बुकेवाले रामलुभाया
हमारे शहर में एक बन्दा रहता है. लोग कहते हैं कि वो कमाल का आदमी है. वैसे आदमी तो वो 'कमला' का है लेकिन अक्सर कमाल करता रहता है इसलिए लोग कहते हैं 'कमाल का आदमी है'. अरे वहीअपने रामलुभाया। इनकी सुबह किसी मंत्री की चौखट से शुरू होती है और शाम किसी अफसर की चौखट पर दम तोड़ती है. मेरे शहर में अनेक रामलुभाया है. जो दिन भर मिठाई के डब्बे और बुके या गिफ्ट देने के पुनीतकार्य में युद्धस्तर पर लगे रहते हैं. ये लोग किसी को बुके थमा देंगे, किसी को काजूकतली वाला डब्बा भेंट करके आ जाएँगे. लोग भी सोचते है कि आखिर ये करता क्या है? जिस मंत्री-अफसर को ये काजूकतली या काजू-किशमिश के डब्बे भेंट करते हैं , वो लोग भी सहसा समझ नहीं पाते कि सामने वाले के मन में क्या चल रहा है. इसकी 'पॉलीट्रिक्स' क्या है, बंदा चाहता क्या है? बिना किसी स्वार्थ के लोग कटे पर भी कोई लघु-शंका नहीं करते और ये पट्ठा दो -तीन सौ रुपये का बुके ले कर आ रहा है, साथ में पांच सौ रुपये वाली मिठाई गिफ्ट कर रहा है. चक्कर क्या है, लफड़ा क्या है, इसके दिल में किस काम को सुलटाने की पृष्ठभूमि तैयार हो कर बैठी है?
रामलुभाया उस दिन एक मंत्री जी के घर बुके ले कर पधारे। मंत्री जी पहले भी इनसे बुके लेते रहे हैं इसलिए रामलुभाया को देख कर फ़ौरन हाथ आगे बढ़ा कर बुके स्वीकार किया, फिर मिठाई का डब्बा भी लेलिया। रामलुभाया को बैठने के लिए कहा और फोन उठा कर अपने सेवक को आदेश दिया, ''नाश्ता लगा दो.'' सेवक थोड़ी देर बाद चना-मुरा और मिर्ची-प्याज के साथ हाजिर हो गया. मंत्री जी का प्रिय नाश्ता, यह देख करमंत्री जी ने मुस्कराते हुए कहा, ''अरे रामू,ये अपने गाँव के मतदाता-मेहमान नहीं है जो तुम चना-मुर्रा में निबटा रहे हो? अरे, ये सेठ लोग हैं. काजू-किशमिश खाते है. जाओ बढ़िया नाश्ता ले आओ. और हां, मिठाई के इसडब्बे का भी पूरा उपयोग कर लेना.''
रामू ने बाद सेठीय नाश्ता परोस दिया, रामलुभाया धन्य हो गये. मंत्री जी ने पूछा- '' और सब ठीक है?'' राम लुभाया अपने शरीर को विनम्रता के साथ हिलाते हुए कहा, ''सब आपकी कृपा है.''
बाल -बच्चे राजी-खुशी से हैं? मंत्री ने फिर पूछा तो रामलुभाया ने फिर वही दुहराया, ''सब आपकी कृपा है? ''
राम लुभाया अपने काम की बात बोल ही नहीं रहे थे . मंत्री जी भी जान रहे थे कि ये पट्ठा अभी कुछ नहीं बोलेगा. जब जाने लगेगा, तब धीरे -से अपनी बात रखेगा. ये बुके-मिठाई और गिफ्ट देने वाले बड़े कलाकार होते हैं,सीधे-सीधे मुद्दे पर नहीं आते. सीधे-सीधे तो मूरख किस्म का आम आदमी आता है. न ससुरा बुके देता है, और न मिठाई, और कहता है मेरा ये काम है, हो जाना चाहिए.'' ऐसे लोगों का काम काम ही रह जाता है और खासलोगो का काम दन्न से हो जाता है. तो रामलुभाया कुछ बोल ही नहीं रहे थे, और मंत्री जी मज़े ले रहे थे। मंत्री जी बोले, '' ''मौसम कैसे पल-पल बदल रहा है.'' रामलुभाया ने स्वर से स्वर मिलाया, ''जी, पल-पल बदल रहाहै. क्या कीजिएगा.''
मंत्री ने फिर रामलुभाया को पलटी मारने के लिए मज़बूर किया, ''वैसे इस बार मौसम का रुख पहले से तो बेहतर है, क्यों?'' रामलुभाया ने छूटते ही कहा, ''सही फरमा रहे हैं आप. पहले से काफी बेहतर हो गया है.''
रामलुभाया की बातें सुन कर मंत्री जी हँस पड़े ''बड़े ही मजेदार आदमी हैं आप. ये बुके कहाँ से बनवाते है. देख कर तबीयत खुश हो जाती है. पत्नी निहारती रहती है इसको, और मिठाई लाज़वाब, हमारा टॉमी लपक करखाता है. उसे बड़े प्रिय लगते हैं''
रामलुभाया को समझ में नई आया कि टॉमी कौन ? कुत्ता या इनका नौकर? वैसे अक्सर कुत्ते को ही टॉमी कहते हैं, मगर मंत्री के यहाँ पता नहीं किसको कहते हैं. रामलुभाया को बाद में जैसे ही समझ में आया कि उन्हें निबटाने में लगे हैं तो बोले, ''अब चलता हूँ. कुछ और लोगों से मिलना है.''