देस बिराना - 10 Suraj Prakash द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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देस बिराना - 10

देस बिराना

किस्त दस

गोल्डी से इस बीच एक दो बार ही हैलो हो पायी है। वह भी राह चलते। एक बार बाज़ार में मिल गयी थी। मैं खाना खा कर आ रहा था और वह कूरियर में चिट्ठी डालने जा रही थी। तब थोड़ी देर बात हो पायी थी।

उसने अचानक ही पूछ लिया था - आप आइसक्रीम तो खा लेते होंगे?

- हां खा तो लेता हूं लेकिन बात क्या है?

- दरअसल आइसक्रीम खाने की बहुत इच्छा हो रही है। मुझे कम्पनी देंगे?

- ज़रूर देंगे। चलिये।

- लेकिन खिलाऊंगी मैं।

- ठीक है आप ही खिला देना। तब आइसक्रीम के बहाने ही उससे थोड़ी बहुत बात हो पायी थी।

- बहुत थक जाती हूं। सारा दिन शहर भर के चक्कर काटती हूं। न खाने का समय न वापिस आने का।

- मैं समझ सकता हूं लेकिन आपके सामने कम से कम सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक की समस्या तो नहीं है।

- वो तो खैर नहीं है। फिर भी लगता नहीं इस चाची नाम की लैंड लेडी से मेरी ज्यादा निभ पायेगी। किराया जितना ज्यादा, उतनी ज्यादा बंदिशें। शाम को मैं बहुत थकी हुई आती हूं। तब सहज-सी एक इच्छा होती है कि काश, कोई एक कप चाय पिला देता। लेकिन चाची तो बस, खाने की थाली ले कर हाज़िर हो जाती है। अब सुबह का दूध शाम तक चलता नहीं और पाउडर की चाय में मज़ा नहीं आता।

- मैं आपकी तकलीफ़ समझ सकता हूं।

- और भी दस तरह की बंदिशें हैं। ये मत करो और वो मत करो। रात दस बजे तक घर आ जाओ। अब मैं जिस तरह के जॉब में हूं, वहां देर हो जाना मामूली बात है। कभी कोई कॉल दस मिनट में भी ठीक हो जाती है तो कई बार बिगड़े सिस्टम को लाइन पर लाने में दसियों घंटे लग जाना मामूली बात है। तब वहां हम सामने खुला पड़ा सिस्टम देखें या चाची का टाइम टेबल याद करें।

- किसी गर्ल्स हॉस्टल में क्यों नहीं ट्राई करतीं।

- सुना है वहां का माहौल ठीक नहीं होता और बंदिशें वहां भी होंगी ही। खैर, आप भी क्या सोचेंगे, आइसक्रीम तो दस रुपये की खिलायी लेकिन बोर सौ रुपये का कर गयी। चलिये।

हम टहलते हुए एक साथ लौटे थे।

कहा था उसने - कभी आपके साथ बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे।

  • उसके बाद एक बार और मिली थी वह। अलका दीदी के घर से वापिस जा रही थी और मैं घर आ रहा था।

    पूछा था तब उसने - कुछ फिक्शन वगैरह पढ़ते हैं क्या?

    - ज़िंदगी भर तो भारी-भारी टैक्निकल पोथे पढ़ता रहा, फिक्शन के लिए पहले तो फुर्सत नहीं थी, बाद में पढ़ने का संस्कार ही नहीं बन पाया। वैसे तो ढेरों किताबें हैं। शायद कोई पसंद आ जाये। देखना चाहेंगी?

    - चलिये। और वह मेरे साथ ही मेरे कमरे में वापिस आ गयी है।

    यहां भी पहली ही बार वाला मामला है। मेरे किसी भी कमरे में आने वाली वह पहली ही लड़की है।

    - कमरा तो बहुत साफ सुथरा रखा है। वह तारीफ करती है।

    - दरअसल यह पारसी मकान मालिक का घर है। और कुछ हो न हो, सफाई जो ज़रूर ही होगी। वैसे भी अपने सारे काम खुद ही करने की आदत है इसलिए एक सिस्टम सा बन जाता है कि अपना काम खुद नहीं करेंगे तो सब कुछ वैसे ही पड़ा रहेगा। बाद में भी खुद ही करना है तो अभी क्यों न कर लें।

    - दीदी आपकी बहुत तारीफ कर रही थीं कि आपने अपने कैरियर की सारी सीढ़ियां खुद ही तय की हैं। ए कम्पलीट सैल्फ मेड मैन। वह किताबों के ढेर में से अपनी पसंद की किताबें चुन रही है।

    हँसता हूं मैं - आप सीढ़ियां चढ़ने की बात कर रही हैं, यहां तो बुनियाद खोदने से लेकर गिट्टी और मिट्टी भी खुद ही ढोने वाला मामला है। देखिये, आप पहली बार मेरे कमरे में आयी हैं, अब तक मैंने आपको पानी भी नहीं पूछा है। कायदे से तो चाय भी पिलानी चाहिये।

    - इन फार्मेलिटीज़ में मत पड़िये। चाय की इच्छा होगी तो खुद बना लूंगी।

    - लगता है आपको संगीत सुनने का कोई शौक नहीं है। न रेडियो, न टीवी, न वॉकमैन या स्टीरियो ही। मैं तो जब तब दो-चार घंटे अपना मन पसंद संगीत न सुन लूं, दिन ही नहीं गुज़रता।

    - बताया न, इन किताबों के अलावा भी दुनिया में कुछ और है कभी जाना ही नहीं। अभी कहें आप कि फलां थ्योरी के बारे में बता दीजिये तो मैं आपको बिना कोई भी किताब देखे पूरी की पूरी थ्योरी पढ़ा सकता हूं।

    - वाकई ग्रेट हैं आप। चलती हूं अब। ये पांच-सात किताबें ले जा रही हूं। पढ़ कर लौटा दूंगी।

    - कोई जल्दी नहीं है। आपको जब भी कोई किताब चाहिये हो, आराम से ले जायें। देखा, चाय तो फिर भी रह ही गयी।

    - चाय ड्यू रही अगली बार के लिए। ओके।

    - चलिये, नीचे तक आपको छोड़ देता हूं।

    जब उसे उसके दरवाजे तक छोड़ा तो हँसी थी गोल्डी - इतने सीधे लगते तो नहीं। लड़कियों को उनके दरवाजे तक छोड़ कर आने का तो खूब अनुभव लगता है। और वह तेजी से सीढ़ियां चढ़ गयी थी।

    घर लौटा तो देर तक उसके ख्याल दिल में गुदगुदी मचाये रहे। दूसरी-तीसरी मुलाकात में ही इतनी फ्रैंकनेस। उसका साथ सुखद लगने लगा है। देखें, ये मुलाकातें क्या रुख लेती हैं। बेशक उसके बारे में सोचना अच्छा लग रहा है लेकिन उसे ले कर कोई भी सपना नहीं पालना चाहता।

    अब तक तो सब ने मुझे छला ही है। कहीं यहां भी...!

  • बिल्लू को गये अभी आठ दिन भी नहीं बीते कि दारजी की चिट्ठी आ पहुंची है।

    समझ में नहीं आ रहा, यहां से भाग कर अब कहां जाऊं। वे लोग मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देते। क्या यह काफी नहीं है उनके लिए कि मैं उन पर किसी भी किस्म का बोझ नहीं बना हुआ हूं। मैंने आज तक न उनसे कुछ मांगा है न मांगूंगा। फिर उन्हें क्या हक बनता है कि इतनी दूर मुझे ऐसे पत्र लिख कर परेशान करें।

    लिखा है दारजी ने

    - बरखुरदार

    बिल्लू के मार्फत तेरे समाचार मिले और हम लोगों के लिए भेजा सामान भी। बाकी ऐसे सामान का कोई क्या करे जिसे देने वाले के मन में बड़ों के प्रति न तो मान हो और न उनके कहे के प्रति कोई आदर की भावना। हम तो तब भी चाहते थे और अब भी चाहते हैं कि तू घर लौट आ। पुराने गिले शिकवे भुला दे और अपणे घर-बार की सोच। आखर उमर हमेशा साथ नहीं देती। तू अट्ठाइस-उनतीस का होने को आया। हुण ते करतारे वाला मामला भी खतम हुआ। वे भी कब तक तेरे वास्ते बैठे रहते और लड़की की उमर ढलती देखते रहते। हर कोई वक्त के साथ चला करता है सरदारा.. और कोई किसी का इंतजार नहीं करता। हमने बिल्लू को तेरे पास इसी लिए भेजा था कि टूटे-बिखरे परिवार में सुलह सफाई हो जाये, रौनक आ जाये, लेकिन तूने उसे भी उलटा सीधा कहा और हमें भी। पता नहीं तुझे किस गल्ल का घमंड है कि हर बार हमें ही नीचा दिखाने की फिराक में रहता है। बाकी हमारी दिली इच्छा थी और अभी भी है कि तेरा घर बस जाये लेकिन तू ही नहीं चाहता तो कोई कहां तक तेरे पैर पकड़े। आखर मेरी भी कोई इज्जत है कि नहीं। अब हमारे सामने एक ही रास्ता बचता है कि अब तेरे बारे में सोचना छोड़ कर बिल्लू और गोलू के बारे में सोचना शुरू कर दें। कोई मुझसे यह नहीं पूछने आयेगा कि दीपे का क्या हुआ। सबकी निगाह तो अब घर में बैठे दो जवान जहान लड़कों की तरफ ही उठेगी।

    एक बार फिर सोच ले। करतारा न सही, और भी कई अच्छे रिश्तेवाले हमारे आगे पीछे चक्कर काट रहे हैं। अगर बंबई में ही कोई लड़की देख रखी हो तो भी बता, हम तेरी पसंद वाली भी देख लेंगे।

    तुम्हारा,

    दारजी...।

    अब ऐसे खत का क्या जवाब दिया जाये!

    अलका दीदी छेड़ रही हैं - कै सी लगती है गोल्डी?

    - क्यों क्या हो गया हो उसे? मैं अनजान बन जाता हूं।

    - ज्यादा उड़ो मत, मुझे पता है आजकल दोनों में गहरी छन रही है।

    - ऐसा कुछ भी नहीं है दीदी, बस, दो-एक बार यूं ही मिल गये तो थोड़ी बहुत बात हो गयी है वरना वो अपनी राह और मैं अपनी राह?

    - अब तू मुझे राहों के नक्शे तो बता मत और न ये बता कि मुझे कुछ पता नहीं है, गोल्डी बहुत ही शरीफ लड़की है। तुझसे उसकी जो भी बातें होती हैं मुझे आ कर बता जाती है। बल्कि तेरी बहुत तारीफ कर रही थी कि इतनी ऊंची जगह पहुंच कर भी दीपजी इतने सीधे सादे हैं।

    - गोल्डी अच्छी लड़की है लेकिन आपको तो पता ही है मैं जिस दौर से गुज़र रहा हूं वहां किसी भी तरह का मोह पालने की हिम्मत ही नहीं ही नहीं होती। बहुत डर लगता है दीदी अब इन बातों से। वैसे भी पांच-सात मुलाकातों में किसी को जाना ही कितना जा सकता है।

    - उसकी चिंता मत कर। रोज़-रोज़ मिलने से वैसे भी प्यार कम हो जाता है। तू मुझे सिर्फ ये बता कि उसके बारे में सोचना अच्छा लगता है या नहीं?

    - अब जाने भी दो दीदी, पिछले कई दिनों से उसे देखा भी नहीं।

    - बाहर गयी हुई थी। आज शाम को ही लौटी है। अभी फोन आया था। पूछ रही थी तुझे। आज आयेगी यहां। जी भर के देख लेना। तुम दोनों खाना यहीं खा रहे हो।

    हम दोनों गोल्डी की बात कर ही रहे हैं कि दरवाजे की घंटी बजी। दीदी ने बता दिया है - जा, अपनी मेहमान को रिसीव कर।

    - आपको कैसे पता वही है? मैं हैरानी से पूछता हूं।

    - अब तेरे लिए ये काम भी हमें ही करना पड़ेगा। कदमों की आहट, कॉलबैल की आवाज पहचाननी तुझे चाहिये और बता हम रहे हैं। जा दरवाजा खोल, नहीं तो लौट जायेगी।

    दरवाजे पर गोल्डी ही है। हँसते हुए भीतर आती है। हाथ में मेरी किताबें हैं।

    - हम तेरी ही बात कर रहे थे। दीदी उसे बताती हैं।

    - दीप जी ज़रूर मेरी चुगली खा रहे होंगे कि मैं उनकी किताबें लेकर बिना बताये शहर छोड़ कर भाग गयी हूं। इसीलिए यहां आने से पहले सारी किताबें लेती आयी हूं।

    - आपको हर समय यही डर क्यों लगा रहता रहता है कि आपकी ही चुगली खायी जा रही है। आपकी तारीफ भी तो हो सकती है।

    - आपके जैसा अपना इतना नसीब कहां कि कोई तारीफ भी करे। खैर, तो क्या बातें हो रही थी हमारी?

    - आज दीप तुझे आइसक्रीम खिलाने ले जा रहा है।

    - वॉव!! सिर्फ हमें ही क्‍यों? आपको भी क्यों नहीं।

    - आपके जैसा अपना नसीब कहां। दीदी ज़ोर से हँसती हैं।

    हम देर तक यूं ही हलकी-फुलकी बातें करते रहे हैं। जब आइसक्रीम के लिए जाने का समय आया तब तक चुन्नू सो चुका है। मैं आइसक्रीम वहीं ले आया हूं।

  • वापिस जाते समय पूछा है गोल्डी ने - कुछ किताबें बदल लें क्या?

    - ज़रूर .... ज़रूर। चलिये।

    किताबें चुन लेने के बाद वह जाने के लिए उठी है। जब हम दरवाजे पर पहुंचे हैं तो उसने छेड़ा है - आज अपने मेहमान को फिर चाय पिलाना भूल गये जनाब....और वह तेजी से नीचे उतर गयी है।

    मैं हँसता हूं - ये लड़की भी अजीब है। रिश्तों में ज़रा सी भी औपचारिकता का माहौल बरदाश्त नहीं कर सकती। अब उसे ले कर मेरे मन में अक्सर धुकधुकी होने लगती है। - गोल्डी आइ हैव स्टार्टेड लविंग यू.. लेकिन क्या मैं ये शब्द उससे कभी कह पाऊंगा!

    दीदी को पता चल गया है कि हम दोनों अक्सर मिलते हैं। इसी चक्कर में हम दोनों ही अब उतने नियमित रूप से दीदी के घर नहीं जा पाते। गोल्डी कभी चर्चगेट आ जाती है तो हम मैरीन ड्राइव पर देर तक घूमते रहते हैं। खाना भी बाहर एक साथ ही खा लेते हैं। मैं और गोल्डी रोजाना नयी जगह पर नये खाने की तलाश में भटकते रहते हैं। दोनों पूरी शाम खूब मस्ती करते हैं। उसके जन्म दिन पर मैंने उसे जो वॉकमैन दिया था, वह उसे हर समय लगाये रहती है। मेरी बात सुनने के लिए उसे बार-बार ईयर फोन निकालने पड़ते हैं लेकिन बात सुनते ही वह फिर से ईयर फोन कानों में अड़ा लेती है।

    गोल्डी ने मेरे जीवन में रंग भर दिये है। एक ही बार में कई कई रंग। उसके संग-साथ में अब जीवन सार्थक लगने लगा है। उसने जबरदस्ती मेरा जनम दिन मनाया। सिर्फ हम दोनों की पार्टी रखी और मुझे एक खूबसूरत रेडीमेड शर्ट दी। मेरी याद में मेरा पहला जनमदिन उपहार। उसके स्नेह से अब जीवन जीने जैसा लगने लगा है और बंबई शहर रहने जैसा। शामें गुज़ारने जैसी और दिन उसके इंतज़ार करने जैसा। बेशक हम दोनों ने ही अभी तक मुंह से प्यार जैसा कोई शब्द नहीं कहा है लेकिन पता नहीं, इतने नज़दीकी संबंध जीने के बाद ये ढाई शब्द कोई मायने भी रखते हैं या नहीं। कुल मिला कर मेरे जीवन में गोल्डी की मौजूदगी मुझे एक विशिष्ट आदमी बना रही है।

    कमरे पर पहुंचा ही हूं कि मेज पर रखा लिफाफा नज़र आया है। गोल्डी का खत है। उससे आज मिलना ही है। वह डिनर दे रही है। उसके लिए मैंने कुछ अच्छी किताबें खरीद रखी हैं। कमरे पर किताबें लेने और चेंज करने आया हूं। हैरान हो रहा हूं, जब मिल ही रहे हैं तो खत लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ गयी है।

    लिफाफा खोलता हूं। सिर्फ तीन पंक्तियां लिखी हैं -

    - दीप

    आज और अभी ही एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में हैदराबाद जाना पड़ रहा है। पता नहीं कब लौटना हो। तुमसे बिना मिले जाना खराब लग रहा है, लेकिन सीधे एयरपोर्ट ही जा रही हूं।

    कान्टैक्ट करूंगी।

    सी यू सून..

    लॉट्स ऑफ लव।

    गोल्डी।

    मैं पत्र हाथ में लिये धम्म से बैठ गया हूं। तो ....गोल्डी भी गयी..। एक और सदमा...। कम से कम मिल कर तो जाती!! फोन तो कर ही सकती थी। रोज़ ही तो करती थी फोन। कहीं भी होती थी बता देती थी और वहां से चलने से पहले भी फोन ज़रूर करती थी। आज ही ऐसी कौन सी बात हो गयी। पता नहीं क्यों लग रहा है, यह सी यू सून शब्द भी धोखा दे गये हैं। ये शब्द अब हम दोनों को कभी नहीं मिलायेंगे।

    मेरी आंखें नम हो आयी हैं। अचानक सब कुछ खाली-खाली सा लगने लगा है। सब कुछ इतनी जल्दी निपट गया? अपने आप पर हँसी भी आती है - पता नहीं हर बार ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है। अभी खत हाथ में लिये बैठा ही हूं कि दीदी सामने दरवाजे पर नज़र आयी है। मैं तेजी से अपनी गीली आंखें पोंछता हूं। उनके सामने कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता। मुस्कुराता हूं। आखिर अपना उदास चेहरा उन्हें क्यों दिखाऊं!! लेकिन यह क्या!! दीदी की आंखें लाल हैं। साफ लग रहा है, वे रोती रही हैं। मैं चुपचाप खड़ा रह गया हूं। दीदी अचानक मेरे पास आती हैं और मेरे कंधे से लग कर सुबकने लगती हैं। मैं समझ गया हूं कि गोल्डी उन्हें सब कुछ बता गयी है। मैं संकट में पड़ गया हूं। कहां तो अपने आंसू छुपाना चाहता था और कहां दीदी के आंसू पोंछने की ज़रूरत आ पड़ी है। मैं उनके हाथ पर हाथ रखता हूं। उनसे आंखें मिलती हैं। मैं गोल्डी का खत उन्हें दिखाता हूं और अपनी सारी पीड़ा भूल कर उन्हें चुप कराने की कोशिश करता हूं - आप बेकार में ही परेशान हो रही हैं दीदी। मुझे इन सारी बातों की अब तो आदत पड़ गयी है। आप कहां तक और कब तक मेरे लिए आंसू बहाती रहेंगी।

    जबरदस्ती हँसती हैं दीदी - पगले मैं तेरे लिए नहीं, उस पागल लड़की के लिए रोती हूं।

    - क्यों? उसके लिए रोने की क्या बात हो गयी? कम से कम मैं तो उसे आपसे ज्यादा ही जानता था। वह ऐसी तो नहीं ही थी कि कोई उसके लिए आंसू बहाये।

    - इसीलिए तो रो रही हूं। एक तरफ तेरी तारीफ किये जा रही थी और दूसरी तरफ तेरे लिए अफ़सोस भी कर रही थी कि तुझे इस तरह धोखे में रख कर जा रही है।

    - क्या मतलब? धोखा कैसा? आखिर ऐसा क्या हो गया है?

    - तुझे उसने लिखा है कि वह एक प्रोजेक्ट के लिए हैदराबाद जा रही है और उसने तुझे सी यू सून लिखा है....।

    - इसके बावज़ूद मैं जानता हूं दीदी वह अब कभी वापिस नहीं आयेगी।

    - मैं तुझे यही बताना चाहती थी। दरअसल उसने मुझे कई दिन पहले ही बता दिया था कि वह हैदराबाद जा रही है। किसी प्रोजेक्ट के लिए। आज ही जाते-जाते उसने बताया कि दरअसल ट्रांसफर पर शादी के लिए जा रही है।

    - शादी के लिए?

    - हां दीप, वह और उसका इमिडियेट बॉस शादी कर रहे हैं। उसका बॉस भी इंदौर का है और उससे सीनियर बैच का है। दरअसल वह तुम्हारी इतनी तारीफ कर रही थी और साथ ही साथ अफसोस भी मना रही थी कि इस तरह से .....।

    मैंने खुद पर काबू पा लिया है। जानता हूं अब रोने-धोने से कुछ नहीं होने वाला। माहौल को हलका करने के लिए पूछता हूं

    - मैं भी सुनूं, आखिर वह क्या कर रही थी मेरे बारे में?

    - कह रही थी कि उसने अपनी ज़िंदगी में दीप जी जैसा ईमानदार, मेहनती, सैल्फमेड और शरीफ आदमी नहीं देखा। उनकी ज़िंदगी में जो भी लड़की आयेगी, वह दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की होगी।

    मैं हँसा हूं - तो उसने दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की बनने का चांस क्यों खो दिया?

    - अब मैं क्या बताऊं। वह खुद इस बात को लेकर बहुत परेशान थी कि उसे इस तरह का फैसला करना पड़ रहा है। दरअसल वह तुम्हें कभी उस रूप में देख ही नहीं पायी कि ..

    - तो इसका मतलब दीदी, उन दोनों ने पहले से सब कुछ तय कर रखा होगा?

    - यह तो उसने नहीं बताया कि क्या मामला है लेकिन तुम्हें इस तरह से छोड़ कर जाने में उसे बहुत तकलीफ हो रही थी।

    - अब जाने दो, दीदी, मैं उन्हें दिलासा देता हूं - आपको तो पता ही है मेरे हाथों में सिर्फ दुर्घटनाओं की ही लकीरें हैं। इन्हें न तो मैं बदल सकता हूं और न मिटा ही सकता हूं। गोल्डी पहली और आखिरी लड़की तो नहीं है।

    मैं हँसता हूं - अब आप अपना सुंदर, गृह कार्य में दक्ष और योग्य कन्या खोज अभियान जारी रख सकती हैं।

    दीदी आखिर हँसी हैं - वो तो मैं करूंगी ही लेकिन गोल्डी को ऐसा नहीं करना चाहिये था। इधर तेरे साथ इतनी आत्मीयता और उधर....

    मैं जानता हूं कि दीदी कई दिनों तक इस बात को लेकर अफसोस मनाती रहेंगी कि गोल्डी मुझे इस तरह से धोखा दे कर चली गयी है।

    ***