पतु ने बजवा दी गेंदारामानी के कनपट्टी के नीचे…! (हास्य कहानी ) harshad solanki द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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पतु ने बजवा दी गेंदारामानी के कनपट्टी के नीचे…! (हास्य कहानी )

कल रात नतू अपनी दुकान से घर की और लौटते हुए हमारी बांकीचाल के कंपाउंड में ही मुझे मिल गए. दीवाली के मौके के चलते बाजार में बड़ी तेजी है; इसलिए उन्हें घर लौटने में देर हो जा रही है.
“अरे सुलू सा’ब, ये “गेंदारामानी” को अपना बिजनेस चलाना नहीं आता और हमारे बिजनेस में सेंध मार रहा है.”
नतू ने गेंदारामानी से होने वाली परेशानियों का दुखड़ा रोते हुए कहा. उसकी बात सुन, में असहाय सा हो गया, उन लोगों का मामला ऐसा है, की कोई आश्वासन देना भी हास्यास्पद लगता; सो, हमारे बीच इधर उधर की दो चार बाते हुई, और नतू बिदा हुआ.!
गेंदारामानी की दुकान नतू की दुकान के बिलकुल बगल में है. जो ग्राहक एक बार उनकी दुकान पर गलती से जा पहुंचते है; वह लौट के फिर कभी नहीं जाते. गेंदारामानी की कोशिश हंमेशा अपनी शर्तों पर ग्राहकों से सोडा निपटाने की रहती है. जो ग्राहक उन से सहमत नहीं होते; उनसे वह किसी अजीब तरीके से पेश आते है की ग्राहक उन से दूरी बना लेते है. जो एक बार उनकी दुकान से लौटते है; वे कभी मुड़ के उनकी दूकान पर नहीं जाते. सो, वह ज्यादातर अपनी दुकान पर मक्खियां मारता बैठा रहता है; और दूसरों की दूकान पर लगी भीड़ को देख-देख जलता और गालियाँ बकता रहता है. कई बार जलन बढ़ जाने पर वह दूसरों की दुकान से ग्राहकों के हाथ पकड़, अपनी दूकान की और खींचता और कम दाम पर दूसरों से ज्यादा अच्छी चीजें देने का दावा करता रहता है. उनकी ऐसी हरकतों से परेशान हो कर कई ग्राहक वहां से चल पड़ते है. ऐसे वह दूसरों का धंधा भी बिगाड़ता रहता है. इस से उनके पड़ोस वाले व्यापारी भी उनसे खफा रहते है. नतू की दूकान बिलकुल उनके बगल में होने के चलते सब से ज्यादा खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है.
पर नतू का बेटा “पतू” बड़ा पराक्रमी है. जब भी उसे अपने पिताजी से कुछ लाभ प्राप्त करना होता है; तब वह बड़ी चापलूसी करने लगता है. और मदद के लिए दूकान पर भी जा पहुंचता है. पर जब भी पतू अपने बाबूजी की दुकान पर रहता है; गेंदारामानी की हिम्मत नहीं पड़ती की वह जरा भी हिले डुले. क्यूंकि वह कई बार पतू से पटखनी खा चूका है. नतू भी त्यौहार के मौके पर पतू को नाराज नहीं करता. क्यूंकि यह उनके हित में है, वरना पतु उसका भी बाप बनने में डेरी नहीं करता.
दो – चार दिन बाद स्कूलों में छुट्टियों के चलते पतू घर पर ही था. वह अपने एक दो दोस्तों को लेकर अपने बापूजी की दुकान पर जा पहुँचा. ग्राहकों की बड़ी भीड़ के चलते गेंदारामानी को वह दिखाई न दिया. रोज के मुताबिक आज भी उनकी दूकान पर कौवे तौलिया ले रहे थे. नतू की दूकान पर ग्राहकों की बड़ी लाइन देख जलन के मारे वह सेंध लगाने पहुँच गया.
पर पतू का उन्हें पता नहीं था. जैसे ही पतू ने उन्हें देखा, उनकी खोपड़ी हिली. उनकी आँखों की भवें तन गई. उनका शरारती भेजा दौड़ने लगा. कुछ ही देर में वह हाथ में पटाखे के रॉकेट और शीशे की बोतल लिए; अपने दोस्तों के साथ गेंदारामानी की दूकान के सामने पड़ गया. शीशे की बोतल को थोड़ा सा टेढ़ा किए; उनका मुंह गेंदारामानी की दुकान की और किए; उस में रॉकेट लगाकर छोड़ने की तैयारी करने लगा.
अचानक ग्राहकों को अपनी दुकान की और खिंच रहे गेंदारामानी की नज़र पतु पर पड़ी. उसके होश कोंश गुल हो गये. ग्राहकों का हाथ छोड़; दौड़ते हुए वह अपनी दूकान के दरवाजे में जा पहुंचा. दरवाजे की दोनों साइड पर अपने दोनों हाथ टिकाये; पतु के रॉकेटों से अपनी दूकान को बचाने के लिए वह रॉकेटों और अपनी दूकान के बीच एक ढाल बन खड़ा रह गया. उसके चश्मे को उसकी यह दौड़ न भाई. सो उसने उसके नाक को छोड़ होंठ पर शरण ले ली. उसका उपरवाला होंठ; चश्मे को थामे रखने के चक्कर में तोते की ऑंधी चोंच सा मुड़; उपर की और हो गया. उसके आँखों के डौड़े गोल-गोल घूमने लगे. वह चिल्लाना चाहता था; पर उसकी आवाज़ हलक में ही अटक गई. बिना आवाज़ के उनका मुँह सिर्फ खुल बंध खुल बंध होने लगा. वह ऐसे खड़ा रह गया जैसे वह कोई शिकारी की जाल में फंसा हुआ बकरा हो; और जल्द ही उनका काम तमाम होने वाला हो. अचानक उसे होश आया और वह दोड़ता हुआ दूकान के अन्दर पहुंचा. और फट से दरवाज़ा एवं खिड़कियाँ बंध कर ली. अपने आप को अन्दर बंध किए वह “आ.ग आ.ग बचाओ. बचाओ.” की चीखे निकालने लगा. वहाँ उपस्थित ग्राहकों को पतु और गेंदारामानी के इस तमाशे को देख गुदगुदी होने लगी.
अचानक, वहाँ फायर ब्रिगेड आ पहुँची.
“कहाँ आग लगी!? कहाँ आग लगी!?” चिल्लाते हुए फायर ब्रिगेड वाले पूछने लगे.
"यहाँ नहीं लगी!" किसी ने चिल्लाते हुए कहा.
“ये गेंदारामानी की दूकान कहाँ है!?” फायर ब्रिगेड वालों ने पूछा.
किसी ने गेंदारामानी की दूकान की और इशारा किया. फायर ब्रिगेड वालों ने गेंदारामानी की दूकान पर दस्तक दी. गेंदारामानी अभी भी "आग! आग! बचाओ! बचाओ!" चिल्लाये जा रहा था. फायर ब्रिगेड वालों ने चिल्लाते हुए उसे दरवाज़ा खोलने के लिए बोला; पर दरवाज़ा न खुला. आखिर फायरब्रिगेड वालों ने दरवाज़ा तोड़ दिया. गेंदारामानी दूकान में बीच खड़े-खड़े चिल्लाये जा रहा था. फायर ब्रिगेड वालों को आये देख; वह अचरज से उनकी और देखने लगा.
“आग कहाँ लगी है?? फायर ब्रिगेड वालों ने चिल्लाते हुए पूछा.
"अभी तो नहीं लगी; पर लगने ही वाली है." गेंदारामानी ने जेंबते हुए कहा.
“कहाँ?”
"वह नतु का बेटा है न! वो! वो!" गेंदारामानी ने बाहर पतु की और इशारा करते हुए कहा.
फायर ब्रिगेड वालों ने बाहर की और देखा. पतु और उसके दोस्त पटाखों की बन्दूक से पटाखे फोड़ रहे थे. उसमें से लीडर जैसे दिखनेवाले ने घूम के गेंदारामानी की कनपट्टी के नीचे धूम से एक चिपका दी. गेंदारामानी के मुंह से “हें! इं! इं! इं!" की एक लम्बी चीख निकल गई. उनका चस्मा उसके आधे बाल आधे टकले से माथे पर चढ़ गया. वह अपना गाल सहलाते हुए, आँखे और मुँह फाड़, उनकी और देखने लगा.
"साल्ले! खाली पिली फुन कर के हैरान करता है?" वह गेंदारामानी को धमकाने लगा.
थोड़ी देर में गेंदारामानी को गालियाँ देते हुए वे लोग बिदा हुए.
उन लोगों के चले जाने के बाद किसी ने गेंदारामानी से पूछा: “अरे भले आदमी! काई को फायर ब्रिगेड वालों को फोन कर के बुलाया?"
"हम्म. मैंने तो फोन नहीं किया!" गेंदारामानी ने क्रुध्द आवाज़ में कार्टून जैसा मुंह बनाकर चीखते हुए कहा.
“फिर”
गेंदारामानी अपना गाल सहलाते हुए बाहर आया और चिल्लाते हुए बोला. "अरे! उन मुर्दल खबीजो को फोन किसने किया था?”
पतु ने पीछे से आगे आते हुए कहा: “वह फोन मैं ने ही किया था.!”
पतु की बात सुन, गेंदारामानी लड़खड़ा गये, मुश्किल से गिरते-गिरते बछे, उनका मुंह फटे का फटा ही रह गया.
वहां इकठ्ठा हुए लोग यह तमाशा देख हंस पड़े, और तमाशा खत्म हुआ जान बिदा होने लगे.

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