रात मैंने एक स्वपन्न देखा । मैंने देखा कि एक 25 - 30 वर्ष का युवक हाथ में चाकू लिये मेरी ओर बढ़ा आ रहा है । मैंने हड़बड़ा कर पूछा - क . . क. . कौन है ? क्या चाहिये । चाकूधारी ने मेरी गरदन पर चाकू रखते हुये कहा- बोल बे , घर का राशन कार्ड कहां छिपा रखा है ? मैने हैरानी से पूछा - सर , आप भी कमाल के लुटेरे हैं । राशन कार्ड तो कब का आउट - डेटिड हो चुका है । इससे तो आजकल राशन तक बराबर नहीं मिलता । क्या करेंगे इसे लेकर । सामने से आवाज़ आई - चुप बे , ज्यादा बोला तो यहीं डाल दूंगा । विदेशी है । एक ही बार में आठ- आठ को सुला सकता है । चुपचाप राशन कार्ड दे दे वर्ना . . . । मैंने देखा , सामने एक दैत्य सरीखा , नौजवान तंमचा हाथ में लिये मेरी ओर चला आ रहा है । मैं बैड से उठकर राशन कार्ड ढ़ूढ़ने लगा । चाकूधारी नौजवान , तंमचाधारी नौजवान से बोला - साले को बाहरी दुनिया की खबर ही नहीं है । सारी दनिया कंट्रोल रेट पर प्याज़ लेने के लिये सुबह से लाइन में लगी है । . . और ये . . साला नींद में बेखबर है । मैं राशन कार्ड ढूंढ़ता रहा । पर , वह नहीं मिला । हार कर . . मैंने चाकूधारी से कहा - सर मिल नही रहा । टिंकू ने न जाने कहां रख दिया । आप कल आइये । मैं ढ़ूंढ़ कर रखूंगा । तंमचाधारी ने कान पर तंमचे की नली रख कर धमकाते हुये कहा - बकता है साला । चुपचाप बता दे राशन कार्ड कहां छिपाया है । ़ ़ वर्ना यहीं काम तमाम कर दूंगा । मुझे भयभीत करने के मकस़द से उसने दो हवाई फायर किये । मेरे मुंह से चीख निकल आई । मैं उठ बैठा । रसोई से रोने की आवाज़ आ रहीं थी । मैंने जाकर देखा , श्रीमती जी , फर्श पर बैठी रो रहीं थी । चारों ओर दालों के खाली डिब्बे बिखरे पड़े थे । मैंने श्रीमती जी से पूछा - क्या हुआ शीला ? तुम रो क्यों रही हो ,? और , यह सब क्या है ? मुझे देखकर वे और जोर से रोने लगीं - हम लुट गये । बर्बाद हो गये , टिेकू के पापा । चोर घर की सारी दालें उड़ा ले गये । अब हम सारा महीना क्या खायेंगे ? दायीं ओर पड़े , दो किलो के डिब्बे को गोद में लेते हुये वे सिसकीं - हाय , मूंग की दाल भी ले गये निगोड़े । मम्मी ने कितने प्यार से मेरे बर्थ - डे पर दाल हुये देते हुये कहा था - शालू , तुम्हें यह दाल बड़ी पंसद है न । दो किलो पैक कर रही हूं । यह बात मैंने तुमसे छिपाई थी । सोचा था , सरप्राइस दूंगी । हाय , मैं क्या करुं । वे मुझसे लिपट गईं । मौका देखकर मैंने उन्हें अपने आगोश में ले लिया । वे पिछले चार दिन से शर्ट पर लिपिस्टिक के दाग के चलते नाराज़ चल रही थीं । मैंने मन ही मन लुटेरों को ‘ थैंक्यू ‘ कहा । मैंने उनके बालों में हाथ फेरते हुये सांतवना दी - प्रिय , दिल छोटा न करो । इस महंगाई में ज़िंदा रहे तो मैं प्रामिस करता हूं कि इस एनिवर्सरी पर तुम्हें मूंग की दाल अवश्य खिलाउंगा । वे शांत हो गईं । कहने लगीं - और कान के झुमके । मैने कहा - वह तो तुम आज ही ले सकती हो डार्लिंग । मैं शर्ट की लिपिस्टिक भुला देना चाहता था । वे मुझसे दूसरी बार फिर लिपट गई । और मैं आज मिलने वाली पगार से , खर्चों का तारतम्य बैठाने लगा । शाम को मैं अपनी सज़ी - संवरी बीवी के साथ , ज्वैलर्स लेन में स्थित ‘ भरोसे लाल एंड संस ‘ की दुकान पर पहुंचा । दुकान के शो केसेज़ देखकर मैं हैरान रह गया । नौ लखा हार की जगह लहसूनों की माला लटकाई हुई थी । लिखा था - सुच्चे - श्वेत लहसून । प्राइज़ टैग था - 30 रुपये प्रति पीस । नीले - लाल , सफेद पत्थरों की जगह , अरहर , मूंग और मलका की दालों ने ले रखी थी । रेट था - पांच रुपये प्रति दाना । सामने बासमती राइस का दाना आकर्षक पैकिंग के साथ सजाया हुआ था - टैग था - सौ रुपये मात्र । टमाटर व अदरक , चांदी के बर्तनों की जगह शो केस में सजाये गये थे । सामने इलैक्ट्रानिक बोर्ड था । जिस पर लिखा था - डायमंड प्याज़ । आज़ का भाव - चालिस रुपये प्रति पीस । श्रीमती जी हैरान थीं । मैंने भीतर जाकर , भरोसे लाल जी से पूछा - सेठ जी , यह क्या , आपने सोने का धंधा बंद कर दिया ? वे बोले - हां भायो , अब सोने में आमदन कहां । महंगाई के कारण , पब्लिक के पास पैसा बचता कहां हैं जो सोना खरीदें । अब दो दाल सब्ज़ी ही सोना है । आज़कल लोग दहेज़ में यही दे रहे हैं । आप बतायें , आपको क्या चाहिये ? मैंने कहा - हम तो झुमके लेने आये हैं । वे बोेले - भायो , झुुमको तो अब यहां पूरी लाइन में कहीं नही मिलेंगे । सारा धंधा दाल और सब्जि़यों का ही है । काम चोखो व नगद है । कोई झिकझिक नही । टैक्स अधिकारी पांच - सात किलो दाल में मान जाता है । कोई खतरा नहीं । यहां अब राम - राज्य हो गया है । नये भारत का निर्माण हो रहा है ।
शनिवार को मेरे मित्र राधेश्याम , किसान मंडी में मिल गये । उनके हाथ में बीस किलो का थैला था । मैंने पूछा - कहो प्यारे , कहां की सैर हो रही है ? वे बोले - यार , पिेंकी की सगाई है । फ्रैश सब्ज़ियां लेने निकला हूं । मैंने हैरान होते हुये पुछा - वो तो ठीक है । पर , इतना बड़ा थैला ! इसे भरने में तो तुम्हारी सारी ग्रैच्यूटी लग जायेगी । शायद लोन भी लेना पड़े । वे उल्लू की तरह आंखें फााड़ कर बोले - क्या मतलब ! मैंने सामने लगे रेट - लिस्ट की ओर इशारा करते हुये कहा - वह देखो । सामने रेट लिस्ट लगी है । वे चश्मा लगाते हुये उस ओर देखने लगे । लिखा था - मटर 80 रुपये किलो । प्याज़ एक सौ बीस रुपये किलो । टमाटर 70 रुपये किलो । लहसुन 250 रुपयेे किलो अदरक 150 रुपये किलो । आलू 40 रुपये किलो । हरी मिर्च 40 रुपये किलो । आदि - आदि । उनकी आखों में आंसू आ गये । वे चक्कर खाकर गिरने लगे । मैंने उन्हें संभालते हुये कहा - घबराओ नहीे मित्र , वह देखो । फ्रूट वालों के पीछे फाइनेंसर बैठे हैं । चलकर देखते हैं । वे मेरे पीछे हो लिये । वहां पहुंचे तो देखा - सरकारी तथा गैर सरकारी बैंकरों के अलावा , निहायत घाघ से दिखने वाले , कुछ फाइनेंसर भी अपनी - अपनी दुकान सजाये बैठे हैं । एक सरकारी बैंक का बैनर था - फ्रूट व वैज़ीटेबल लोन मेला । नीचे सुनहरे अक्षरों में लिखा था - हमारे यहां विवाह के अवसर पर ‘ प्रीति भोज ‘ में प्रयोग होने वाली सब्ज़ियों , दालों व फुट के लिये सस्ते ब्याज दर पर लोन दिया जाता है । बैनर के नीचे अत्यंत बारीक अक्षरों में लिखा था - कंडीशन अप्लाई । दूसरे बैंक का बैनर था - वैज़ीटेबल व दाल लोन । केवल चैबीस घंटे में । नो प्रोसैसिंग फीस । नो हिडन चार्ज़िस । एक प्राइवेट कंपनी के बैनर पर लिखा था - अनाज व फैश वैज़ीटेबल लोन । पहले आइये । पहले पाइये के आधार पर । ब्याज़ दर केवल ‘आठ‘ फीसदी मात्र प्रति माह । पहले दस कस्टमर को एक ‘- एक चांदी का सिक्का मुफत । मैंने राधेश्याम से पूछा - कहो भाई जान । क्या विचार है ? उन्होने सिसकते हुये पूछा - यार सुना है , सरकार कंट्रोल रेट पर सब्ज़ियां व दालें बेच रही है । मैंने कहा - बिल्कुल ठीक सुना है । इसी गांधी मैदान पर , सोम व मंगलवार को सरकारी दुकानें लगती हैं । जहां आधार व वोटर कार्ड पर पूरी चैकिंग के बाद , मटर के दानों के आकार के प्रति व्यक्ति एक किलो प्याज़, टमाटर , स्टाक रहने तक , साठ रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलते हैं । वे बोले - काफी रश रहता होगा । मैंने कहा - हां रश तो होता है । लेकिन, उससे तुम्हें क्या ? यहां चारों ओर दलाल खड़़े रहते हैं । जो दस रुपये ज़्यादा लेकर , तुरंत काम कर देते हैं । बीस रुपये प्रति किलो के हिसाब से अधिक रेट देकर तुम उन मासूम बच्चों से भी यह काम करवा सकते हो जो ‘पिज्जा हट व नूडल बार के बाहर भीख मांगते हुये दिखाई दे जाते हैं । वे पार्ट टाइम यही काम करते हैं । आजकल इनके पेरेंटस रिलैक्स हैं । वे अर्थशास्त्र के खिलाड़ी हो गये हैं उन्हें मालूम हो गया है कि जितने हाथ होंगे , कमाई उतनी ही अधिक होगी । बाज़ारी हवा देखकर , राध्ेाश्याम को हार्ट - अटैक का अंदेशा होने लगा । उन्होने दोनो हाथ उपर कर के ईश्वर से फरियाद की - प्रभों , इस बार नाक बचा लो । सवा सौ का प्रशाद चढ़ाउंगा । बादलों में तीव्र गड़गड़ाहट हुई - रिश्वत देता है मलिच्छ । राधेश्याम रोने लगे - प्रभू , आप ही बताइये कि कमरतोड़ महंगाई में , मैं बरातियों के खाने का प्रबंध कैसे करुंगा ? बादलों से आवाज़ आई - घास - पात से मूर्ख ।
- डा. नरेंद्र शुक्ल