वैलेंटाइन ब्लॉक्ड
2000 से 2010 का दशक। एक छोटा शहर और उसका महिला महाविद्यालय व छात्रावास, जहां आस - पास के गांव और शहर की लड़कियां पढ़ने आया करती थीं। इसी कालेज में स्नातक के आखिरी साल में थीं तीन सहेलियां - जया, किरण और सरस्वती। अलग अलग ओनर्स होते हुए भी तीनों बहुत अच्छी दोस्त थी। अलग-अलग मिजाज की होते हुए भी तीनों का स्पार्क उन्हें जोड़ता था। तीनों अलग अलग शहरों से भी थी। जया और किरण हास्टल में थी और सरस्वती का घर उसी शहर में था, तो छुट्टियों में उनका मिलना नहीं हो पाता था। दूसरे वर्ष की परीक्षा अभी खत्म हुई थी और फरवरी का महीना।
"हां जी, कैसे मनाओगी वैलेंटाइन डे तुम दोनों?" सरस्वती ने आते आते पूछा।
किरण ये सुन रूआंसी सी हो गई और जया हौले से मुस्कुरा दी। किरण का बचपन से ही अपने घर के पास ही विनय पर क्रश था, एकदम पागलों वाला। विनय को ये पता था, तो वो जान - बूझकर कभी किरण के रूप-रंग कभी कमजोर भावनाओं का मजाक उड़ाया करता।
जया को उसके शहर का एक लड़का बहुत पसंद करता था,पर वो दूसरी जाति का होने के कारण दोनों दूरी बनाए रखते थे। रूहानी जैसा इश्क। सरस को सिर्फ पढ़ाई व समोसे, कभी कभी इन मुहब्बत करने वालों की खिंचाई। वैलेंटाइन के महीने में वो ये मौका कैसे छोड़ती?
"तुम....क क् क क किरण....." सरस ने चिढ़ाया।
"ए सरस, चुप वो ऐसे ही उदास है।" जया बोली।
किरण के आंखों से आंसुओं की रफ्तार तेज हो गई।
"सॉरी यार, चुप हो जा। तुम्हें रोते देखती हूं तो मन करता है गला दबा दूं, उस विनय का।" सरस्वती रोष भरे स्वर में बोली।
"सच कहा सरस, मेरा भी यही मन करता है। पर इस मैडम को कुछ मत कहो। कहेगी - नहीं, उसकी कोई गलती नहीं।" जया ने भी साथ दिया।
"अरे छोड़ो न, तुम दोनों हमेशा मेरी फिक्र करती रहती हो। अपनी सुनाओ, जया?" किरण खुद को संभाल चुकी थी।
"हास्टल में किसके साथ वैलेंटाइन? हा...हा। मेरा तो पता ही है, है भी नहीं भी। तुम सरस मैडम, एसारके आया? जया ने सरस को छेड़ा।
"अरे आ जाएगा, समोसे लेकर..... क..क... किरण करते हुए।" सरस माहौल को खुशनुमा बना चुकी थी।
"फिलहाल तो गोली मारो सबको, चलो कैंटीन में गोपाल भैया के समोसे खाते हैं।
"ए सरस, तुम्हें समोसे बहुत पसंद हैं न, गोपाल भैया के हाथों के और तेरा कोई वैलेंटाइन का भी चक्कर नहीं। तू तो कहती है किसी से भी ब्याह कर लो , सब साग - सत्तू हो ही जाएगा। तो तुम ना, गोपाल भैया से शादी कर लो।वो समोसे बनाएंगे, तुम खाती रहना।" किरण को मजाक सूझा।
"नाट अ बैड आईडिया......"कहते हुए सरस कैंटीन की ओर बढ़ चली।
वैलेंटाइन डे से ठीक पहले सरस्वती पूजा आई। हर साल छात्रावास में पूजा का आयोजन होता था, इस दिन नियम में थोड़ी ढिलाई रहती थी। लड़कियां नाचने - गाने का मजा भी पूजा के साथ लड़कियां लिया करतीं थीं। सरस भी छात्रावास अधीक्षिका की आज्ञा से हास्टल में ही सरस्वती पूजा मनाती।
पर इस बार सरस्वती का कोई पता नहीं।पूजा , विसर्जन सब हो गया,वो नहीं आई। जया व किरण बेचैन थे, पर कुछ कर नहीं सकते थे । अधीक्षिका का फोन सिर्फ आपात स्थिति के लिए था।
दो दिन बाद सरस का खत आया, एक लड़की के जरिए।
जया, किरण
मैं अब शायद कालेज नहीं आ पाऊं। तुम्हें तो पता ही है, ग्रैजुएशन होते - होते मेरी शादी हो ही जाएगी,तो उसी की बात चल रही है। लड़का इसी शहर का है, तो दोनों की मांओं ने निषेधाज्ञा लागू कर दी। तुम दोनों को शुभकामनाएं, खूब पढ़ना यार। फिर शादी करना।
पढ़कर दोनों के चेहरे झुलस गए।
दस दिन बाद सरस दिखी, मिलने की खुशी और अंदर की खिन्नता दोनों थी चेहरे पर।
"क्या हुआ?" दोनों साथ चहकी।
"कुछ नहीं यार, उनकी डिमांड पूरी करने में पापा सक्षम नहीं थे, तो 'लड़की पसंद नहीं है' । मुसीबत जब तक टले , तब तक बढ़िया।"
"सरस, तुम अंकल - आंटी को कहती क्यूं नहीं कि तुम्हें पढ़ने के लिए थोड़ा और वक्त दे दे। इतनी अच्छी हो पढ़ाई में, जरूर अच्छा करोगी।" जया बोली।
" बस यही नहीं कर सकती। पता नहीं सामाजिक दबाव या वो जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं? उन्हें मनाना मेरे वश में नहीं, मैंने कोशिश भी नहीं की, क्यूंकि जानती हूं ये मुमकिन नहीं। तुम लोग खुशकिस्मत हो इस मामले में, आगे की तैयारियों के लिए किसी बड़े शहर में भेजी जाओगी। मेरे सपने तुम दोनों पूरे करना, और जया मैं तो चाहूंगी तुम पढ़ लिख कर जाति के बंधनों को भी तोड़ो।" आज बहुत गंभीर थी सरस।
मार्च में होली की छुट्टियों में किरण और जया 15 दिन के लिए घर चली गई। वो लौटीं तो दूसरे वर्ष का परिणाम भी आ गया था। सरस और जया ओनर्स टॉपर बनीं, किरण एक विषय में अटक गई। रोकर उसकी हालत बुरी थी।
"किरण, हाथ जोड़ती हूं। पढ़ाई पर ध्यान दो, उस इडियट के कारण अपना भविष्य खराब मत करो।" सरस रोष भरे स्वर में बोली।
"अब कोशिश करूंगी।"
"ए, सुन देवदासी तुम्हारे विनय को फोन कर खूब सुनाया मैंने।' जया ने आते आते घोषणा की।
दोनों अवाक्।
"क्यूं? क्या कहा उसने? तुम्हें कुछ कहा तो नहीं?" किरण घबरा गई।
"नहीं, बस मैंने अपना गुस्सा निकाल दिया।" जया ने पूरी बात नहीं बताई कि विनय ने कहा कि आपकी सहेली हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ी है। किरण ने रोते हुए उसे गले लगा लिया।
"कमाल कर दिया जया तुमने।" कहते हुए सरस किरण की ओर मुखातिब हुई।
"अब खूब पढ़ो, और दिखा दो उसे।"
"और तुम सरस?"
"मैं... मैं क्या?"
"क्या....क्या? न प्यार ,न पढ़ाई। मुझे कभी कभी लगता है, तुम ऐसी नहीं हो। प्यार छोड़ो, लड़कपन का आकर्षण तो होता ही है।" जया शिकायत भरे लहजे में बोली।
थोड़ी गंभीर हो गई सरस इस बार, मानो किसी ने दुखती रग छू दी हो।
" देखो ये प्यार , वैलेंटाइन मेरी समझ से परे हैं। तुम्हें क्या लगता है,मुझ जैसी से किसी को प्यार जैसा कुछ होगा? मैं इस पगली के जैसी नहीं। आकर्षण गलत की तरफ ही होता है, जो था वो ऐसा कि 8-9 वीं की बच्चियों से इश्क लड़ाता है। और सच कहूं तो मुझे लगता है न किरण कि विनय तुम्हें प्यार तो नहीं करता , लेकिन जब भी तुम उसके ख्यालों में आती होगी, बिना कपड़ों के ही.....
"छि: सरस, सब ऐसे नहीं होते...." जया ने झिड़का।
" हो सकता है, पर मुझे नहीं लगता......" भारी हो गया था सरस का स्वर।" मेरे पास वक्त भी तो नहीं है, अब एक साल भी नहीं। पढ़ाई कर नौकरी करनी है, नहीं तो फिर शादी, बच्चे....... चल छोड़ ना ...शादी के बाद होता रहेगा इश्क, वैलेंटाइन....
"पति के साथ बच्चे पैदा किए जाते हैं, इश्क नहीं हो पाता होगा शायद...."किरण के शब्द संभावनाओं में खोने लगे।
"वाह, कितनी समझदारों वाली बातें करती हो बस इस विनय ने दिलोदिमाग पर कब्जा किया हुआ है" सरस माहौल को हल्का बनाते हुए बोली।
"सुनो सरस, अगर कभी प्यार हो गया शादी के बाद तो? मान लो कोई ऐसा, जो तुम्हें यकीन दिला दे कि तुम उसके ख्यालों में बिना कपड़ों के नहीं आती हो...?" जया ने माहौल को गंभीर बना दिया फिर से।
"उस दिन..... उस दिन....उ स दिन.... कयामत आएगी जानेमन...."सरस ने फिर से हल्का कर दिया और तीनों ठहाके लगाते हुए चली गई।
तीनों के कालेज खत्म हुए, किरण भी उत्तीर्ण हो गई थी। उसी साल सरस का ब्याह हो गया। जया और किरण दिल्ली चली गई, प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी हेतु। किरण ने अपने आपको काफी हद तक संभाल लिया था, फिर कुछ दिनों बाद जया ने बताया कि इस छुट्टियों में जब किरण घर गई थी तो विनय अपनी शादी का कार्ड देने आया था और मोबाइल में अपनी मंगेतर की तस्वीर दिखाकर चिढ़ाते हुए कहा कि वो दीया मिर्जा जैसी दिखती है।
"क्या बताऊं, तब से ये पगली फिर से परेशान है।"
"यार, मन तो कर रहा है मार डालूं इस विनय...... छोड़ तुम संभाल लेना उसे।"
वक्त बीतता गया, सरस एक बेटी की मां बन गई। जया और किरण दोनों को ही प्रशासनिक परीक्षा में असफलता मिली लेकिन जया ने लॉ और किरण ने शिक्षा में स्नातक कर लिया। सरस मुंबई, जया दिल्ली व किरण भोपाल में पर तीनों की सांसें जुड़ी थी, सोशल मीडिया ने तीनों की करीबी को कायम रखा था। तीनों मां बन चुकी थी, कमोबेश खुश भी।
एक दिन ग्रुप चैट में किरण के ये बताने पर कि विनय का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया है, दोनों भड़क गई। किरण ने भरोसा दिलाया कि अब वो कोई वास्ता नहीं रखेगी।पर दूसरे ही दिन किरण रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर चुकी थी,ये देख दोनों बहुत नाराज़ हुई।
किरण ने बताया कि विनय का तलाक होने वाला है और वो बहुत परेशान है।
"और उसे रोने के लिए तुम्हारा कंधा चाहिए? राईट? बस करो बचपना, तुम कमजोर पड़ रही हो।" जया ने भी सहमति दी।
" हां.... शायद....."
फिर दो हफ्ते किरण ने किसी से बात नहीं की।इन दोनों ने भी गुस्से में छोड़ दिया।
पर आज वैलेंटाइन डे था तो सरस खुद को रोक नहीं पाई।
"हैप्पी वेलेंटाइन डे...."
"नाराज हो सरस? जया बहुत नाराज़ है.... सॉरी यार तुम दोनों को दुखी किया। हां ये सच है कि मैं कमजोर पड़ने लगी थी और वो मेरे निजी जीवन में दखल देने लगा था। आज ब्लॉक कर दिया।"
"वाह.... वैलेंटाइन डे पर वैलेंटाइन ब्लाक......।"सरस हंसते हुए बोली।
"हां.... चल जया को भी बताती हूं, नाराज़ है। खुश हो जाएगी। बाय.."
बाय कहते हुए सरस मन ही मन बोली......" मेरे लिए तो कयामत आ गई।
***