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लौह पुरुष

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल

कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं और ये कहानी तो सपूत की है । भारत माँ के सच्चे सपूत की ।,,,

झावेर भाई बड़े चिन्तित थे । बेटे को कई डॉक्टरों को दिखाया पर उसके फोड़े पर कोई असर नही पड़ता था । कई वैद्यौं से भी उपचार कराया पर कोई लाभ न हुआ । चिंता बढ़ती ही जा रही थी । तभी एक पड़ौसी ने बताया कि यंहा से कुछ मील दूर एक गाँव में एक बड़े अनुभवी वैद्य जी रहते हैं । एक बार उन्हें भी दिखा कर देख लो शायद कुछ लाभ हो जाए । झवेर भाई ने कहा ठीक है मैं कल सवेरे ही निकलता हूं । और अपनी पत्नी से बोले – लाडबा कल सुबह हमारे दौनो के लिए खाना जल्दी बना देना हम वैद्य जी के पास जाएंगे । अगली सुबह जल्दी उठ कर, तैयार होकर दोनों वैद्य जी के पास पहुंचे ।

वैद्य जी उस समय दुसरे मरीजों को देख रहे थे । जैसे ही झावेर भाई का क्रम आया तो उन्होने अपने पुत्र का फोड़ा दिखाया । फोड़े को देख कर कुछ समय तक तो वैद्य जी भी चुप रहे ( उनके चेहरे की भंगिमा से फोड़े की गम्भीरता का साफ अंदाजा लगाया जा सकता था ) फिर बोले कि ये तो बहुत ही खतरनाक अवस्था में आ चुका है ।

झावेर भाई ने कहा – मैं तो इसकी बड़ी हिम्मत मानता हूं । मुझसे तो देखा ही नही जाता।

वैद्य जी बोले – आपको इससे भी ज्यादा हिम्मत दिखानी होगी क्योंकि मुझे इस फोड़े का कोई आसान उपचार दिखाई नही देता ।

जो भी उपचार हो आप बता दीजिए मैं कर लूंगा – झावेर भाई ने अपने आप को संभालते हुए कहा ।

बड़ी हिम्मत का काम है।

आप बताइये तो सही। पुत्र की सलामती के लिए आदमी क्या नही करेगा ?

आपको फोड़े को सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ से दागना होगा।

फोड़े को सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ से दागना होगा ?

वैद्य जी आप क्या कह रहे हो ?

जी आपने सही सुना यही एक ईलाज है ।

वैद्य जी बच्चे की उम्र तो देखो – कहते हुए झावेर भाई की आँखों में पानी आ गया । मेरा तो सोच कर कलेजा मुह को आ गया।

यकिनन ये बहुत कठिन उपाय है लेकिन कोई दुसरा उपाय भी तो नही है। और हो भी तो मुझे नही सुझता ।

अच्छा चलो ठीक है कह कर झावेर भाई ने विदा ली ।

घर पर आते ही लाड़बा ने पूछा – क्या वैद्य जी ने औषधी दे दी ?

औषधी तो नही दी पर एक उपाय बताया है । उपाय भी ऐसा जो किया ना जा सके ।

ऐसा कौन सा उपाय है जो किया नही जा सकता ?

फोड़े को सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ से दागना होगा।

सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ से ?

हाँ - सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ से । क्या तुम कर सकती ?

मैं माँ हूं । मेरा दिल तो आप से भी नाजुक है। मैं कैसे ? तो अब क्या होगा ?

देखता हूं कोई रास्ता जरुर निकलेगा।

शाम को जब झावेर भाई घर आए तो लाड़बा जंगले के बाहर खड़ी चिल्ला रही थीं – नही बेटा ये मत करो । किसी दुसरे वैद्य या डॉक्टर से बात करेंगें।

झावेर भाई ने अंदर का नजारा देखा तो दिमाग चकरा गया ।

बच्चा हाथ में सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ लिए तैय्यार बैठा है।

झावेर भाई ने भी मना किया लेकिन बच्चे ने कुछ ना सुना ।

और फोड़े को सुर्ख लाल गर्म लोहे की छड़ से दाग दिया । ये इतना कष्ट कारक था कि बच्चा कुछ समय के लिए मुर्छित हो गया पर मुह से आह तक न निकली ।

तब पहली बार इस बच्चे की मजबूत इच्छा शक्ति का पता चला ।

यही बच्चा बड़ा होकर वल्लभ भाई के नाम से जाना गया । वैसे तो वल्लभ भाई के जीवन में ऐसी घटनाऔं की भरमार थी लेकिन यंहा हम कुछ चुनिंदाऔं का जिक्र करेंगें ।

दुसरी घटना –

जब वल्लभ वकालत करके वापस आए तो उन्होने अपनी वकालत शुरु कर दी । वल्लभ केवल सच्चे केस ही लेते थे । धीरे – धीरे उनका नाम चारों ओर फैलने लगा ।

एक दिन उनके पास एक व्यक्ति आया । वह बड़ा हताश एवं निराश था ।

वल्लभ ने उससे उसकी हताशा एवं निराशा का कारण पूछा तो वह बोला – मैं बड़ा परेशान हूँ । मेरे विरोधियों ने सारे गवाह खरीद लिए और मुझे लगभग झूटा साबित कर दिया । मेरे पास अब कोई रास्ता नही है । आपका बड़ा नाम सुना है इसलिए आप ही अब आखरी उम्मीद हैं ।

वल्लभ भाई ने सारा मामला विस्तार से जाना और उससे कहा तुम आराम से घर जाओ ।

और उन्होने सारी बारीक्यों को बहुत गहराई से समझा । अपनी सारी ताकत लगा दी ।

अगली सुनवाई पर वल्लभ भाई उस आदमी के साथ न्यायालय पहुंचे । और पूरे जोश और खरोश के साथ एक – एक बिंदु न्यायधीश के समक्ष रखने लगे । धीरे – धीरे इस नीरस और बेजान मुकदमे में जान आने लगी और कुछ ही समय में वल्लभ भाई ने मुकदमें में अपनी पकड़ बना ली । अब उनके मुवक्किल के चेहरे पर संतोष के भाव थे । लेकिन तभी एक व्यक्ति हाथ में एक पत्र लेकर उपस्थित हुआ । उसने वह पत्र वल्लभ भाई के हाथ में दिया । वल्लभ भाई ने वह पत्र पड़ा और पड़ते ही उनके चेहरे का रंग उतर गया और उनके साथ उनके पछ के सब लोगो का रंग उतर गया । लेकिन वल्लभ भाई ने बहुत जल्दी अपने आप को संभाला और फिर से पूरे जोशोखरोश के साथ दलील पेश करने लगे । और अंतत: वे केस जीत गये । सबने उनकी बुद्धीमत्ता की बड़ी तारीफ की । लेकिन उनका मुवक्किल उनके पास पहुंचा और बोला – आपका बहुत – बहुत धन्यवाद लेकिन यदि इज़ाजत हो तो एक बात पूछूं ?

वल्लभ भाई ने कहा – हाँ पूछो ।

केस के बीच में आपको पत्र किसका आया था ? उसमे क्या लिखा था ?

वल्लभ भाई ने अपनी जेब में हाथ डालकर पत्र निकाल कर उसके हाथ में रख दिया।

पत्र को पड़ कर व्यक्ति के पैरों तले से जम़ीन खिसक गयी। उस पत्र में वल्लभ भाई की पत्नी के देहान्त की ख़बर थी । उस व्यक्ति ने कहा कि आपका जाना आवश्यक था।

वल्लभ भाई ने कहा मैं तब जाकर भी क्या कर लेता मेरी वज़ह से तुम भी केस हार जाते ।

वह व्यक्ति बोला – आज तक आपके बारे मे जो भी सुना था वह कुछ भी नही है उसके बनसपत जो आप हो।

वल्लभ भाई का जीवन ऐसे किस्से कहानियों से अटा पड़ा है।

एक बार अंग्रेजो ने किसानो का कर 30 फिसदी तक बढ़ा दिया तो किसानो ने विरोध शुरु कर दिया । तो इस विरोध का समर्थन करने पटेल भी पहुंच गये ।

ये सत्याग्रह गुजरात के बारदोली नामक जगह चल रहा था अतः इसे बारदोली सत्याग्रह नाम से जाना गया ।

जब कुछ समय तक अंग्रेज सरकार ने किसानो की मागों को नही माना तो वल्लभ भाई के कुछ मित्रों ने उन्हे ये कह कर हट जाने की सलाह दी की सरकार अपने फैंसलों को ईतनी आसानी से नही बदला करती ।

वल्लभ भाई ने कहा – आसानी से मिलने वाली जीत मे मजा भी नही आता । और जब एक बार लग गये तो लग गये ।

आखिरकार सरकार को उनकी शर्तों को मानना पड़ा और कर 30 फिसदी से घटाकर मात्र 6 फिसदी कर दिया । बारदोली सत्याग्रह की सफलता से खुश होकर वंहा की औरतो ने वल्लभ भाई को सरदार की उपाधी प्रदान की । तब से उन्हे सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से जाना जाने लगा ।

देश की आजादी के बाद जब देश मे हमारी सरकार बनी तो प्रधान मंत्री पद के लिए दो मुख्य दावेदार थे - - सरदार वल्लभ भाई पटेल और पं. जवाहर लाल नेहरु ।

लेकिन कोंग्रस के ज्यादा सदस्य चाहते थे कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को देश की बागड़ोर दी जाए । लेकिन पं. जवाहर लाल नेहरु प्रधान मंत्री बनने की जिद किए बैठे थे और महात्मा गांधी के करीबी भी थे । महात्मा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरु को नाराज भी नही कर सकते थे या नाराज करना नही चाहते थे । अतः उन्होने सरदार वल्लभ भाई पटेल से आग्रह किया की वो अपना नाम वापस ले लें ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ये कहते हुए अपना नाम वापस ले लिया के उन्होने देश की निस्वार्थ सेवा की है और आगे भी करते रहेंगे ।

कड़े संघर्षों के बाद वो दिन भी आया जब अंग्रेज देश को छोड़कर जाने को तैयार हो गये । जैसे ही अंग्रेजों ने 15 अगस्त को देश को आजाद करने की घोषणा की उस समय व्याप्त लगभग 625 रियासतों के राजा भी अपनी आजादी का ख़्वाब देखने लगे । और जब जाने से पहले अंग्रेजो ने कहा की कोई रियासत चाहे तो पाकिस्तान के साथ जाऐ, चाहे भारत के साथ और चाहे तो वे स्वतंत्र भी रह सकते हैं । इस बात से तो राजाऔं की उम्मीद को पंख लग गए । अब इन सब को एक साथ लाना पहाड़ को झुकाने जैसा ही काम था । इस कठिन काम का जिम्मा भी वल्लभ भाई पटेल ने लिया । कुछ राजा तो अपने आप ही भारत के साथ आना चाहते थे । कुछ के लिए वल्लभ भाई पटेल को बीच में आना पड़ा । लेकिन कुछ आसानी से मानने को तैय्यार नही थे तो उन्हे वल्लभ भाई पटेल ने शाम, दाम, दण्ड़, भेद जैसे जो माना मनाने की कोशिश की और लगभग सारी रियासतों कों विलय के लिए मना लिया और कहीं सेना ले जाने की आवश्कता नही पड़ी । लेकिन हैदराबाद का नवाब नही मान रहा था । वल्लभ भाई पटेल उससे मिलने स्वयं गये और उससे कहा - - समय की धारा के साथ चलो विपरीत जाकर तुम्हे क्या मिलेगा ?

लेकिन मैं स्वतंत्र रहना चाहता हूँ ।

हम सब स्वतंत्र हैं । सब मिलकर रहेंगे ।

इतने बड़े संघ में मेरा क्या वजूद रहेगा ?

इतने बड़े संघ के सामने भी आपका क्या वजूद रहेगा ?

कुछ भी हो मैं स्वतंत्र रहना चाहता हूँ ।

इस आजादी में आप अपना कितना योगदान समझते हैं ? ?

तो फिर आपका जनता को गुलाम बनाना कहां तक सही है ? ? ?

मैं तुम्हारी बातों में फसने वाला नही ।

तो फिर युध के लिए तैयार हो जाओ । बाहर 500 रियासतों की सेना तैयार खड़ी है ।

बस इतना सुनना था कि नवाब झट से विलय के लिए तैयार हो गया ।

31 अक्टूबर 1875 को जन्मे इस महापुरूष का देहान्त 15 दिसंबर 1950 को हुआ। ये इस देश की विड़ंबना है कि जिस लाल को भारत रत्न जीते जी मिल जाना चाहिए था उसे 41 साल मरणोपरांत मिला ।

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