न खोलना!"
"क्यों?हमें क्या डर है।"गोपी बोला और दरवाजा खोल दिया।
हाथों में लाठियां लिए दस बारह युवक खड़े थे।
"गोपी भैया!कोई सरदार इधर आया है?"
"न!",गोपी ने साफ झूठ बोला।
"घर की तलाशी लो!"एक युवक पीछे से बोला।
गोपी ने बोलने वाले युवक का कॉलर पकड़ा और गुस्से में गरजा,"क्या कहा?मेरे घर की तलाशी।लाशें गिर जाएंगी,लाशें।"
"गोपी भाई!आप तो नाराज हो गए।आप दरवाजा बंद कर लो।किसी को घुसने मत देना।"आगे खड़ा युवक खिसिया कर बोला।
गोपी भैया ने एक बार कॉलेज में उसे पिटने से बचाया था।
गोपी दरवाजे को बंद करने ही जा रहा था कि उसने देखा जीते अंकल के दरवाजे पर भीड़ खड़ी है और उनका दरवाजा तोड़ने पर आमादा है।
वह अपने घर के दरवाजे को बाहर से सांकल लगाकर आगे बढ़ा और जीते के दरवाजे पर जमे दंगाईयों को ललकारा।
"खबरदार!मेरे मामा का घर है।भाग जाओ यहां से!"
"सरदार तेरे मामे कब से हो गए?इनको नहीं छोड़ेंगे,इन्होंने इंदिरा को मारा है!"एक युवक ने गुस्से से जीते के दरवाजे पर कुल्हाड़ी का वार किया।
"इन्होंने नहीं।वो कोई और थे, ये तो बेचारे कपड़ा व्यापारी हैं।ये तो यहीं थे जिस दिन इंदिरा मरी!"गोपी ने यह कहकर कुल्हाड़ी उसके हाथ से छीनकर फेंक दी।
"इन जैसे ही सरदार थे वे हत्यारे!"कुल्हाड़ी छिनने पर बिफरा युवक चीख कर गोपी के सामने आ गया।गोपी की कद काठी के सामने वह दुबला सा युवक पिद्दी सा लग रहा था।
गोपी ने उसके कानों तक बढ़ी हुई लटों को हाथ से पकड़कर उसे झिंझोड़ दिया।
"बेवकूफ न बन!अपने राह लग।क्यों खाल उधड़वाने पर तुला है।भाग जा !"यह कहकर गोपी ने उसे जोरों से धक्का दिया।वह दूर जाकर गिरते गिरते बचा।
उसकी हालत देख बाकी युवकों की भी हिम्मत टूट गई।वे पीछे हटने लगे।उन्हें हटते देख गोपी हाथ झटककर मुड़ा और अपने घर की तरफ चल दिया।
एक पंद्रह सोलह साल के लड़के ने कुल्हाड़ी उठायी और गोपी के पीछे भागा।यह देखकर छत पर ओट में अब तक भीड़ पर निगाह रखे हुए छिपा सन्नी चिल्लाता हुआ,"गोपी बच!"नंगी कृपाण लेकर छत से गली में कूद गया।
उसकी आवाज सुनकर पलटता हुए गोपी ने कुल्हाड़ी का वार माथे पर ले लिया।वार इतना तीव्र था कि उसके झटके से गोपी जमीन पर जा गिरा।
गिरे हुए सन्नी पर वह लड़का दूसरा वार किया ही चाहता था कि सन्नी ने उसकी गर्दन कृपाण के वार से धड़ से अलग कर दी।
उस लड़के का वीभत्स अंत देखकर बाकी लड़के वहां से भाग गए।
जैसे दंगा शुरू हुआ था वैसे ही खत्म हो गया।लेकिन हजारों लोगों की जिंदगी में न मिटने वाली कड़वी यादों के निशान छोड़ गया।नए प्रधानमंत्री ने कह दिया जब बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन हिलती ही है।जमीन हिली या हिलाई गई इस बहस और कानूनी लड़ाई में अगले तीस साल बीत गए लेकिन परिणाम कुछ न निकला।
सन्नी को अगले दिन पुलिस गिरफ्तार करके ले गई।गोपी बहुत दिन तक हस्पताल में पड़ा रहा।
जीतो और कुंतो, गुरजीत और हरजीत इकट्ठे बच्चों का हालचाल लेने जाते।
छह महीने में गोपी घर आ पाया।मगर सन्नी को कानून के शिकंजे से निकलने में दो साल लगे।
गोपी को सिख कौम की न भुलाई जा सकने वाली सेवा के लिए गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सरोपे और नगद पुरस्कार से नवाजा।
जब उसे पुरस्कार मिल रहा था मंद मंद मुस्कराते हुए दोनों दंपति एक दूसरे के निकट बैठे तालियां बजा रहे थे।
उनकी आँखों में आंसू थे।शायद खुशी के थे या इस बात के कि उनका एक बेटा जेल में था।