दीवाली सेल है भाई .... ! Dr Narendra Shukl द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दीवाली सेल है भाई .... !

शनिवार को श्रीमती जी द्वारा लगातार अनुरोध करने व रात डिनर न मिलने के भय को देखते हुये मैं उनके साथ दीवाली की बाज़ारी रौनक देखने के लिये चल पड़ा । बाज़ार में हर तरफ दुकानें पूरी तरह से सजी हुई अपने भोले - भाले दुल्हों का स्वागत कर रहीं थी । मैं बाज़ार के सौंदर्य से अभिभूत हो ही रहा था कि श्रीमती जी ने कोंचा - ‘ उधर क्या देख रहे हो ? इधर देखो, सिल्क की साड़ियों की सेल लगी है । ‘ मैं अपनी जेब संभालता हुआ बुदबुदाया - ‘चल भइये, अब तेरी खैर नहीं । ‘ पत्नी ने आंखें तरेरीं - ‘ क्या कहा ?‘ मैंने कहा - ‘ कुछ नहीं । देखो , सामने गुप्ता जी बैठे हैं । ‘ दुकान पर पहुंचते ही गुप्ता जी हाथ जोड़कर इस तरह खड़े हो गये जैसे विवाह के अवसर पर ससुर जी अपने दामाद के स्वागत के लिये खड़े होते हैं ।

श्रीमती जी ने कहा - ‘ उस लाल रंग वाली साड़ी का क्या दाम है ? ‘

‘ कुछ खास नहीं । आप ही के लिये बनाई है । आपके गोरे रंग पर खूब खिलेगी । ‘ इससे पहले कि श्रीमती जी शर्म से लाल होतीं , मैं गुस्से से लाल ‘ पीला होता हुआ बोला - ‘ आप दाम बता ही दीजिये । ‘ गुप्ता जी पर इस का कोई असर नहीं हुआ । खीस निपोरते हुये बोले - ‘ 5500 रूपये की है । लेकिन , आपको दीवाली डिस्काउंट के चलते 3000 की दूंगा । मैंने मन में कहा ‘ क्यों मैं तुम्हारा साढ़ू हूं । वे बोले - ‘ भाई साहब , इसके साथ यह तौलिया एकदम मुफ़त हैं । मैं चलने को हुआ लेकिन श्रीमती जी अड़ गईं - लूंगी तो यही साड़ी , वरना ़ । ‘ मैं उनके ‘वरना ‘ से बेहद घबराता हूं ़ ़ न जाने , कब हुक्का - पानी बंद कर दें । लिहाज़ा , रूपये देकर मैंने साड़ी पैक करवा ली । पत्नी ने दीपिका की तरह बाज़ू कमर में डाल दी पर , किसी ने कोई गीत नहीं गाया ।

‘नारियल फोड़ो , करोड़पति बनो ‘ के आफॅर ने मेरा ध्यान ‘ राजू इलैक्ट्रानिक्स ‘ की ओर खींच लिया । मैने मन में सोचा - यह कौन सा नारियल है जो घर बैठे ही करोड़पति बनाने का दावा कर रहा है । भीड़ में लोगों को कोहनी मारता हुआ मैं स्टाॅल में पहुंचा । देखा - एक मरिचल - सा दिखने वाला एक नौवजवान टी. वी. की खरीद के साथ, एक पैक्ड नारियल इस चेतावनी के साथ दे रहा था कि ‘उक्त‘ नारियल घर ले जाकर ही फोड़ा जाये नही ंतो इस शुभ अवसर का प्रभाव समाप्त हो जायेगा और हाथ में ‘बाबा जी का ठुल्लू ‘ ही लगेगा । वह जानता था कि यहां नारियल फोड़ने से ‘ट्राई अगेन ‘ की पर्ची निकलने पर हंगामा खड़ा हो सकता है । अभी यहां मारा-मारी चल ही रही थी कि बाज़ू वाला दुकपनदार चिल्लाया - ‘ प्रैस , गीज़र , कम्प्यूटर के साथ एक स्क्रैच कार्ड ‘फ्री ‘ । नाखून से स्क्रैच करो और यहां से ‘ आडी‘ में जाओ । इससे पहले कि मैं लार टपकाता श्रीमती जी हमें वहां खींच लाईं जहां एक दाढ़ीनुमा अधेड़ , दो पैंटों के साथ दस कमीज़ों की बोली लगा रहा था । कमीज़ें पारदर्शी थीं जिन्हें कभी भी एक फूंक से उड़ाया जा सकता था । दावा केवल फैशन के इस युग में बने रहने का था ।

श्रीमती जी ने कहा -‘ चलो , बच्चों के लिये मिठाई ले लें । यहां छज्जू हलवाई की मिठाई बड़ी फेमस है । ‘ छज्जू हलवाई ‘ की दुकान पर अजब ही ऩजारा था । एक ओर , ‘ जितना खाओ , उतना पाओ ‘ प्रतियोगिता चल रही थी । जिसमें जो व्यक्ति जितना खायेगा , उतनी मिठाई उसे ‘फ्री‘ दी जायेगी । दूसरी ओर, ‘लडडू तोड़ो , सिंगापुर जाओ ‘ का आफर दिया जा रहा था । इसमें एक बड़ा सा लडडू तोड़ने का चैलेंज़ था । लडडू तोड़ने पर ‘टायं‘ टांय फिस्स्स‘ या दो लोगों के लिये सिंगापुर जाने का टिकिट का प्रबंध किया गया था । श्रीमती जी , डायटिंग छोड़कर , मिठाई खाने में जुटी हुईं थी और मैं क्रेता ‘ विक्रेता के संबंधों में निरंतर होते हुये परिवर्तन के बारे में सोच रहा था कि कहां पुराने जमाने में , विक्रेता , ग्राहक को भगवान स्वरूप समझकर , बढ़िया व टिकाउ वस्तुयें देकर संतुष्टि का अनुभव करता था और ग्राहक , दुकानदार को उसकी मेहनत का मेहनताना , वस्तु की उचित कीमत देकर चुकाने पर प्रसन्न होता था । कहां अब , इस ‘झटपट युग व व्यक्ति की बदलती मानसिकता के कारण व्यापारी वर्ग दीवाली के नाम पर , बेकार व घ्टिया माल बड़ी चालाकी से , ग्राहक को कोई न कोई लालच देकर बेच रहा है । और ग्राहक कम से कम दाम पर अधिक से अधिक वस्तुयें बटोरने की प्रवृत्ति के चलते स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर लगा है । चैराहे पर , एक भिखारी गीत गा रहा है - एसी हवा चलाओ प्रभू कि एक का दुई हो जाई । हमहू खाई , तुमहु खाई , सबही दिये बधाई प्रभू । प्रभू जी सबही दिये बधाई ।

-डा. नरेंद्र शुक्ल