मुआवजा Dr kavita Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मुआवजा

मुआवजा

दो दिन बीत चुके थे, गम्भीर रूप से तेजाब में झुलस चुकी रूपा अभी भी जीवन—मृत्यु के बीच झूलते हुए साँसों का भार ढोती हुई अस्पताल में पड़ी थी। रूपा की चेतना लौटते ही उसके माता—पिता डॉक्टर से अनुमति पाकर बेटी के बिस्तर की ओर लपक पड़े। अपनी बेटी को जीवित देखकर वृद्ध माता—पिता के शरीर में जैसे प्राण लौट आये थे। किन्तु, रूपा के चेहरे सहित शरीर का आधे से अधिक भाग झुलस चुका था। वह रह—रहकर तड़प उठती थी । उसके माता—पिता भी बेटी की पीड़ा का अनुभव करके तड़प रहे थे। बेटी को जीवित देखकर जो प्राण शरीर में लौट आये थे, अब बेटी की पीड़ा का अनुभव करके अपनी शक्ति—भर शरीर से निकलने का प्रयास कर रहे थे। पर प्राण तो प्राण थे, इतनी सरलता से निकलते भी तो नहीं, विशेषकर जब प्राणी चाहे तब तो कदापि नहीं।

रूपा के पिता ने पितृत्व-भाव का दायित्व निर्वाह करते हुए रूपा की माँ के कंधे पर हाथ रखा और संकेत किया कि धैर्य से रहें ताकि बेटी का मनोबल न टूटे। माँ को शीघ्र ही अपना कर्तव्य समझ में आ गया। उन्होंने लाड़ली बेटी का मनोबल बढ़ाने के लिए संयत शब्दों के साथ यथोचित शैली में संवाद आरंभ किया, तो रूपा ने माँ को बताया कि उसके मित्र प्रेयस ने उनकी बहुत सहायता की है। इस दुर्घटना के विषय में ज्ञात होते ही वह यहाँ आ पहुँचा था और यथासंभव सहायता—सेवा करने के लिए प्रतिक्षण तत्पर रहा है।

रूपा की चेतना लौटने की सूचना मिलते ही पुलिस इंस्पैक्टर अस्पताल में पहुँच गया । पुलिस इंस्पैक्टर ने रूपा से पूछा— “ एसिड फेंकने वाले के विषय में आप कुछ बता सकती हैं।”

"नहीं !" कहते-कहते रूपा तेज़ाब से झुलसे हुए अपने घायल चेहरे पर बंधी पट्टियों पर हाथ की कोमल उंगलियाँ फिराते हुए उस कुरूपता की कल्पना करके काँप उठी थी, जो कुछ समय पश्चात् उसको यथार्थ रूप में भोगना था | इंस्पैक्टर द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तरस्वरूप काँपते स्वर में वह मात्र " नहीं !" कहकर उस क्षण के विषय में सोचने लगी जब वह किसी असामाजिक युवक द्वारा किये गये तेज़ाबी हमले के अमानवीय कृत्य का शिकार हुई थी |

"हम अपराधी कीतलाश कर रहे हैं, शीघ्र ही वह हमारी गिरफ्त में होगा ! मैं फिर आऊँगा !" यह कहते हुए इंस्पेक्टर उठ कर चला गया |

इंस्पेक्टर के जाने के थोड़ी देर पश्चात रूपा की सहेली संध्या आयी | उसने रूपा के माता-पिता को बताया कि रूपा के ऊपर तेजाब का आक्रमण होते ही पुलिस अपनी जाँच में जुट गयी थी | जाँच तथा सभी पहलुओं पर विचार के बाद आज पुलिस ने प्रेयस को हिरासत में ले लिया था। प्रेयस को हिरासत में लेने का आधार तो केवल संदेह ही था, किन्तु अपनी जाँच में पुलिस को धीरे-धीरे कुछ ऐसे तथ्य मिल रहे थे, जो रूपा के ऊपर तेजाब के आक्रमण में प्रेयस की संलिप्तता की ओर ठोस संकेत करते हुए पुलिस के संदेह को विश्वास में बदल रहे थे । इसलिए पुलिस ने प्रेयस को हिरासत में लेते ही सख्ती के साथ पूछताछ आरम्भ कर दी थी | पुलिस की पूछताछ में प्रयास ने बताया कि उसने रूपा के समक्ष कई बार प्रेम का प्रस्ताव रखा था, किन्तु रूपा ने उसके प्रेम को यह कहकर ठुकरा दिया था कि वह उसे प्रेम नहीं करती है | रूपा का नकारात्मक उत्तर सुनकर उसके हृदय में उत्तरोत्तर कटुता का भाव बढ़ता चला गया, लेकिन अपनी कटुता को उसने एक बार भी प्रकट नहीं किया। इस कटुता ने उस समय विकराल रूप धारण कर लिया, जब उसे यह ज्ञात हुआ कि रूपा के माता—पिता रूपा के लिए वर तलाश रहे हैं और संभवतः यह तलाश अब अंतिम चरण में पहुँच चुकी है, और शीघ्र ही रूपा का विवाह किसी अन्य युवक के साथ हो जाएगा। अपने प्रेम में असफलता का भय उसकी सहृदयता पर इतना भारी पड़ गया कि एक ओर उसके हृदय से मैत्री—भाव का लोप होने लगा, तो दूसरी ओर मानवता को कुचलते हुए उसकी हिंसक वृत्ति जागृत हाने लगी। इसी मानसिक विकृति से प्रेरित होकर उसने अपने मन में दृढ़ निश्चय किया कि वह रूपा का ऐसा हश्र करेगा कि कोई रूपा के साथ विवाह करने के लिए तैयार ही नहीं होगा ! अपने इस निश्चय को साकार करने के लिए उसने अपने एक मित्र के साथ मिलकर योजना बनायी और योजना को कार्यरूप में परिणत करने के लिए अपने पड़ोस में रहने वाले दो किशोरवयः लड़कों को चुना। दुर्घटना को सफलतापूर्वक अंजाम देने के बाद दोनों लड़कों को पच्चीस—पच्चीस हजार रूपये देकर वह स्वयं मित्रता का मिथ्या आचरण करने के लिए अस्पताल पहुँच गया, ताकि कोई उसके ऊपर संदेह न कर सके।

संध्या से यह ज्ञात होने पर कि रूपा के साथ घटित दुर्घटना में प्रेयस की संलिप्तता के चलते प्रेयस को हिरासत में लिया गया है, रूपा के साथ-साथ उसके माता-पिता के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी | रूपा की आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी — “जिस मित्र पर मैं स्वयं से भी अधिक विश्वास करती थी, उसने अपने कुकृत्य से मेरे जीवन का सौन्दर्य छीन लिया ! मित्रता को कलंकित कर दिया ! "

रूपा की आँखों से ढलकते हुए आँसुओं को देखकर संध्या ने सांत्वना देते हुए उसे बताया कि सरकार ने तेज़ाब पीड़तों की सहायता के लिए उन्हें निःशुल्क चिकित्सा के साथ मुआवजा राशि देने की व्यवस्था की है | संध्या की बातें सुनकर रूपा की आँखों में तनाव झलकने लगा | अत्यन्त कठिनतापूर्वक पीड़ायुक्त धीमें स्वर में उसने कहा -- "मुआवजा राशि कभी मुझे वह प्रसन्नता दे सकती है, जो मुझे अपने सुन्दर चेहरे को दर्पण में निहारकर मिलती थी ? और उस राक्षस का क्या, जिसनेे फूल-से चेहरे को तेज़ाब की आग में झुलसकर मेरे जीवन के अर्थ ही बदल दिये ?"

रूपा के मुख से राक्षस शब्द सुनकर संध्या ने बताया कि प्रेयस के माता-पिता ने अपनी पहचान और पैसे के बल पर अभी तक केस फाइल नहीं होने दिया है, वे उसको आरोप से बचाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति पर ऐड़ी-चोटी का प्रयास कर रहे हैं | संध्या द्वारा दी गयी सूचना से रूपा और उसके माता-पिता का अन्तःकरण अधिक बोझिल हो गया | उनके मनःमस्तिष्क में बस एक ही प्रश्न बार-बार उठ रहा था --"अब क्या होगा ?"

उसी समय प्रेयस के माता-पिता अस्पताल में आ पहुँचे | प्रेयश की माँ ने रूपा के समक्ष अपना आँचल फैला कर क्षमा याचना करते हुए निवेदन किया --" रूपा, बेटी, प्रेयस तुमसे बहुत प्रेम करता है ! न जाने किसके बरगलाने से, कैसे वह नकारात्मक विचारों में डूब गया और आवेश में इतना गलत कदम उठा गया !" रूपा के माता-पिता से प्रेयस की माँ ने कहा - " मैं रूपा को अपने घर की बहू बनाकर उसे दुनिया का हर सुख देने का प्रयास करूँगी, तुम मेरे बेटे को बचा लो !" ममता के धुंधले कोहरे से आच्छादित विवेक का प्रकाश खो चुकी प्रेयस की माँ अगले दो दिन तक रूपा तथा उसके माता-पिता के समक्ष रोती-गिड़गिड़ाती-आँसू बहाती रही और अपने नादान बेटे की धृष्टता और दुस्साहसपूर्ण जघन्य अपराध के लिए क्षमा की भिक्षा याचना करती रही | एक माँ के बहते आँसू देखकर तथा अपने जीवन के अंधकारमय भविष्य कल्पना करके भयभीत होकर रूपा ने अत्यंत शिथिल मन से प्रेयश की माँ का आग्रह स्वीकार कर लिया | रूपा के मुख से प्रेयस के साथ विवाह की स्वीकृति शब्द सुनते ही उसके माता-पिता तथा सहेली संध्या के मुख से सामूहिक स्वर निकल पड़ा --

“ यह क्या कह रही हो तुम ?”

“ मेरा जीवन नर्क से भी बदतर हो चुका है ! न चाहते हुए भी आजीवन मुझे कुरूपता का यह नर्क भोगना पड़ेगा। आज प्रेयस मुझसे विवाह करने के लिए तैयार है, तो...! "

रूपा के माता-पिता ने उसको समझाया कि वह प्रेयस जैसे जघन्य अपराधी को कानून के पंजे से बचाना उचित नहीं है | माता-पिता का आग्रह सुनकर रूपा एक क्षण के लिए मौन रहने के पश्चात पुनः बोली -

"पापा, प्रेयश धनी बाप का बेटा है | ऊँचे पदों पर बैठे हुए लोगों से उनकी पहचान है | पैसे और पहचान के बल पर वह कानून के दंड से बच जायेगा ! दंड का तो छोड़िए, हम उसको अपराधी सिद्ध कर पाएँगे, यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि गरीब को न तो गवाह मिलते हैं, न सबूत और ना ही न्याय मिलता है |" बेटी का उत्तर सुनकर उसके माता-पिता मौन हो गये |

कानून से बचने के लिए माता-पिता के समझाने पर प्रेयस ने रूपा के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया था | प्रेयस के माता-पिता द्वारा निर्धन पिता की तेजाब से झुलसी हुई कुरूप बेटी को अपने घर की बहू बनाने के लिए तैयार होना जितना आश्चर्यजनक था, उतना ही संदेहस्पद भी था, लेकिन रूपा और उसके माता-पिता शांत थे, स्थिर थे | अन्ततः दोनों पक्षों में कुछ शर्तों के साथ समझौता हो गया और प्रेयस को छोड़ दिया गया |

रूपा को पूर्णरुपेण स्वस्थ होने में कई माह बीत गए | इस समयांतराल में प्रेयस रुपा से मिलता-जुलता रहा और उसको आश्वस्त करता रहा कि शीघ्र ही वे दोनों परिणय-सूत्र में बंध जाएँगे | जब रूपा का स्वास्थ्य पूर्णरूपेण ठीक हो गया, धीरे-धीरे प्रेयस ने उसके साथ घर से बाहर मिलना आरंभ कर दिया | यद्यपि रूपा के माता-पिता को उसका घर से बाहर प्रेयस के साथ मिलना जुलना खटकता था और जब तक वह घर नहीं लौटती थी, तब तक वे बेटी के अनिष्ट की आशंका से व्याकुल रहते थे, तथापि रूपा पूर्ण आत्मविश्वास से प्रेयस के साथ मिलती-जुलती रही |

पूर्णरुप से स्वस्थ होने के लगभग तीन माह पश्चात् एक दिन प्रेयस के बुलाने पर वह शाम के आठ बजे शहर के बाहर ग्रामीण बस्ती में बने हुए एक मंदिर में पहुँची | प्रेयस वहाँ पर पहले से ही रूपा की प्रतीक्षा कर रहा था | लगभग एक घंटे तक दोनों बातें करते रहे और मंदिर के प्रांगण में टहलते रहे | टहलते-टहलते वे दोनों मंदिर के प्रांगण से बाहर निकलकर उसके पीछे वाले भाग में वहाँ पहुँच गए, जहाँ प्रायः लोगों का आना-जाना नहीं रहता था | अब तक रात का घना अंधकार हो चला था वहां पर पहुँचकर रूपा को किसी अनहोनी की गंध आने लगी | तभी अचानक प्रेयस ने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकालकर रूपा पर तान दी | रूपा आरंभ से ही उसकी एक-एक गतिविधि पर गंभीर दृष्टि बनाए हुए थी और उसकी मनःस्थिति का प्रतिक्षण सूक्ष्म निरीक्षण-अध्ययन कर रही थी | फलस्वरूप प्रेयस के हाथ में रिवाल्वर आते ही रूपा फुर्ती से आगे बढ़ी और गोली छूटने से पहले ही उसके लक्ष्य को विपरीत दिशा में मोड़ दिया | अपनी सावधानी और फुर्ती से रूपा इस बार बच गई और प्रेयस को गोली लग गई | वह कराहते हुए धरती पर गिर पड़ा | रूपा ने क्रोध और पीड़ा के मिश्रित भाव में कहा -

" एसिड अटैक से मेरे जीवन का सुख-चैन नष्ट करके तेरा मन नहीं भरा था ? एक बार भी तूने यह नहीं सोचा कि मेरे मरने के बाद मेरे माता-पिता का क्या होगा ?" एक क्षण रुककर रूपा ने पुनः कहा -- "क्या सोचकर चला था तू ? यह कि तुझ पर विश्वास करके इस अंधेरी रात में मैं तेरे प्रेम में पागल होकर आऊँगी और तू मेरी हत्या करने में सफल हो जाएगा ? नहीं प्रेयस ! यह सत्य नहीं था, केवल तुम्हारा भ्रम था | सत्य यह है कि तुम मेरी हत्या करने का अवसर तलाश रहे थे और मैं तुम्हें हत्यारा सिद्ध करने का अवसर खोज रही थी, इसलिए एसिड़ अटैक के बाद जब भी मैं तुम मुझसे मिलते थे, वीड़़ियो कैमरा लेकर छद्म वेश में पापा सदैव मेरे साथ रहते थे | पर ईश्वर को शायद कुछ और ही स्वीकार था | " यह कहते-कहते उसके क्रोध से लाल नेत्रों से आँसू की धारा बह निकली और साँस फूलने लगी |

" मै तुमसे मुक्ति चाहता था, सदा सदा के लिए | यही सोचकर मेरी माँ ने तुम्हारे साथ मेरा विवाह करने का प्रस्ताव रखा था | पर तुम मुझे मार सकती हो, ऐसा हमने कभी सोचा भी नहीं था |"

"जब तुम्हारी माँ ने विवाह का प्रस्ताव रखा था, मैंने तभी समझ लिया था कि तुम लोग ऐसा कुछ अवश्य करोगे ! फिर भी मैंने तुम्हारी माँ का निवेदन स्वीकार किया था | चूँकि समाज में तुम जैसे राक्षस प्रवृति के लोगों की उपस्थिति का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए मैं उस समय तुम जैसे राक्षसों से समाज को मुक्त करने के विषय में सोच रही थी, पर कुछ उपाय नहीं सूझ रहा था | आज तुमने मुझे स्वयं वह उपाय भी बताया और अवसर भी दिया | तुम्हारा वध करके मुझे समाज से कम से कम एक राक्षस को समाप्त करने का पुण्य तो प्राप्त होगा ही, मेरे लिए यही सबसे अधिक संतोषप्रद मुआवजा सिद्ध होगा ! "

प्रेयस ने आश्चर्ययुक्त अविश्वास भरी दृष्टि से रूपा की ओर देखकर तड़पते हुए कहा --

"रूपा ...!"

प्रेयस, तेरी हत्या के अपराध में मुझे मृत्युदंड भी कष्टकारक नहीं होगा | वैसे, तुम्हें बता दूँ कि अपने बचाव के लिए हमने इस घटनाक्रम की विड़ियो बना ली हैं ! उधर देखो, मेरे पापा ने यह नेक काम किया है !" लताओं के झुरमुट की ओर संकेत करते हुए रूपा ने कहा | यह कहकर रूपा तब तक वहीं खड़ी रही जब तक प्रेयस के प्राण-पखेरू नहीं उड़ गए | तत्पश्चात रूपा ने पुलिस को सूचना देकर कानून के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया | रूपा तथा उसके माता पिता को पूरा विश्वास है कि प्रेयस की अपराधी प्रवृत्ति के साथ घटना की वीडियो को देखकर कानून न्याय करेगा !

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