लघुकथा ( तीन बेचारे ✍?)
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"झील किनारे बैठ के सोचू क्यों बचपन तू दूर गया"
"अरे यार ! हमने झील किनारे मिलने का कार्यक्रम इसलिए नहीं बनाया था कि तुम "पुष्प सैनी" की यह कविता गुनगुनाओ" --- सुरेश ने उखड़ते हुए कहा
"तो यार तुम बता ही नहीं रहे हो, हम आख़िर मिले क्यों हैं झील किनारे" ---- नागेश बोला
"और क्या पन्द्रह मिनट हो गए बैठे-बैठे" ---- महेश ने कहा
देखों, हम तीनों को अपनी पढ़ाई-लिखाई से निपटे तीन साल हो गए हैं और तीन साल से हम बेरोजगार निठल्ले हैं ।अब तो मुझे रिश्तेदारी में भी जाने में शर्म आने लगी है" --- सुरेश ने कहा
"अरे मैं तो चाहता हूँ कोई रिश्तेदार घर ही न आए, क्योंकि उनका आते ही वही सवाल
"बेटा ! कुछ काम करने लगे क्या " ? महेश बड़बड़ाया
"और ऊपर से यह भी कह देंगे कि कुछ कर रहे होते तो एक अच्छा रिश्ता था तुम्हारे लिए लेकिन अब कर ही क्या सकते हैं "---- नागेश बुदबुदाया
"इससे पता चलता है कि हम तीनों के हालात ही नहीं रिश्तेदार भी एक जैसे हैं "
तीनों ठहाके लगाने लगे ।
कुछ देर बाद सुरेश ने कहा--"कुछ तो करना होगा न" ।
"लेकिन क्या "
"देखों यार दिवाली आ रही है क्यों न पटाखे बेचे " --- महेश ने कहा
"अच्छा और दिवाली के बाद कौन खरीदेगा पटाखे"
"लेकिन कोई बड़ा काम करने के लिए हमारे पास रुपय भी तो नहीं है"
तीनों उदास बैठ गए ।
तभी एक नवविवाहित जोड़ा वहाँ आया और उनसे पूछा---"भैया! यहाँ पर पानीपूरी वाले का ठेला था, वह नहीं आया क्या "?
"जी हमें नहीं मालूम "--- सुरेश ने कहा
वह दोनों चले गये ।
फिर महेश बोला ---" काश किसी अमीर की इकलौती लड़की से शादी हो जाए, यार मजे ही मजे हैं फिर तो" ।
"हा हा हा"
"अमीर लड़की हम जैसे निठल्ले बेरोजगार से क्यों शादी करेंगी भला, वो अमीर हैं बेवकूफ नहीं"--- सुरेश ने झल्ला कर कहा
तीनों फिर ख़ामोश बैठ गए ।
कुछ देर बाद नागेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा---"क्यों न हम दो भैंस लाए और उसका दूध बेचे ।शहरों में भैस के दूध की बड़ी भारी डिमांड है भाई" ।
"हे भगवान! किन गधों से पाला पड़ा है ।एक भैस कई-कई लाख रुपए की आती है ।हैं तुम्हारे पास "---- सुरेश ने माथा पीटते हुए कहा
"नहीं भाई" --- महेश और नागेश एक साथ बोले
"एक तो हमें पता ही नहीं हैं कि करना क्या हैं "
"काश किसी अमीर खूबसूरत लड़की को मुझसे प्यार हो जाता"
महेश इससे आगे कुछ कहता उससे पहले सुरेश और नागेश ने उसे दो-चार लात-घूंसे जड़ दिये
"भूत उतरा तुम्हारा"
महेश मुँह लटकाकर चुपचाप बैठ गया ।
तभी दो महिलाएँ वहाँ आयी और उनसे पूछा---"यहाँ गोलगप्पे वाला आता था, चला गया क्या "?
"जी मालूम नहीं "
वह दोनों चली गयी ।
"भाई ! ये पानीपूरी की बड़ी भारी डिमांड है लेडिज में, क्यों न पानीपूरी का काम किया जाएँ" --- नागेश ने डरते-डरते कहा
"अरे वाह! आइडिया बुरा नहीं है , बल्कि मस्त है ।यह काम हर मौसम में बेधड़क चलता है, तो डन रहा" --- सुरेश
"लेकिन इसके लिए ठेले की जरूरत पड़ेगी" --- नागेश
"उसकी चिन्ता तुम मत करो ।चाचा का पुराना ठेला पड़ा है वही ले लेंगे "---सुरेश
"तो फिर डन है भाई"--- नागेश ने खुश होकर कहा
महेश को ख़ामोश देखकर नागेश ने पूछा---"क्या तुम्हें आइडिया पसंद नहीं आया" ?
महेश----" यह कोई बड़ा काम नहीं है और लोग भी हँसेंगे " ।
"देखो यार ! बड़े काम के लिए रुपय हमारे पास है नहीं और इस छोटे काम में मुनाफा बहुत हैं और रही लोगों की बात तो उन्हें तो कुछ करोगे तब भी कुछ न कुछ कहना हैं और नहीं करोगे तब भी" ---- सुरेश ने बहुत संजीदगी से कहा
"और इस काम में खूब लड़कियाँ आएंगी गोलगप्पे खाने , क्या पता किसी को तुझसे प्यार हो जाए "---- नागेश ने तीर छोड़ा
"अरे यार फिर तो डन है" ---- महेश चहक उठा
"चले फिर"
"कहा"
"अपनी मंजिल की तरफ"
तीनों गुनगुनाते हुए चल पड़े ।
पुष्प सैनी 'पुष्प'