Ujwala ki kahani books and stories free download online pdf in Hindi

उज्वला की कहानी

रक्षाबंधन का दिन था ..

सुबह का काम जल्दी निपटाकर उज्वला राखी लेकर अपने मायके निकल पडी |

भैय्या कही बाहरगाव जा रहे थे इसलिये उन्होने जल्दी बुलाया था उसको |

जैसे ही वो वहां पहुची भाभीने दरवाजा खोला ..और बिना कुछ बात कीये अंदर चली गयी| उज्वला को समझ नही आया अब क्या करे ?

भाभीने तो अपनी नाराजी दिखा दि थी..इसका मतलब अंदर नही जाना था |

वो चुप चाप बाहर बैठी रही|

अंदर से बच्चे बाहर आये तो वो उससे लिपट गये और उससे बाते करने लगे |

उन्हे गोदमे लेते उज्वला को बहोत अच्छा लग रहा था |

इतमेने अंदर से भाभी ने आवाज लगाई ,

चलो बच्चो स्कुल के लिये देरी हो रही है”..फिर बच्चे अंदर चले गये |

अंदर से भैय्या आये और बोले चलो उज्वला अंदर राखी बंधाओ,देरी हो रही है|

उज्वला अंदर गयी ,भगवान के सामने से कुंकुम तिलक उठाया और भैय्या को लगाया |राखी बांध ली और उसकी आरती भी उतार ली|

आरती की थाली में दो पेडे रख्खे थे |

एक उसने भैय्या के मुह में डाला और उसके पैर छुये |

भैय्याने एक सौ की हरी पत्ती आरती की थाली में डाल दि|

उसकी तरफ देखकर झूठ मुठ हंस दिये और भाभीसे कहकर अपना ब्रिफकेस लेके निकल पडे |

बच्चे भी स्कुल चल दिये थे ...फिर ऐसेही पांच मिनट उज्वला बैठी रही |

मगर भाबी उससे बिना कुछ् बोले अंदर अपना काम करती रही |

फीर उज्वला भी ,“भाबी मै निकल रही हू” ऐसे बोलकर घरकी तरफ चल दि |

उज्वला वैसे तो भैय्याकी बहोत प्यारी बेहेना थी|

मगर जाने क्या हुआ था उन्हे ..आजकल ठीकसे बात भी कर नही रहे थे |

पिछले दो चार बरसोसे वो सिर्फ भैयादुज और रक्षाबंधन के समय घर जाती थी|

फिर भी भैय्या भाबी का बर्ताव पेहेले जैसा नही रहा था |

उज्वला के माता पिता नही थे |उनके जाने के बाद भैय्याने ही उसकी शादी करवा दि थी| उज्वला का घर बहोत बडा था |

उस गावमे उनका बडा कारोबार था उज्वलाकी बच्ची के जनम के बाद चार पांच बरस सब अच्छा चल रहा था |

मगर बादमे न जाने किस की नजर लगी उस घरको |

सब बिझीनेस धीरे, धीरे चौपट हो गया |

घरदार सब बेचना पडा | दो बडे जेठ थे वो भी घर छोडकर काम की तलाश में बाहरगाव चले गये |

ये भी कम था की अचानक उसके पती को शराब की बुरी लत लग गयी |

ये सब बुरा वक्त देखकर सास ,ससुर एक के बाद एक चल बसे |

उन्हे ये सदमा बर्दाश्त नही हुआ शायद !

घर की ये हालत देखकर उसे भी कही कही काम खोजना पडा |

वो कुछ खास पढी लिखी तो थी नही ,इसलिये दो चार घर रसोई का काम मिला था उसे |

पेहेले पेहेल वो हप्ते दो हप्ते मैके जाती थी कुछ घरके हालात सुनाती थी|

मगर भैय्या और भाबी को लगता था उसे मद्द चाहिये शायद इसलिये घर आती है |उज्वलाने भाई की तरफ से कोई मद्द नही ली ,थी ना कभी कुछ मांगा था | फिर भी उन दोनो का बदलता रवैय्या देखकर उसने मायके आना जाना छोड दिया था |

सालमें सिर्फ दो बार वो अपने भैय्या के लीये मायके जाती थी|

ऐसेही कई साल गुजर गये |

दिन एक जैसे कहां रेहेते है?

उज्वला के भी दिन बदलने लगे |

उसके पती की शराब की लत जैसे अचानक लगी थी वैसे अचानक छुट गई |

उज्वला इस बात को एक “करिष्मा “मानने लगी |

फिर अचानक उज्वला के पती ने एक नया कारोबार शुरू किया |इस कारोबारमे मिले हुये उसके नये दोस्त बहोत अच्छे थे |

देखते देखते एक दो बरस में कारोबार बहोत अच्छा चलने लगा |

विदेश में भी उनके प्रोडक्ट बीकने लगे |

उज्वला के पती का अब हर दो चार महिने बाद विदेश आना जाना होने लगा |

तभीसे अचानक उसके भैय्या भाबी का घर आना ,जाना चालू हो गया |

बच्चे फिरसे एक दुसरे के घर आने, जाने लगे ,एक साथ खेलने लगे |

उज्वला का पती बहोत बिझी था मगर भैय्या के घर महिने में एक बार तो उन सबको खाने का न्योता आने लगा |

उज्वला ने काम करना कब का छोड दिया था |

वो तो अब ऐशोआराम की जिंदगी बसर कर रही थी|

पिछले सब बरस अब एक बुरे “सपने “की तरह लग रहे थे उसको |

जैसे ही भैय्या भाबी उनके घरमें आने लगे |

उज्वला भी उनको मेहेंगे मेहेंगे गिफ्ट देने लगी |

भाभी को सजने धजने का बहोत शौक था |

उज्वला की तरफ से मिलने वाली इम्पोर्टेड चीजे उसे बहोत भाती थी|

अब उन दोनो का बर्ताव पेहेले से कई गुना अच्छाऔर अलग था |

मानो बीच सालोमें जैसे कुछ हुआ ही नही ...

उज्वला ये सब भली भान्ती जानती थी|

अच्छे दिन आने से वो अपना बुरा वक्त भुली नही थी|

उन दिनोकी सब बाते उसे ज्यो की त्यो याद थी |

वक्त भले कितना भी बुरा क्यो न हो उसने अपने स्वाभिमान कभी खोया नही था , ना कभी किसीसे कुछ मद्द मांगी थी |

और फिर रक्षाबंधन का दिन करीब आने लगा |

दो चार दिन पेहेले ही भाभी उज्वला के घर आयी और उसने उज्वला के घरके सब लोगोको रक्षाबंधन का न्योता दिया |

उस दिन रविवार था तो सबको छुट्टी थी |

वो दिन सब लोग भैय्या के घर ही बिताये ऐसा भाभी का केहेना था |

भैय्याने भी फोन करके उसके जीजू को “खास “आमंत्रण दे दिया था |

उज्वला का पती भी उस दिन कही बाहर जानेवाला नही था तो उसने भी आनेकी तय्यारी दिखाई |

उज्वला ने बहोत सारे गिफ्ट खरीद लिये उस दिन के लिये |

भाभी के लिये एक सोने का हार ,भैय्या के लिये ब्रोकेड सुट ,बच्चोके के लिये कपडे और बहोत सारे खिलौने बहोत सारे चोकलेट और मिठाई भी ..|

उज्वला का पती ये सब देखकर मन ही मन मुस्करा रहा था |

उस दिन सुबह से भाभी के फोन आने शुरू हुये ,कब आ रहे हो ..जल्दी आ जाओ...ऐसे |करीब दस बजे के करीब अपनी बडी गाडी लेकर उज्वला के घर के सब लोग भैय्या के घर पहुंचे |

गाडी का होर्न सुनकर भैय्या बाहर आये तो गाडी देखकर चकित से रह गये

और गाडी खुद उज्वला चला रही थी |

जैसे ही गाडी से सब लोग उतर गये ,भैय्या ने पुछा ,

“जीजू ये नयी गाडी कब खरीदी “

उज्वला के पती बोले ,”क्या करे साले साब आपकी बेहेन का जन्मदिन ही पास आ रहा है ..उनकी जिद थी मुझे बडी गाडी चाहिये और वो मै खुद चलावूंगी

उनकी डिमांड तो पुरी करनी पडी..कलही खरीदी ये कार …|

“हमारी बेहेना के बहोत ठाठ है..क्यो उज्वला ?भैय्या ने प्यारसे उज्वला को अपनी ओर खींचा ..|

उज्वला भी ख़ुशी ख़ुशी भैय्या से सीमट गयी ...|

भाभी घरसे बाहर आई तो देखते ही रह गयी |

उज्वला की नयी कार ,उसकी उंची साडी ,उसके गेहेने ..भाभी तो जैसे चकित हो गयी ..उपर से सारा मुहल्ला दरवाजा खिडकीयोसे झांक रहा था .|

फिर सब लोग अंदर चले गये |भाभी और भैय्या उज्वला के आगे पीछे डोल रहे थे |पेहेले राखी की रसम पुरी हो गयी | भैय्याने एक उंची सारी उज्वला के हाथ में थमा दि |उज्वला ने भी भैय्या और भाभी के लिये जो लाया था उनको दे दिया |

बादमे बच्चो का रक्षाबंधन हुआ |उज्वला की बेटी के लिये भी भाभी ने अच्छी फ्रोक खरीदी थी |उज्वला ने भी बच्चो को खिलौने और चोकलेट दे दिये

ये सब तो चल रहा था मगर उज्वला तो जैसे भूतकाल में जी रही थी |

उसके बुरे दिनोमे हुआ भैय्या भाबी का बर्ताव उसके मन से जा नही रहा था|

आखिर भोजन का समय हो गया |भाभी ने सबको डायनिंग टेबल पर बुलाया |

बहोत सारे व्यंजन बनाये थे भाभी ने |पंच पकवान तो थे ही,उसके साथ उज्वला की पसंद का दहीबडा भी था |

“उज्वला सब पकवान है,” लेकीन ये दहीबडा मैने खास तुम्हारे लिये बनाया है”ये सुनकर उज्वला हंस दि |

चलो सब खाना शुरू करो ऐसा भाभी ने बोलते ही पेहले उज्वला ने अपनी थाली को प्रणाम कीया और एक एक करके अपने गेहेने उतारने लगी |

पेहेले उसने अपनी सोनेकी चुडिया उतारी और उसपर जलेबी रख दि |

बादमे अपने गले का हार उतारा उसपर लड्डू रख दिया ,हिरेका मंगलसूत्र निकाला उसपर गुलाबजाम रख दिया ,गलेका नेकलेस निकाला उसपर खीर की कटोरी रख दि ,कानके झुमके निकाले उसपर दहीबडा की प्लेट रख दि |

सब अचरज से देख रहे थे ..भैय्या भाभी को कुछ समझ नही आ रहा था ये क्या हो रहा है ...|मगर उज्वला का पती मन ही मन समझ गया था सब |

“ फिर भैय्या ने पुछां उज्वला ये क्या कर रही हो ?गेहेने क्यो उतार रही हो ??? ..”

उज्वला बोली ,” भैय्या मै तुम्हारा आदर करती हू ,मगर आजका खाना और आजका रिस्पेक्ट जो मुझे मिल रहा है ,उसपर सिर्फ मेरी दौलत का हक है इसलिये उसीको खिला रही हू ..क्या मै गलत हुं?

भैय्या भाबी शरमसार हो गये...|

उज्वला ने अपना स्वाभिमान दिखाया था !!!!

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED