ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। में और मेरी तनहाई दोनों चुपचाप चले जा रहे थे। लगा जैसे किसी ने पुकारा। पिंछे से।
मैने मूड कर देखा कोई भी नहीं था। में फिर से चलने लगी। थोड़े आगे जाते ही लगा मुझे फिर से किसी ने पुकारा... पलट कर देखा। कोई नहीं था।
कौन था मेरे पास जो मुझे पुकारता? एक सवाल सा जाग उठा मेरे भीतर। पापा मम्मी सबको छोड़ दिया तब तो यहां नौकरी करने को मिली वरना आज किसी आम बंदेसे शादी कर, दो बच्चोकी मम्मी बनकर घरगृहस्थी संभाल रही होती। उन्ही की शर्त थी नौकरी या माँबाप। दोनों में से किसी एक को चुनना था। मैने नौकरी चुनी। आखिर इतने साल पढ़ाई कर कर जो हासिल किया उसे कैसे छोड़ देती। सबने बहोत ताने दिए, कहा लड़की हाथ से निकल गई है! बड़ी बदतमीज हो गई है! किसी किसीने तो मुझे अभिमानी का खिताब दे दिया। में क्या करती? छोड़ आई, आई और बाबा को। नौकरी कर रही हूं इस अंजान शहर में। अपना घर है, गाड़ी है, अच्छी सैलरी है और क्या चाहिए जीने के लिए?
क्या चाहिए जीने के लिए? मन भी कितना अजीब होता है नहीं! एक ही पल में मेरे खयालात एक नई राह पर चल पड़े। नरेन मुझे अच्छा लगा था उससे शादी करने तक के सपने मैने देख लिए थे पर आगे कुछ बात जमी नहीं। उसकी मम्मी को देखकर तो मेरा हाल बुरा हुआ जा रहा था। टिपिकल सास बनने के लिए जी रही थी वह जैसे। मुझे सास से कोई एतराज़ नहीं पर आके सर पर बैठ जाए ये बात मुझे मंजूर नहीं। ऐसे बैठो, ऐसे खाओ, इस तरह के कपड़े पहनो, धीरे से बोलो, जोर से मत हसो...!
एक ही बार मिलने पर, अभी में उनकी बहू बनी भी नहीं थी और वह मुझे बदलने चली थी। आप ही सोचिए में क्यों बदल जाऊ? किसके लिए बदल जाऊ? जो मेरी पहचान है उसे खोकर किसी अजनबी जैसी जिंदगी में क्यों चुनू? जब की में बिल्कुल वैसी नहीं हूं! में इरा हूं। सिर्फ इरा। कोई सरनेम भी मुझे नहीं चाहिए। मुझे बस मेरा यही नाम पसंद है और में खुलकर हसना पसंद करती हूं, दोस्तो के साथ मिलकर जोर जोरसे बाते करना मुझे अच्छा लगता है। में जानती हूं, में अच्छी सिंगर नहीं हूं पर जब में खुश होती हूं मुझे गाना गाना अच्छा लगता है। कभी कभी में कमर मटका कर नाच भी लेती हूं तो क्या में बुरी लड़की हो गई?
छोड़ दिया मैने नरेन को। मुझे तकलीफ हुई, कुछ ज्यादा तकलीफ हुई। पर ठीक है में संभल जाऊंगी। जिंदगीभर साथ साथ रहकर अलग अलग रहने से अच्छा है अलग ही हो जाए।
अरे ये बार बार क्यों ऐसा लगता है जैसे कोई पुकार रहा हो? ठीक है अब तो घर तक आ गई। घर। मेरा अपना घर। ना पति का ना पीता का! सोचो अगर मैने शादी कर ली होती, पापा की अच्छिवाली गुड़िया बनकर उनकी बात मान लेती तो आज ये जो मुकाम मैने हासिल किया वहां तक आ पाती? क्यों नहीं समझ पा रहे मेरे मांबाप इतनी छोटी सी बात, और मुझ से नाराज़ होकर बैठे है। आखिर कब तक रूठे रहेंगे? एक साल हो गया एक बार फोन भी नहीं किया..! एक फोन नहीं।
अचानक से सब धुंधला क्यों दिखाई दे रहा है? मेरी आंखो में पानी कहा से आ गया? में यूं कमजोर रोने वाली लड़कियों की तरह बिलकुल नहीं हूं। हे राम किसीने देखा तो नहीं। अपने आंसू पोंछ लेती हूं, साथ में नाक भी पोंछ ली, किसीने देखा भी होगा तो लगेगा शरदीओ का असर है।
“good evening ma'am."
चौकीदार ने खड़े होकर सलाम ठोकते हुए कहा। मुझे अच्छा लगा। अगर पापा की बात मान लेती तो ये ठाठ मिल पाते? मेरी नर्म आंखे हस पड़ी।
चौकीदार की तरफ एक हलकी मुस्कुराहट करती में आगे बढ़ गई। दरवाजे पर जाकर हाथ बेल बजाने आगे बढ़ गए, सालो की आदत थी अभी छूटी नहीं है, यहां कौन है इरा जो तेरे लिए आकर दरवाजा खोले?अब कहा आई आकर “आ गई मुन्नी।" कह कर एक मीठी मुस्कान देंगी। पापा तो ठीक है थोड़े जिद्दी है मेरी तरह, पर मेरी आई? वो कैसे बदल गई? उन्हें अपनी मुन्नी की याद नहीं आती होगी? क्या हुआ अगर मैने आम लड़की की तरह शादी करके घर बसाने के बदले एक नई जगह, अकेले रह कर जॉब करना पसंद किया? आखिर ये सारे खयालात कहीं ना कहीं आई ने ही तो पाले हे! अपनी जिंगदगी से क्या वो खुश थी? बार बार अपना रोना वो मेरे सामने ही तो रोया करती थी। दादी के ताने, चाची के नखरे, दादा का गुस्सैल स्वभाव, पापा का जिद्दी पन ये सब मुझे कैसे पता चला? आई ने है तो बताया था। सबकी शिकायते मेरे सामने करते करते उसने ही तो अनजाने में “शादी बकवास चीज है" ये सोच मेरे मन में डाल दी थी।
अरे कब से ये फोन क्यों नहीं बजा? आज तक ऐसा तो नहीं हुआ ये एक घंटा चुप रहा हो। शीट इसकी तो बैटरी ख़तम हो चली है। चार्ज करना पड़ेगा। चार्जर कहा है? सुबह यहीं तो रखा था, टिपॉय पर। कहा चला गया? में इधर उधर देख रही थी के वह सोफ़ा के नीचे बैठ कर मुझे देख रहा हो, मेरे साथ छुपन छुपाई खेल रहा हो, वेसा दिखा। अभी याद आया सुबह जब मैने फोन चार्जिंग से निकाला तब ये चार्जर मुआ नीचे गिर गया था। मम्मी यहां होती तो जट से कहती,
“इरा...! अपना चार्जर उठा लो और सलीके से रखो। तुम अपनी कोई चीज जगह पर नहीं रखती।"
लो नहीं रखती में अपनी चीजे जगह पर। तो क्या? कौन सा तूफ़ान आ गया? आई भी यू ही मेरी गलतियां निकालती रहती है। कुछ भी तो नहीं होता है छोटी छोटी बातें भूलने पर। थोड़ी परेशानी होती है पर ठीक है...
अरे ये फोन पर इतने सारे मीस कॉल? देखू जरा। कुछ गलत तो नहीं बता रहा ये फोन! आई ने मुझे फोन किया था! एक खुशी की लहर सी दौड़ गई मेरे दिल में। आज कब से में उन्हें ही याद कर रही हूं। उन्होंने फोन किया पर में उठा नहीं पाई। आज मीटिंग पर जाते वक्त फोन साइलेंट पर रखा था फिर उसे बदलना भूल गई। हाय...मन में लड्डू फुट रहे है, आखिर आई को मेरी याद आ ही गई। चलो में ही फोन कर लेती हूं, आई, वो मेरी सबसे अच्छी वाली सहेली भी तो है!
मैने आई के नंबर पर उंगली रख दीं। ऐसा लगा जैसे मेरी उंगली में जादुई शक्ति आ गई है और वो एक इशारे भर से मेरी, मेरी आई से बात कर देंगी। कितने अच्छे है ना ये सब गेजेट्स! दूर कहीं छोटे शहर में बैठी मेरी आई आज अपनी लड़की से बात करेगी, में अपनी आई से बात करूंगी। सोचो अगर ये मोबाइल फोन न होते तो क्या होता?
रिंग जा रही है पर आई फोन क्यों नहीं उठा रही? शायद वह दूसरे कमरे में होंगी। रात के आठ बजे है। आई का सीरियल देखने का वक्त हो गया। नक्की वो ना टीवी के सामने बैठी होंगी और फोन बेड रूम में या फिर किचन में पड़ा बज रहा होगा। आई भी ना फिर मुझे नसीहत देती है, “मुन्नी अपनी चीजे उसकी सही जगह पर रखो!"
में जोरो से हस रही हूं। कितनी सारी बाते याद आ रही है। वो हमारा टीवी देखने वाला छोटा सा कमरा, पच्चीस इच का टीवी और वह पुरानी सीरियल। आज भी सब वैसा ही होगा, बस में ही नहीं हूं वहां! आज भी आई इतने ही शोख से अपनी सीरियल देख पाती होंगी? मेरे बगैर? में उससे कुछ ना कुछ पूछा करती, वो कुछ कुछ बताती तो कुछ, कुछ चिढ़ जाया करती! मेरी बक बक उसे परेशान कर देती, उसकी सीरियल की हीरोइन के डायलॉग जो सुनने बाकी रह जाते! पर सच कहूं तो मुझे वो सीरियल से ज्यादा आई के साथ बैठ कर वो बाते करना पसंद था।
एकबार फिर से नंबर लगाया। घंटी बजती रही पर अभी भी किसीने फोन नहीं लिया। ओह! ये आई भी ना! मैने पचास इच का एल ई डी लगवाया है पर एकबार भी चें से बैठ कर कोई सीरियल नहीं देख पाई, और आई को देखो फिकर है उन्हें कुछ अपनी मुन्नी की? कॉल पर कॉल जा रही है पर उन्हें अपनी सीरियल से फुर्सत मिले तब ना।
फ़ोन को बाजू में रखकर में बाथरूम गई। मुंह पर ठंडा पानी फेंका, थोड़ी शांति मिली। आज सुबह से कुछ ज्यादा ही काम रहा। कमर की तो बेंड बज गई है। खाना खाने का भी मन नहीं है। कितनी रातें ऐसे ही बिना खाए गुजार दी, आई को पता चले के मैने खाना नहीं खाया तो वो मुझे सोने देती? कभी नहीं।कुछ ना कुछ पेट में डाले बगैर मजाल है कि में सोने चली जाऊं।
घंटी बज रही है। जरूर आई ने फोन किया होगा। में नेपकिन से मुंह पोछते हुए भागी और फोन पर लपकी।
आज तक ये फोन की घंटी इतनी अच्छी कभी नहीं लगी थी। उसके स्क्रीन पर जा रहा नाम, “आई" देखकर मेरी आंखे भर आई। मैने फोन उठाया और कानों से लगाया।
खुशी के मारे मानो कलेजा मुंह को आ गया था, मुंह से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। मैने दो बार पुकारा पर मुंह से अजीब सी आवाज आई। में रों रही थी, में हस भी रही थी, पता नहीं में क्या कर रही थी पर एक बहाव था जिसमें में बही जा रही थी और वो मुझे अच्छा लगा, कुछ जाना पहचाना लगा।
“इरा तुम बात कर रही हो?"
सामने से पापा की गंभीर आवाज आई। वह आवाज में पहचानती थी। पर आई का फोन पापाने क्यों उठाया!
“जी पापा... में इरा!" मैने धीरे से कहा। आई से बात करने के लिए में मरी जा रही थी पर पापा से बात करके भी अच्छा लगा। उन्होंने सामने से आज फोन किया था। I मेरे घर छोड़ने के बाद पहली बार!
“कितनी बार तुझे फ़ोन लगाया, उठाया क्यों नहीं?"
लो पापा ने फिर डांटना चालू कर दिया! बेटी तू कैसी है? कहा है? ये सब सवाल उन्हें याद नहीं आते होंगे?
“जी फोन साइलेंट पर रख कर भूल गई थी।" इतनी दूर भी पापा के डर से बोलते वक्त आंखे बंध हो गई!
“तेरी आई ने भी यही कहा था। उसे बात करनी है तुजसे। तू कुछ बोल में फोन उसके कान के पास रख रहा हूं।"
पापा ने ऐसा क्यों कहा? आई अपने आप मुझ से बात नहीं कर सकती? वो बिमार हो गई होंगी? पल दो पल में हजार खयाल मेरे मन में उमड़ पड़े। में जोर से बोली,
“आई...आई में ईरा। तुम कैसी हो आई? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना? तुम्हारी आवाज़ नहीं आ रही! हेल्लो...आई।”
“वो बोल नहीं सकती। पैरालिसिस का दौरा पड़ा है। पूरे शरीर पर लकवा मार गया है।"
इतना कह कर पापा रुके। में उनकी हालत समझ गई। वो गंभीर स्वभाव के थे, बहुत कम बोलते पर वो आई को प्यार करते थे, शायद मुझसे भी ज्यादा! आज वो अकेले हो गए होंगे। किसिसे मदद मांगने की बात तो दूर रही वो किसी से ठीक से बात भी नहीं कर पाते! अभी वो अकेले सब कुछ कैसे संभाल रहे होंगे?
मेरी आंखे बहने लगी। आज, अभी मुझे वहां होना चाहिए था। मेरी आई को आज सबसे ज्यादा मेरी जरूरत थी। पर ये सब कैसे हो गया? कब हुआ? पापा से पूछना चाहती हूं पर बोल नहीं पा रही। क्या बात करू?
“में घर वापस आ जाऊं। आई को मेरी जरूरत होंगी।" सारी जिद छोड़कर अभी में गिड़गिड़ाने को भी तैयार थी। अपने ही घर में वापस जाना आजसे पहले कभी इतना मुश्किल नहीं लगा था।
“हा, आ जाओ बेटा! सुबह की ट्रेन पकड़ लेना। रातको सफ़र मत करना। तुम्हारी आई इशारे से कुछ बता रही हैं...मेरी समझ में नहीं आ रहा।"
“में जानती हूं वो क्या कह रही है। मुझे सब कुछ याद है। अब कभी नहीं भूलूंगी।" में रों रही थी। हाय रे! मेरी आई कब से मुझे पुकार रही थी। बार बार लग रहा था जैसे कोई पुकार रहा हो। वो मेरी आई थी! मेरी प्यारी आई! उसे मेरी जरूरत होंगी और में यहां मुंह फुला कर बैठी थी। कबसे उनकी हालत बिगड़ी होगी और मुझे किसीने खबर भी नहीं की! में अपने माबाप की एक लोती ओलाद उनके लिए इतनी पराई कैसे हो गई? क्या मैने कोई गलती की? मुझ से गलती हुई? में आ रही हूं आई, पापा आपके प्यार से ज्यादा जरूरी मेरी जिद हरगिज नहीं है..!
में वापस घर चली गई। कुछ दिनों की छुट्टियां लेली थी। वहां जाकर पता चला मेरे घर छोड़ने के फौरन बाद आई बीमार पड़ गई थी। उसकी तबीयत दिन ब दिन और ज्यादा बिगड़ती जा रही थी और पिछले महीने से वह बिस्तर पर लेटी हुई थी। मुझे किसीने कुछ नहीं बताया था। उन्हें भी मेरे बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। पापा कुछ ही महीनों में जैसे बूढ़े हो गए थे। कोई मेरी शादी के बारेमे बात नहीं कर रहा था। मैने पापासे कहा मेरे साथ चेन्नई आकर रहेने के लिए। वहां मैने घर लिया हुआ है वो बात भी कही। मेरी नौकरी, तनखा सब के बारे में बात की। वह सब सुनते गए, बोले कुछ नहीं। शायद वह कुछ कहना चाहते थे पर कहा नहीं जा रहा था। हम दोनों के बीच के सेतु बंध समान, मेरी आई, उसकी हमारे पास होते हुए भी गेरहाजरी हम दोनों को विचलित कर रही थी।आखिर पापा मान गए।
आज भी में सोचती हूं जो कुछ हुआ उसमें गलती किसकी? मेरी या पापा की या हम दोनों की। गलती चाहे जिस किसी भी हो उसकी सजा मेरी आई भुगत रही है। क्योंकि वह हम दोनों से प्यार करती है, हम दोनों से जुड़ी हुई है और उनके प्यार के कारण ही आज फिर से हम सब साथ है...!