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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 26

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

26-लिखती क्यों हूँ ?

ऋचा के भाई -भाभी के बीच बहुत सी समस्याएँ चल रही थीं | पिता के जाते ही उसकी माँ का जीवन अस्त-व्यस्त हो उठा | माँ की दशा ऋचा से सही नहीं जाती थी | पिता के घर के थोड़ी दूरी पर ही ऋचा का घर था | काफ़ी दिन तक तो वह माँ की केयर करती रही किन्तु फिर उसके अपने घर का काम-काज सफ़र करने लगा |वह माँ को लेकर आ गई |

ऋचा के पति बहुत आदर करते थे माँ का !उनके माता-पिता को गए हुए कई वर्ष हो चुके थे |उन्हें बुज़ुर्गों का घर में रहना बहुत अच्छा लगता | वो भी बहुत ख़ुश थे माँ को अपने साथ देखकर !

उनके कुछ नियम थे जिनका उल्लंघन उन्हें बिलकुल सहन नहीं था | उन्होंने समय पड़ने पर सबकी सहायता की थी | शुभाशीष उनके सिर पर सदा छत्र-छाया बनकर उनकी प्रगति करता रहा था |

ऋचा के भाई व पति दोनों की आदतों में ज़मीन-आसमान का अंतर था | ऋचा को अपनी माँ, भाई व पति सबका बैलेंस रखने में बड़ी कठिनाई होती | वह किसी एक का फेवर तो ले नहीं सकती थी | पति के घर में रहते हुए, अपने साथ माँ को रखकर उसका ख़्याल रखना तभी संभव था जब ऋचा के पति संतुष्ट रहते |

बहुत बार स्थिति ऎसी आई कि ऋचा मानसिक द्वन्द से गुज़री | बहुत सी बातें वह माँ से शेयर नहीं कर सकती थी तो बहुत सी बातें पति से ! वह किसीसे कुछ छिपाना नहीं चाहती थी, यह भी नहीं चाहती थी कि वह कुछ ऎसी बात बोल दे जो रिश्तों में दरार डाल दे |

एक परिपक्व उम्र में उसने क़लम हाथ में पकड़ ली और अपने साथ हुई घटनाओं को कागज़ पर उतारने लगी | अचानक उसने महसूस किया कि वह हल्की होने लगी है |

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