आई तो आई कहाँ से - 6 Dr Sudha Gupta द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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आई तो आई कहाँ से - 6

बाल उपन्यास

आई तो आई कहाँ से

  • (6)
  • आई तो आई कहाँ से ?
  • आज सोमवार था, सप्ताह का प्रथम दिवस l विद्यालय में प्रिंसपाल सर ने प्रार्थना के उपरांत सबको सूचित किया कि अगले हफ्ते कक्षा 5 से 8 तक के विद्यार्थी जो राष्ट्रीय वन उद्यान बांधवगढ़ जाना चाहते हैं, वे अपने माता - पिता से लिखित परमिशन लेकर आवें l जोरदार तालियों से प्रांगण गूंज उठा l सभी बच्चों में वन उद्यान घूमने की उमंग थी l सभी कक्षा शिक्षकों ने अपनी - अपनी कक्षाओं से सूची बनाना प्रारम्भ की l करीब 50 बच्चों की सूची बनी l उसी हिसाब से बस तय की गई l निर्धारित दिन और समय पर सभी पूरी तैयारी से प्रातः 6 बजे स्कूल प्रांगण में इकट्ठे हुए l मीनाक्षी और सक्षम को देखकर बच्चे आक्क्षी करने ही वाले थे कि आरुषि ने सबको रोका - बड़े सयानों की तरह l देखो - आज ये सब नहीं करना वरना किसी के ‘ रंग में भंग ‘ पड़ सकता है l सबको हंसी - ख़ुशी से चलना है l

    कटनी से बस द्वारा करीब डेढ़ घंटे में सभी बांधवगढ़ पहुँच गए l पूरे रास्ते बच्चों ने खूब अंत्याक्षरी खेली, गीत गाने गाये l वहां पहुंचकर सबने मुँह - हाथ धोकर वन विहार के पूर्व शेष - शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति के दर्शन किये, गुफाएं देखीं और फिर छह - सात खुली जिप्सी में सभी शिक्षक और बच्चे बैठे, साथ में ड्राइवर जो एक्सपर्ट गाइड भी था l सारे बच्चों में एक ही अभिलाषा थी, कब शेर राजा के दर्शन हों l ड्राइवर बतलाते जा रहा था - देखो - देखो यह शेर के पैरों के निशान हैं, शेर यहीं से गुजरा होगा l थोड़ी दूर और गाडी चली l रास्ते में बारहसिंगा , हिरण, नीलगाय, हाथी, लंगूर उछलकूद करते दिखाई दे रहे थे l बारहसिंगों के सींगों की खटाखट अजीब सा संगीत छेड़ रही थी l रंग - बिरंगे पक्षी उड़कर पेड़ों पर फुदक रहे थे l कहीं खरगोश, गिलहरियां शैतानियां करते तो कहीं गिरगिट रंग बदलते l मयूरों की पिऊं पीऊं,,कोयल की कुहु कुहु जंगल की सुंदरता बढ़ा रहे थे l सारे बच्चे आनंदित हो रहे थे तभी उन्हें एक हाथी मोटी - मोटी जंजीरों से बंधा हुआ दिखाई दिया l पंकज ने कहा - इसे इस तरह क्यों बाँध रखा है ? प्रिंस ने कहा - अरे, इसके तो आंसू भी बह रहे हैं l आरुषि ने कहा - ये तो जानवरों के साथ अन्याय है l राष्ट्रीय वन उद्यान में तो इन्हें आजाद रहना चाहिए l ड्राइवर ने बताया - यह हाथी बहुत उद्दंड हो चुका है, पूरे जंगल को बर्बाद करता है l इसीलिए बाँध कर रखा है l गाड़ी उसके पास से गुजरी तो आरुषि ने देखा, हाथी के शरीर में कई घाव थे l वह बोली - हाथी बहुत समझदार प्राणी होता है, यदि उसे प्यार से सिखाया जाय तो वह सब सीख जाता है l हमने ‘ हाथी मेरे साथी ‘ फिल्म में भी देखा था l ड्राइवर आरुषि की बात सुनकर उसकी द्रवित आँखों को देखने लगा l तभी ड्राइवर ने बात बदलते हुए कहा - ये देखो, ये शेर की पोट्टी है, शेर यहीं से गुजरा है l बच्चों ने कहा, क्या हम शेर की पोट्टी और उसके पैर के निशान देखने आये हैं ? लगता है, शेर राजा आज देखने न मिलेंगे l ड्राइवर ने कहा - यदि अभी सामने आ जाएगा तो घिग्घी बंध जायेगी l प्रिंस ने कहा - लगता है, हम लोगों के डर से शेर राजा आज बाहर नहीं निकल रहे हैं l सारे शिक्षक उदास हो चुके थे l तभी प्रिंसपाल सर ने गुप्ता मैडम से कहा - मैडम जी, आप दुर्गा माता की स्तुति करिये, देखो भला कैसे माता की सवारी नहीं आती है ? गाड़ी वाले भैया, जरा गाड़ी एक तरफ खड़ी कर दो l जंगल में हो - हल्ला न करने की हिदायत पहले ही दी जा चुकी थी l मैडम ने धीरे - धीरे माता की स्तुति करना प्रारम्भ की -

    ‘ दानियों में दानी वरदानी कल्याणी, माता दुर्गा भवानी आज सिंह पर पधारी हैं ....... ‘

    सभी ने हाथ जोड़कर नेत्र बंद कर लिए l जैसे ही स्तुति ख़त्म हुई, सर ने कहा - अब देखें, माता की सवारी आती है या नहीं ? यह एक भक्त के लिए चुनौती थी l सारे बच्चे चौकन्ने होकर देखने लगे l तभी आगे वाली गाड़ियों के ड्राइवर ने कोड में इशारा किया - यहीं है ..... आ रहा है .... शांत, शांत ... और गाड़ी के पास ही करीब बीस कदम पर घनी झाड़ियों के बीच से निकल कर एक युवा सिंह बीच सड़क पर आकर खड़ा हो गया l सचमुच सभी की घिग्घी बंध गई l शेर गाड़ी की तरफ मुंह करके अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ देख रहा था l सब बच्चे एक दूसरे का हाथ थामकर सांस रोके बैठे थे l शेर दो कदम आगे बढ़ा, फिर पीछे पलटकर गाड़ी की ओर देखने लगा l इस अद्भुत दृश्य से सभी अचंभित थे जैसे ही वह जाने लगा प्रिंसपाल सर ने मोबाईल पर सावधानी से एक फोटो क्लिक की l शेर राजा जा रहे थे, यह कहते हुए कि फिर मिलेंगे l सभी के चेहरों पर वन विहार की पुलक दिखाई दे रही थी l अब सभी गाड़ियां वापस हो रही थीं रेस्ट हॉउस की ओर l सभी ने रेस्ट हॉउस में जलपान किया और रवाना हो गए जंगल के नैसर्गिक सौंदर्य और वन्य प्राणियों के जीवन को अपने में समेटे हुए l दूसरे दिन का अवकाश प्रिंसपाल सर ने घोषित कर दिया था ताकि सभी बच्चे आज के दिन को डायरी में अच्छी तरह कैद कर सकें l

    सारे बच्चे विद्यालय में असीम उत्साह से भरे दिख रहे थे l प्रार्थना प्रांगण में प्रिंसपाल सर ने बांधवगढ़ राष्ट्रीय वन उद्यान भ्रमण के अनुभवों को व्यक्त करने के लिए विद्यार्थियों को आमंत्रित किया l सभी ने अपनी - अपनी जिज्ञासाओं, उत्सुकताओं को संस्मरणात्मक शैली में व्यक्त किया l आरुषि ने कुछ पंक्तियाँ सुनाईं -

    प्रगट हुए जब वनराजा, हम सब गए सहम

    हाथ जोड़कर बोले फिर, हम पर करना रहम

    शिक्षकों ने राष्ट्रीय वन उद्यान की विशेषता बतलाई l पूरा विद्यालय प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा l नवीन उत्साह से भरे छात्र और शिक्षक अध्ययन - अध्यापन की तैयारी में लग गए l

    ***

    दीपावली का त्यौहार नजदीक था l सभी घरों में साफ़ - सफाई, रंगाई - पुताई शुरू हो गई l बच्चे अपने - अपने घरों को नये ढंग से सजाने में अपने माता - पिता की मदद भी कर रहे थे l आरुषि के घर में भी पुताई का काम शुरू हो गया था l घरों का कचरा लोग बाहर कूड़े के ढेर में फेंक रहे थे जिसे कचरा गाड़ी उठाकर ले जायेगी l क्योंकि सारे देश में स्वच्छता अभियान ‘ स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत ‘ चल रहा है l शाम के वक़्त बच्चे फिर अपनी - अपनी साईकिल पर घूमने निकल पड़े l आज आरुषि के साथ उसकी सचमुच की गुड़िया यानि दुर्गा भी उसके साथ थी l वह बेहद प्रसन्न थी l अब वह छोटे - छोटे वाक्य भी बोलने लगी थी l आरुषि दुर्गा को साईकिल पर बिठाकर घुमाने में गर्व का अनुभव कर रही थी l आज तो टीना, मीना भी अपनी नई साईकिल में घूम रही थीं l उनके मम्मी - पापा ने नवरात्रि में नई साईकिल दिलवाई थी l तभी प्रिंस, पंकज, मनीष भी आ गए l सारे बच्चे मंदिर के पास वाले चबूतरे पर थककर बैठ गए

    दुर्गा भी वहीँ खेलने लगी l सभी अपनी - अपनी बॉटल से पानी पीने लगे l दुर्गा चबूतरे से नीचे उतरकर दौड़ने लगी l तभी एक कुत्ते का पिल्ला भूं भूं करते निकला l दुर्गा उसे पकड़ने दौड़ी l पिल्ला दौड़ते हुए उसे पीछे देख रहा था मानो कह रहा हो - आओ मुझे पकड़ो l दुर्गा उसे पकड़ने पीछे - पीछे भागी l कुत्ता उसे दौड़ाते हुए झाड़ियों के पीछे घुस गया l दुर्गा उसे पकड़ने वहां जाने लगी तभी आरुषि का ध्यान झाड़ियों के पीछे गया l दुर्गा कुत्ते के पिल्ले को पकड़ रही थी l आरुषि के दिमाग में पिछला घटनाक्रम घूम गया l वह जोर से चीखी - दुर्गा ...... उसने झाड़ियों के बीच से दुर्गा को खींचकर अपने में भींच लिया l वह भयभीत और रुआँसी होकर कहे जा रही थी - दुर्गा, तुम कचरे के ढेर में नहीं जाना वरना कुत्ता ..... नोंच लेगा .... l वह काँप रही थी, उसने देखा, कुत्ता कचरे के ढेर को पंजों से कुरेद रहा था l उसे लगा, कहीं फिर से तो नहीं सचमुच की गुड़िया कचरे के ढेर में पड़ी है ? वह मन ही मन बुदबुदा रही थी, आखिर सचमुच की गुड़िया कचरे में आई तो आई कहाँ से ? क्या गुड़िया कचरे के ढेर में ही पैदा होती है ? माँ कहती है, मुझे भी वह अस्पताल से लाई थी l कहीं मैं भी तो नहीं ………...?

    ***

    डॉ. सुधा गुप्ता ' अमृता '