इस कड़ी में मैंने कुछ हास्य कविताओं को शामिल किया है. उम्मीद है पाठकों को पसंद आएगी.
(१)
हृदय दान
हृदय दान पर बड़े हल्के फुल्के अन्दाज में लिखी गयी ये हास्य कविता है। यहाँ पर एक कायर व्यक्ति अपने हृदय का दान करने से डरता है और वो बड़े हस्यदपक तरीके से अपने हृदय दान नहीं करने की वजह बताता है।
हृदय दान के पक्ष में नेता,बाँट रहे थे ज्ञान।
बता रहे थे पुनीत कार्य ये, ईश्वर का वरदान।
ईश्वर का वरदान , लगा के हृदय तुम्हारा।
मरणासन्न को मिल जाता है जीवन प्यारा।
तुम्ही कहो इस पुण्य काम मे है क्या खोना?
हृदय तुम्हारा पुण्य प्राप्त तुमको ही होना।
हृदय दान निश्चय ही होगा कर्म महान।
मैने कहा क्षमा किंचित पर करें प्रदान।
क्षमा करें श्रीमान ,लगा कर हृदय हमारा।
यदि बूढ़े नेे किसी युवती पे लाईन मारा ।
तुम्ही कहो क्या उस बुढ़े का कुछ बिगड़ेगा?
हृदय हमारा पाप कर्म सब मुझे फलेगा।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
(२)
जब एक नेता अपनी प्रेयसी को प्यार करता है तो अपने प्रेम का इजहार वो कैसे करेगा, इस कविता में इसी बात को हल्के फुल्के अंदाज में प्रस्तुत किया गया है.
मिली जुली सरकार की तरह
फंसी जीवन की नैया मेरी , बीच मझधार की तरह ।
तू दे दे सहारा मुझको , बन पतवार की तरह ।
तेरी पलकों की मैंने जो , छांव पायी है ।
मेरी सुखी सी बगिया में, हरियाली छाई है ।
तेरा ये हंसना है या की , रुनझुन रुनझुन ।
खनखनाना कोई , वोटों की झंकार की तरह ।
तेरे आगोश में ही , रहने की चाहत है ।
तेरे मेघ से बालों ने, किया मुझे आहत है ।
मेजोरिटी कौम की हो तुम , तो इसमे मेरा क्या दोष।
ये इश्क नही मेरा , पॉलिटिकल हथियार की तरह ।
हर पॉँच साल पे नही , हर रोज वापस आऊंगा ।
तेरी नजरों के सामने हीं, ये जीवन बिताउंगा ।
अगर कहता हूँ कुछ तो , निभाउंगा सच में हीं ।
समझो न मेरा वादा , चुनावी प्रचार की तरह ।
जबसे तेरे हुस्न की , एक झलक पाई है ।
नही और हासिल करने की , ख्वाहिश बाकी है ।
अब बस भी करो ये रखना दुरी मुझसे ।
जैसे जनता से जनता की सरकार की तरह ।
प्रिये कह के तो देख , कुछ भी कर जाउंगा ।
ओमपुरी सड़क को , हेमा माफिक बनवाऊंगा ।
अब छोड़ भी दो यूँ , चलाना अपनी जुबां ।
विपक्षी नेता का संसद में तलवार की तरह ।
चेंज की है पार्टी तो, तुझको क्यों रंज है ।
पोलिटीकल गलियों के, होते रास्ते तंग है ।
चेंज की है पार्टी , पर तुझको न बदलूँगा।
छोडो भी शक करना , किसी पत्रकार की तरह ।
बड़ी मुश्किल से गढा ये बंधन , इसे बनाये रखना ।
पॉलिटिकल अपोनेनटो से , इसे बचाये रखना ।
बस फेविकोल से गोंद की , तलाश है ऐ भगवन।
की टूटे न रिश्ता अपना , मिली जुली सरकार की तरह ।
फसी जीवन की नैया मेरी , बीच मझधार की तरह ।
तू दे दे सहारा मुझको , बन पतवार की तरह ।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
(३)
जब पति और पत्नी ज्यादातर समय लड़ने और झगड़ने में लगाते हैं तो उनकी इस लड़ाई का उनके बच्चों पे बहुत बुरा असर पड़ता है. घरेलु तनाव का माहौल संतानों की प्रगति में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करता है. मैंने ये हास्य कविता घरेलु तनाव के माहौल में पल रहे एक बच्चे की नजरिये से लिखा है. मैंने जानबुझकर हल्के फुल्के अंदाज में अपनी कविता को प्रस्तुत किया है ताकि जो कहना चाहता हूँ वो पाठक गण तक हल्के फुल्के अंदाज में पहुँच सके.
संस्कार
क्या कहूँ जब पापा और माँ झगड़ रहे थे ,
बिजली कड़क रही थी , बादल गरज रहे थे.
इधर से दनादन थप्पड़ , टूटी थी चारपाई ,
उधर से भी चौकी और बेलन बरस रहे थे.
जमने की थी बस देरी , औकात की लडाई,
बेचारे पूर्वजों के , पुर्जे उखड रहे थे.
अरमान पडोसियो की , मुद्दत से पड़ी थी सुनी ,
वारिस अब हो रही थी , वो भींग सब रहे थे.
मिलता जो हमको मौका , लगाते हम भी चौका ,
बैटिंग तो हो रही थी , हम दौड़ बस रहे थे.
इन बहादुरों के बच्चे , आखिर हम सीखते क्या ,
दो चार हाथ को बस , हम भी तरस रहे थे.
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित
(४)
झब्बर बकरा बोले बोल:अजय अमिताभ सुमन
अपनी नयनों के पट खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,
कि धूर्त नेता जनता बकलोल।
डेमोक्रसी की यही पहचान,
जाने जनता यही है ज्ञान।
कि कहीं थूक सकती है वो,
कि कहीं मूत सकती है वो।
जनता की परिभाषा गोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
सर नापे सर मापे नेता,
जनता के सर जापे नेता।
ज्ञानी मानी व नत्थू खेरा,
सबको एक ही माने नेता।
नम्बर का हीं यहाँ है मोल ,
झब्बर बकरा बोले बोल।
पढ़ते बच्चे बनते नौकर,
गुंडे राज करते सर चढ़ कर।
राजा चौपट ,नगरी अन्धी,
न्याय की बात तो है गुड़ गोबर।
सारा सिस्टम है ढकलोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
ज्ञान का नहीं है कोई मान,
ताकत का है बस सम्मान।
जनता लुटे , नेता चुसे,
बची नहीं है इनकी जान।
कोई तो अब पोल दे खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित