काम वाली की कमाई
आर 0 के 0 लाल
अजी सुनती हो, अपने पड़ोस के फ्लैट में शर्मा जी आ गए हैं। वह फ्लैट उन्हीं का है, बहुत पहले खरीदा था। चूंकि रेलवे में बहुत बड़े अधिकारी थे इसलिए उन्हें वहां बहुत बड़ा बंगला मिला था। अब वे रिटायर हो गए हैं तो बंगला उनका हाथ से चला गया इसलिए वह यहां रहने आ गए हैं। एक महीना पहले ही उन्होंने अपने किराएदार को हटा दिया था। तुम्हारी उनसे मुलाकात हुई कि नहीं? किसी दिन उन्हें घर पर चाय पर बुला लो। मिश्रा जी ने अपनी पत्नी से कहा
उनकी पत्नी बोली, हां! कल शाम को तो उनसे मुलाकात हुई थी। केवल मियां बीवी है। मगर उनसे मिलकर मुझे लगा वे लोग बहुत दुखी लगते हैं। जरा पता कीजिएगा कि क्यों दुखी रहते हैं।
मिश्रा जी ने कहा, " अभी अभी मेरा उनसे परिचय हुआ है। मुझे उनके बारे में बहुत ज्यादा पता नहीं है। हां, उन्होंने बताया था कि कुछ बरसों पहले उनका बाईपास सर्जरी किया गया था। अब वह स्वस्थ हैं। उनके बच्चे बाहर रहते हैं। इसीलिए वे यहां अकेले है।आज शाम उन्होंने हमें अपने घर बुलाया है। उनकी कुछ समस्याएं है। देखता हूं क्या किया जा सकता है।"
शाम को मिश्रा जी उनके यहां पहुंचे। उनका ड्रॉइंग रूम काफी डेकोरेटेड था। सोफे पर एक प्लास्टिक का कवर पड़ा था। शर्माजी ने उसे हटाते हुए कहा, भाई साहेब यहां धूल बहुत आती है इसीलिए ढंक कर रखता हूं। मिश्रा जी को बैठाने के बाद वे कुछ काम से अंदर चले गए और करीब दस मिनट बाद ही वापस आए। तब तक मिश्रा जी कभी कमरे की सजावट देखते तो कभी सेंटर टेबल के नीचे रखी वर्षों पुरानी मैगज़ीनों का कलेक्शन देखते। ड्रॉइंग रूम में टी वी नहीं थी और गर्मी भी कुछ ज्यादा थी क्योंकि कोई ए सी नहीं लगा था।
शर्माजी से औपचारिक बाते होने के बाद मिश्रा जी ने ए सी एवं टी वी न लगाने के बारे में पूंछा तो उन्होंने कहा, " ए सी और टी वी तो मैंने केवल अपने कमरे में ही लगवाया है। ड्रॉइंग रूम में तो लोग थोड़ी देर के लिए बैठते हैं। लोग आते हैं, थोड़ी बात करते हैं फिर चले जाते हैं। फिर यहां टी वी और ए सी कि क्या जरूरत? फंखे के बारे में बताया कि उन्हें गिफ्ट मिला था जिसे बहुत दिनों से संभाल कर रखा था। आज काम आ गया।" फिर उन्होंने अपनी एक एक करके अनेकों समस्याएं बताईं। उनकी सबसे बड़ी समस्या थी कि यहां कोई काम करने वाला नहीं मिलता।
उन्होंने बताया कि उनके पास एक कुत्ता भी है। पहले उसकी देखभाल करने के लिए ढेर सारे नौकर थे। बड़ा सरकारी बंगला था। कुता भी एक अलग कमरे में रहता था जिसमें ए सी भी लगा था। यहां घर बहुत छोटा है। उसे बहुत गर्मी लगती है इसलिए वह मेरे कमरे में रहता है। रात में भी दो तीन बार उसे बाहर ले जाना पड़ता है जो मुझे ही करना पड़ता है। मैं चाहता हूं कि उसकी देखभाल के लिए एक नौकर मिल जाए। कोई इसे ले लेता तो छुट्टी मिल जाती। गोल्डन रिट्रीवर नश्ल का डॉग है, मैं सस्ते में दे दूंगा। इसकी सेवा के लिए एक दो आदमी आए, मगर पूरी देखभाल का चार हजार मांग रहे थे जो बहुत ज्यादा है। मैं चाहता हूं कि इस डॉग से छुटकारा ही मिल जाता।
इतने में उनकी पत्नी जी आ गई। उनकी पत्नी बोली, " बैठिए मिश्रा जी। ठंडा क्लेंगे, या गरम? मिश्रा जी थोड़ा महसूस कर रहे थे कि इन लोगों कि समस्या की जड़ कहां है, लेकिन संकोचवश कुछ नहीं कह पा रहे थे।
तभी उनकी काम करनेवाली आ गई तो अंदर से मिशेज शर्मा की तेज आवाजें आने लगी। राधा तुम सुबह क्यों नहीं आई? मैं तुम्हारे एक मीटिंग का पैसा काट लूंगी, मैं तुम्हे देखने के लिए दो हजार नहीं देती हूं। राधा न आने का कारण बता रही थी मगर मिसेज शर्मा मान नहीं रहीं थी। राधा कुछ देर सुनती रही फिर बोली आपने क्या मुझे दो हजार में खरीद लिया है। आपका कुत्ता इतना गन्दा करता है कि कमरे में पोंछा लगाते समय बहुत दुर्गंध आती है। मैं आपके यहां काम नहीं कर पाऊंगी। जितने दिन काम किया है उसका हिसाब कर दीजिए। मैं बाहर बरामदे में खड़ी हूं, और वह बिना कुछ सुने वहां से चली गई।
मिश्रा जी ऐसे में सोच रहे थे कि अब चाय नहीं मिलेगी मगर मिसेज शर्मा किसी तरह चाय और नाश्ता ले ही आई।
मिश्रा जी से शर्माजी बोले," देखिए भाई साहब! यही समस्या यहां पर आपकी कॉलोनी में है।" मिश्रा जी से नहीं रहा गया। वे बोले, "आप बहुत बड़े पद से रिटायर हुए हैं। आपने पेंशन योजना का लाभ तो लिया ही होगा।" शर्मा जी ने बताया कि "लगभग नब्बे हजार रुपए महीने तो मिल ही जाते हैं। हम दो ही प्राणी यहां पर हैं। दोनों बेटे विदेश में सेटल हो गए हैं। हम लोग का सब काम चल जाता है।"
मिश्रा जी बोले," रिटायरमेंट के समय भी आपको ग्रेच्युटी, जीपी एफ एवं पेंशन आदि से पचासों लाख रुपए मिले होंगे। आपकी अपनी बचत के भी पैसे आपके पास होंगे। इस सब के बावजूद भी आप परेशान हैं । अगर आप थोड़ा ज्यादा पैसा देकर काम करने वाले को बुलाएंगे और उन्हें खुश रखेंगे तो इस तरह की नौबत ही नहीं आएगी। आजकल दो हजार की कमाई में क्या होता है। राधा के भी तो बाल बच्चे हैं। अगर ऐसे ही कामवाली छोड़कर जाती रही तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। देखिए मैं कुछ करता हूं।" मिश्रा जी ने राधा को अंदर बुलाया।
राधा ने बताया," साहब हम लोग यहां पास में एक झुग्गी में रहते हैं। रहने वाले हम बिलासपुर के हैं। पेट के खातिर हम लोग यहां पड़े हुए हैं। मेरे तीन बच्चे हैं। मुझे चार घरों में काम करना पड़ता है तब खाना मिल पाता है। अपनी बीमारी की हमें चिंता नहीं है मगर बच्चों की बीमारी देखी नहीं जाती। आज सुबह ही छोटी बेटी को तेज बुखार चढ़ आया था, मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। सभी घर में दो बार रोजाना जाना पड़ता है। सुबह चार बजे उठ जाती हूं, पति, बच्चो और सास का खाना बना कर, नहाती धोती हूं और सात बजे घर से निकाल जाती हूं। घर में काम करके मुश्किल से रोज औसतन ढाई से तीन सौ ही कमा पाती हूं इसीलिए जो समय मिलता है मैं सड़क की पटरी के किनारे मिट्टी के बर्तनों की दुकान लगती हूं। सोचती हूं कि किसी अच्छी जगह काम मिल जाता जो पूरे दिन काम करवाता तो मुझे चार जगह नहीं जाना पड़ता।
फिर बोली कि महंगाई के इस जमाने में इतने कम कमाई में छ: प्राणियों का गुजारा कैसे चलता होगा आप समझ सकते हैं। भगवान जनता है कि आज सुबह से मैंने केवल एक बासी रोटी चाय के साथ खायी है। घर में आटा खत्म है। कंट्रोल बंद है। पहली का इन्तजार है। लोग पहली को पैसा ही नहीं देते जबकि उन्हें पहली को वेतन मिल जाता है। कई बार मांगना पड़ता है। दो हजार रूपए भी दो तीन बार में दे पाते हैं। जब काम से छुट्टी पाऊंगी तो बनिया से कुछ उधार लाकर बच्चों के लिए रोटी बनाऊंगी। बच्चों को दाल तो कभी-कभी ही नसीब होती है। वे केवल भात, नमक तेल खा कर जीते हैं। राधा आंसू बहाने लगी।
शर्मा जी ने पूछा, "और कौन है तुम्हारे घर में तुम्हारा पति भी तो कमाता होगा?"
राधा ने बताया, "साहब मैं हूं, मेरे तीन बच्चों के अलावां मेरी एक सास है और पति है। पति थोड़ा बहुत काम करता है मगर वह भी मेरी कमाई पर ही ऐश करना चाहता है। वह चाहता है कि मैं कमा कर लाऊं और उसे दूं और वह शाम को ठेके से दारू की बोतल लेकर अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती करें। वैसे तो मेरा पति किराए का ठेला लेकर सब्जी की दुकान लगाता हैं। उनकी थोड़ी कमाई तो हो जाती है परंतु मुझे कुछ देता नहीं। कहता है ठेले का किराया दे दिया, कभी नातेदारी में खर्च कर देता है, तो कभी कपड़े, दवा में खर्च करता है। हमें भी तो सभी कुछ उसी बाजार से समान खरीदने पड़ते हैं जहां से अमीर लोग लेते हैं। कभी दिवाली तो कभी दशहरा होता है। बच्चों के हाथ पर कुछ न कुछ रखना पड़ता है। पुलिस वाले और नगर महापालिका वाले भी बहुत परेशान करते हैं। पटरी पर दुकान लगाने के बदले आए दिन किसी न किसी अधिकारी को कुछ देना ही पड़ता है। हम पैसे नहीं दे पाते तो सब्जी ही उठा ले जाते हैं। शायद तभी उनके घर तरकारी बन पाती होगी।"
साहब जी! मेरा आदमी भी मेरे पैसे छीन लेता है। न देने पर मारता है जब उसे दारु पीना होता हैं। सब हमारी कमाई पर जिंदा रहना चाहते हैं। कहता है और कमाओ मगर मुझे पैसे चाहिए। कभी कभी तो गलत काम की सलाह भी दे डालता है। फिर राधा ने एक तगड़ी सी गाली अपनी आदमी को दी।
मिश्रा जी ने राधा को डाटते हुए चुप कराया और कहा, "तुम मेरी बात मानो। रसोई में जाकर काम करो। मैं शर्मा जी से बात कर लूंगा।"
अब वे शर्मा जी की तरफ मुड़े और सबसे पहले कुत्ते की बात उठाई। कहा कि कुत्ता बहुत वफादार होता है, आदमियों से भी ज्यादा। वह अपका ध्यान रखता होगा। कई वर्षों से आपके साथ रहा है। आपको उसे अपना एक फैमिली मेंबर् मानना चाहिए। अब वह कहीं नहीं जा सकता। कोई ले भी जाएगा तो वापस आ जाएगा अथवा रो- रो कर मर जायेगा और यह आप सह नहीं पाएंगे। आप उससे क्यों ऊब गए हैं। उसकी सारी व्यवस्था आपको ही करनी है। उसे एक परिवार की सदस्य की तरह हर सुविधाएं दीजिए। खर्च होने की चिंता मत कीजिए। हो सकता है उसके भाग्य से ही आपके पास बहुत पैसे हों।
दूसरी बात! अब आपको सुख पूर्वक रहना है जितना भी भगवान ने आपको दिया है उसका फायदा उठाइए। आप दो ऐ सी लगवा सकते हैं। थोड़ा बिजली का बिल ही तो ज्यादा आएगा उसे आप पे करने में समर्थ हैं। समाज को भी कुछ देने का दायित्व हम सभी का है इसलिए राधा को आप फुल टाइम लगा लीजिए। दस बारह हजार कोई ज्यादा नहीं है आप के लिए। वह भी पूरी जिम्मेदारी के साथ आपका सारा काम करेगी।"
शायद शर्माजी को बात समझ में आ गई उन्होंने अपना नजरिया बदल दिया। अब राधा फुल टाइम काम करने लगी है जिससे उसकी कमाई बढ़ गई है और शर्माजी की समस्याएं भी कम हो गई हैं।
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