जनजीवन भाग २ Rajesh Maheshwari द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जनजीवन भाग २

अंत से प्रारंभ।

माँ का स्नेह

देता था स्वर्ग की अनुभूति,

उसका आशीष

भरता था जीवन में स्फूर्ति।

एक दिन

उसकी सांसों में हो रहा था सूर्यास्त

हम थे स्तब्ध और विवके शून्य

देख रहे थे जीवन का यथार्थ

हम थे बेबस और लाचार

उसे रोक सकने में असमर्थ

और वह चली गई

अनन्त की ओर।

मुझे याद है

जब मैं रोता था

वह हो जाती थी परेशान,

जब मैं हंसता था

वह खुशी से फूल जाती थी,

वह सदैव

सदाचार, सद्व्यवहार और सद्कर्म

पीड़ित मानवता की सेवा,

राष्ट्र के प्रति समर्पण और

सेवा व त्याग की

देती थी शिक्षा।

देते-देते शिक्षा

लुटाते-लुटाते आशीष

बरसाते-बरसाते ममता

हमारे देखते-देखते ही

हमारी आँखों के सामने

हो गई

पंचतत्वों में विलीन।

अभी भी जब कभी

होता हूँ परेशान

बंद करता हूँ आँखें

वह सामने आ जाती है,

जब कभी होता हूँ व्यथित

बदल रहा होता हूँ करवटें

वह आती है

लोरी सुनाती है

और

सुला जाती है।

समझ नहीं पाता हूँ

यह प्रारंभ से अंत है

या अंत से प्रारंभ।

सच्चा लोकतंत्र

पहले था राजतंत्र

अब है लोकतंत्र

पहले राजा शोषण करता था

अब नेता कर रहा है।

जनता पहले भी थी

और आज भी है

गरीब की गरीब।

कोई ईमान बेचकर

कोई खून बेचकर

कोई तन बेचकर

कमा रहा है धन,

तब चल पा रहा है

उसका और उसके

परिवार का तन।

नेता पूंजी का पुजारी है

उसके घर में

उजियारा ही उजियारा है।

जनता गरीब की गरीब और बेचारी है

उसके जीवन में

अंधियारा ही अधियारा है।

खोजना पड़ेगा कोई ऐसा मंत्र

जिससे आ जाए सच्चा लोकतंत्र,

मिटे गरीब और अमीर की खाई

क्या तुम्हारे पास ऐसा कोई इलाज

है मेरे भाई!

नया नेता: नया नारा

जब भी उदित होता है नया नेता

गूँज उठता है एक नया नारा।

आराम हराम है

जय जवान, जय किसान

गरीबी हटाओ

हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं

और शाइनिंग इण्डिया के

वादे और नारे

न जाने कहाँ खो गए,

मानो अतीत के गर्भ में सो गए।

मंहगाई, रिश्वतखोरी, बेईमानी और भ्रष्टाचार

बढ़ते ही जा रहे हैं

और नये नेता

अच्छे दिन आने वाले हैं का

नया नारा लगा रहे हैं।

अच्छे दिन कैसे होंगे?

कब आएंगे?

कोई नहीं समझा रहा,

नारा लगाने वाला

स्वयं नहीं समझ पा रहा।

जनता कर रही है प्रतीक्षा

हो रही है परेशान

वह नहीं समझ पा रही

परिवर्तन ऐसे नहीं होता।

हम स्वयं को बदलें

जाग्रत करें नवीन चेतना

श्रम और परिश्रम से

सकारात्मक सृजन हो

तभी होगा परिवर्तन

और होगा प्रादुर्भाव

एक नये सूर्य का।

तब नहीं होगा सूर्यास्त

उस प्रकाश से

अनीतियों और कुरीतियों का होगा मर्दन।

तभी हम

मजबूर नहीं

मजबूत होकर उभरेंगे।

भारत का नव निर्माण करके

विश्व में स्थापित कर पाएंगे

अपने देश का मान-सम्मान

और तभी होगा सचमुच

भारत देश महान।

राष्ट्र के प्रति जवाबदारी

शून्य भारत की देन रही

पर आज हम

विकास शून्य हो रहे हैं।

प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में

मजबूत नहीं

मजबूर होकर रह गए हैं।

शिक्षक, कृषक, चिकित्सक

उद्योगपति और व्यापारी

इन पर है राष्ट्र के

विकास की जवाबदारी,

इनकी योग्यता

दूर दृष्टि

पक्का इरादा और समर्पण

हो राष्ट्र के लिये अर्पण

तब होगा सकारात्मक विकास के

स्वप्न का सृजन।

ऐसा न होने पर

प्रगति होगी अवरुद्ध

जनता होगी क्रुद्ध

और तब होगा गृह-युद्ध।

अभी भी समय है

जाग जाओ

अपने खोये हुए विश्वास को

वापिस लाओ,

अपनी चेतना को जागृत कर

विकास की गंगा बहाओ।

चिन्ता, चिता और चैतन्य

चिन्ता, चिता और चैतन्य

जीवन के तीन रंग।

चिन्ता जब होगी खत्म

तब होगा जीवन में

आनन्द का शुभारम्भ।

चिन्ता देती है विषाद, दुख और परेशानियां

और देती है

सकारात्मकता मे

अवरोध का अहसास

इससे हममें जागता है चिन्तन।

चिन्ता के कारण पर

धैर्य, साहस और निडरता से करो प्रहार

जिससे होगा इसका संहार।

ऐसा न होने पर

चिन्ता तुम्हें ले जाएगी

चिता की ओर

तुम्हारे अस्तित्व को समाप्त कर देगी।

चिन्ताओं से मुक्ति देगी

कलयुग में सतयुग का आभास

सूर्योदय से सूर्यास्त तक

चैतन्य में जीवन जीने का

हो प्रयास

परम पिता परमेश्वर से

यही है मानव की आस।

भविष्य का निर्माण

अंधेरे को परिवर्तित करना है

प्रकाश में

कठिनाइयो का करना है

समाधान

समय और भाग्य पर है

जिनका विश्वास

निदान है उनके पास

किन रंगों और सपनों में खो गए

सपने हैं कल्पनाओं की महक

इन्हें हकीकत में बदलने के लिये

चाहिए प्रतिभा

यदि हो यह क्षमता

तो चरणों में है सफलता

अंधेरा बदलेगा उजाले में

काली रात की जगह होगा

सुनहरा दिन

जीवन गतिमान होकर

बनेगा एक इतिहास

यही देगा नई पीढ़ी को

जीवन का संदेश

यही बनेगा सफलता का उद्देश्य।

कवि की कथा

मैं हूँ कवि

समाज में हो सकारात्मक परिवर्तन

यही है मेरा चिन्तन, मनन और मन्थन

इसीलिये करता हूँ

काव्य-सृजन

श्रोताओं की वाह-वाही

देती है तृप्ति।

वे कारों में आते

कविता सुनकर

वापिस चले जाते,

मैं भी

सम्मान में मिले

पुष्प गुच्छ छोड़कर

अपनी कविता के साथ

चुपचाप

चल पड़ता हूँ

अपने घर की ओर,

सोचता हूँ

कविता देती है प्रसिद्धि

किन्तु रोटी का

नहीं है प्रबंध,

भूखे पेट

पानी पीकर

तृप्त हो जाता हूँ

और फिर चल पड़ता हूँ

अगले सृजन और

अगली प्रस्तुति के लिये,

यही है दिनचर्या

यही है जीवन

यही है जीवन का आरम्भ

और यही है

जीवन का अन्त।

बुजुर्गो के सपने

वह वृद्ध

अनुभवों की जागीर समेटे

चेहरे पर झुर्रियाँ

जैसे किसी चित्रकार ने

कैनवास पर खींच दी हैं

आड़ी-तिरछी रेखाएं

टिमटिमाते हुए दिए की लौ में

पा रहा है उष्णता का आभास,

वह दुखी और परेशान है

अपनी अवस्था से नहीं , व्यवस्था से,

यह नहीं है , उसके सपनों का देश

वह खो जाता है

मनन और चिन्तन में।

भयमुक्त ईमानदारी की राह

नैतिकता से आच्छादित

सहृदयता, समरसता एवं सद्चरित्र से परिपूर्ण

समाज के सपने देखता था वह

किन्तु विपरीत स्थितियाँ

सोचने पर कर रहीं हैं मजबूर

फिर भी

चेहरे पर है आशा का भाव

परिवर्तन की अपेक्षाएं

सूर्यास्त के साथ ही

वह चल पड़ा

अनन्त की ओर

पर उसकी आशा

आज भी

वातावरण में समाहित है

एक दिन देश में परिवर्तन आएगा

उसका सपना साकार हो जाएगा।

जीवन पथ

हमारा व्यथित हृदय

है वह पथिक

जिसे कर्तव्य-बोध है

पर नजर नहीं आता

सही रास्ता।

आदमी कभी-कभी

सही मार्ग की चाहत में

कर्तव्य-बोध होते हुए भी

हो जाता है

दिग्भ्रमित।

इस भ्रम के आवरण को हटाकर

जीवन को

रात की कालिमा से निकालकर

स्वर्णिम प्रभात की दिशा में

जो व्यक्तित्व को ले जाता है

वही जीवन में

सुखद अनुभूति प्राप्त कर

सफल कहलाता है।

हमें

जीवन-पथ में

इस संकल्प के साथ

समर्पित रहना चाहिए

कि कितनी भी बाधाएं आएं

कभी भी

विचलित या निरुत्साहित न हों।

जब धरती-पुत्र-व्यक्तित्व

पूरी मेहनत

लगन

सच्चाई

और दूरदर्शिता से

संघर्ष करता है

तब वह कभी भी

पराजित नहीं होता,

ऐसी जिजीविषा

सफल जीवन जीने की

कला कहलाती है

और प्रतिकूल समय में

मार्गदर्शन कर

जीवन-दान दे जाती है।

आस्था और विश्वास

आस्था और विष्वास

हैं जीवन का आधार

दोनों का समन्वय है

सृजनशीलता व विकास।

विश्वास देता है संतुष्टि

और आस्था से मिलती है

आत्मा को तृप्ति।

इनका कोई स्वरूप नहीं

पर हर क्षण

कर सकते हैं इनका

एहसास व आभास।

विश्वास से होता है

आस्था का प्रादुर्भाव,

किसी की आस्था एवं विश्वास पर

कुठाराघात से बड़ा

नहीं है कोई पाप,

परमात्मा के प्रति हमारी आस्था और विश्वास

दिखाते हैं हमें

सही राह व सही दिशा

बहुजन हिताय व बहुजन सुखाय

हो हमारी आस्था और विश्वास

यही होगा

हमारी सफलता का प्रवेश द्वार।

कवि की संवेदना

संवेदना हुई घनीभूत

होने लगी अभिव्यक्त

और वह

कवि हो गया।

धन कमाता

पर उसे

अपनी आवश्यकता से अधिक

महत्वपूर्ण लगी

औरों की आवश्यकता

इसीलिये वह अपना सब कुछ

औरों को बांटकर

हो गया फक्कड़।

जहाँ कुछ नहीं होता

वहाँ होती है कविता

वह अपने आप से कहता

अपने आप की सुनता

और अपने में ही करता रमण।

मिल जाता जब श्रोता

तो मिल जाती सार्थकता

वाह वाह सुनकर ही उसे लगता

जैसे मिल गयी हो सारी दौलत।

धन आता

चला जाता

वह फक्कड़ का फक्कड़

चलता रहता काव्य-सृजन

सृजन की संतुष्टि

वाह वाह में सार्थकता का आनन्द

यही है उसकी सुबह

यही है उसकी शाम

यही है उसके जीवन का प्रवाह।

भूख

गरीबी और विपन्नता का

वीभत्स रूप

भूख!

राष्ट्र के दामन पर

काला धब्बा

भूख!

सरकार

गरीबी मिटाने का

कर रही है प्रयास,

पांच सितारा होटलो में बैठकर

नेता कर रहे हैं बकवास।

भूख से बेहाल गरीब

कर रहा है प्रतीक्षा, मदद की,

जनता चाहती है

सब कुछ सरकार करे

लेकिन यदि

सब मिल कर करे प्रयास

प्रतिदिन करें

एक रोटी की तलाश

तो हो सकता है

भूख का निदान,

यह एक कटु सत्य है

भूखे भजन न होय गोपाला

भूखे को रोटी खिलाइये

उसे निठल्ला मत बैठालिये

जब रोटी के बदले होगा श्रम

तभी मिटेगा भूख का अभिशाप

नई सुबह का होगा शुभारम्भ

अपराधीकरण का होगा उन्मूलन

स्वमेव आएगा अनुशासन

भूख और गरीबी का होगा क्षय

नए सूर्य का होगा उदय।