मालिक
" मां कहां हो आप, और यह क्या कर रहीं है ? आपको किस चीज की कमी है । जरा मेरी पोजीशन का भी खयाल रखना चाहिए था । मैं और आपकी बहू दोनों इतने बड़े पोस्ट पर हैं । फिर आप यह सब ..!! "
" आखिरकार हुआ क्या है, कुछ बतलाएगा भी ... "
" अभी बाहर मिसेज गुप्ता मिली थीं । पूछ रही थीं आप कल ट्यूशन पढ़ाने क्यों नहीं गई । अब आप बताएं आप क्या यह ठीक कर रहीं हैं । पैसे चाहिए तो बतलाना था न । आपके एकाउंट में पैसे हैं । पिछले महीने ही डाले थे । "
सोच रही थी वह,पहले पापा कहते थे " देखो बेटी कॉलेज से सीधे घर आया करो, सहेलियों के साथ इधरउधर अड्डा मारना ठीक नहीं । तुम्हें घर की इज्ज़त का खयाल रखना है, बहुत बड़े घर में रिश्ता तय हुआ है तुम्हारा ।
फिर पति ' देखो सावित्री, हमेशा मेरी स्टेटस का ख्याल रखना अब तुम्हारे हाथ में है ।किसी चीज की कमी नहीं है घर में । बिना जरूरत मुहल्ले में ज्यादा घुलना मिलना नहीं, न ही अपने से नीचे वालों से मेल मिलाप रखना ।
और अब बेटा । बेटा बहू दोनों ऑफिस चले जाते हैं,वह सारा दिन अकेली घर पर रहती है ।
" हैलो , मिसेज गुप्ता, हां वो कल तबीयत जरा ठीक नहीं थी । राजीव से कहिएगा दोनों लेसन मैं आज करवा दूंगी ।"
उसे लगने लगा था मानों वह अब भी वहीं है । समय बदला पर समय के साथ और कुछ नहीं बदला, केवल मालिकाना हक का ठप्पा बदल गया था ।
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2 - राह की चाह
आज फिर उसे लेकर दोनों परिवार वालों की मीटिंग ड्राइंगरूम में बैठी थी। कुछ ही साल पहले यहीं उस दिन मसला था ‘क्यों नहीं चाहती’, आज मसला था ‘क्यों चाहती हो’। वह सुन्दर, एमबीए पास स्पोर्टस में आगे वैसी ही गुणी कन्या थी जैसी बहू उसके कथित धनाढ्य, खानदानी, रईस ससुराल वाले चाहते थे। और दामाद वैसा ही जैसा उसके घर वाले चाहते थे,खानदानी रईस, स्मार्ट लुक। उस दिन उसका 'न चाहना ' क्यों ? और आज उसका 'डायवोर्स' 'चाहना' क्यों ?
"अब क्या तकलीफ हो गई तुम्हें ?" पिता ने पूछा।
"क्या वह तुम्हें शॉपिंग नहीं ले जाता?" गले का हार ठीक करते हुए राहुल की माँ ने पूछा।
"वह तुम पर हाथ उठाता है ?" उसकी माँ ने पिताजी की ओर देखते हुए पूछा।
"राहुल मेरे साथ सुखी नहीं रह सकता। मैं शायद उसके टेस्ट की नहीं हूँ।"
"मैं सुखी हूँ या नहीं यह तुम कैसे कह सकती हो। मैं जानता हूँ मुझे क्या चाहिए। मैं सुखी हूँ। मैं डायवोर्स नहीं चाहता।" राहुल ने जवाब दिया।
"तो ठीक है, मैं राहुल के साथ सुखी नहीं हूँ। मुझे उससे डायवोर्स चाहिए।" उसने तल्खी भरे स्वर में कहा।
"क्यों सुखी नहीं हो? मैं अपने ढंग से जीता हूँ तो मैंने तुम्हें भी मन लगा रखने का मौका दे रखा है। हमारे घर में औरतें काम नहीं करतीं। फिर भी मैंने तुम्हें अपना काम करने की इजाजत दी है।" राहुल लगभग चिल्लाते हुए बोला।
"इजाजत...? मेरा काम...? तुम्हारे पैसे...?" उसने दबे लेकिन तीखे स्वर में कहा।
"कुछ नहीं, एक बार बच्चा हो जाए तो खुद ही बन्धन में पड़ जाएगी।" राहुल की माँ बोली।
"बस जल्दी से एक बेटा ले आ। देरी किस बात की है। अभी तक हुआ क्यों नहीं?" उसकी माँ भी पीछे नहीं रही।
"जहाँ मुझे अपनी हर साँस के लिए इजाजत लेनी पड़ती है वहाँ बच्चा....कभी नहीं ? "
"फिर आखिर तुम्हें क्या चाहिए ?" राहुल और उसके पिता एक साथ बोले।
" मुझे चाहिए आजादी, अपना जीवन जीने की आजादी!! " उसकी आँखें खिड़की से दिखते हुए आकाश और उँगलियाँ पर्स में रखी पिल्स को सहला रही थीं।
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3 - स्टार्ट ...कट...
कई दिनों से संघर्षरत और भूख से जूझता अपने समय.का वह अभिनेता आज एक्सट्रा के रूप में एक नेता सुपुत्र के नए नए अभिनेता बनने के शौक में सजे स्टेज पर सिर झुकाए खड़ा था ।
नव अभिनेता के स्क्रीन टेस्ट और एक छोटे फोटो शूट के लिए सेट सजा था । पूरी तैयारी थी ...
" ३-२-१ स्टार्ट...."
वह आया, अकड़ा हुआ ..." मेरे पास धन है, दौलत है, बंगला है, गाड़ी है.... तुम्हारे पास क्या है ..."
मन ही मन दबे स्वर में वह बोला " मेरे पास स्वाभिमान था "
" कट....."
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कनक हरलालका