रूह की आह्ह Vinod Doriya द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रूह की आह्ह

रूह की आह्ह ..!

ये कहानी शूरु होती है गुजरात के छोटे से शहर से, शहर जयादा पुराना बसा हुआ नहीं था पर करीब - करीब कुछ आखरी राजाओ कि रियासत रह चुका था। यहाँ के इन इलाकों में अब भी और तब भी - लहु में गर्मीवाले मगर दिल की सच्चाइवाले लोगो की भरमार देखने को मिलती ।

ऐसी अच्छि जगह पेदा हुआ 1 लडका, नाम उसकी मुस्कान को देख स्मित रखा गया। बचपन अच्छे और सच्चे लोगो में गुज़रने से वह भी बडा होकर एक हसमुख, भला और दयावान व्यक्ती बना। स्मित हमेशा अपने अच्छे और सच्चे काम से सब का दिल जीत लेता। पढ़ाइ में भी ठिक होने के कारण विश्वविद्यालय मे अच्छॅ रैंक से पास हुआ था। अपने आसपास की भव्य इतिहास को जानकर उजागर करने हेतु वह एक इतिहास के रिसर्च सेंटर में शामिल हुआ, और लग गया अपने ही शहर कै इतीहास को टटोलने ।

दिन बीतते गये, माह भी गुजरे, और अब स्मित भी वक्त के साथ कदम से कदम मिलाते-मिलाते शहर के महल, पूरानी इमारते, पूराना पार्क, शहर की नजदीकी इलाको में बने सब ताल - तलैया, सब की बारी-बारी से जाँच करने मे लग गया। स्मित को अपने काम के साथ-साथ 1 शौक भी था । काम के वक़्त मिली अजीब या दिलच्स्प चीज को वह अपनी पसंद के चलते अपने संग्रह मे जोड़ने के लिये और इसकी ज्यादा जांच-पढ़ाई करने घर ले आता ।

उसके संग्रह मे विचित्रता रह्ती । जैसे कभी कोई अलग आकृति मे तराशा हुई स्थापत्य कला, शाही पोशाक के मिले कोई हिस्से या फ़िर कुछ अजीब पत्थर भी इसमे शामिल रहते ।

1 सुबह की बात है, शहर के नजदीकी इलाक़ों में राजा के वक़्त मे बनाये गये तालाब की जाँच मे स्मित अब जुट गया । तालाब बाहरी विस्तार मे होने के कारण सुम्शाम भी था, पुरानी बनावट होने के वजह से काफ़ी गहरा भी था, कुछ कुछ अलग भी दिख रहा था। पुरे दिन की कस्मकस और कुछ खुदाइ करने पर 1 गोलाकार पत्थर मिला,मिट्टी साफ करके वही पर सुक्षमदर्शक से चेक करने पर गेंद का थोडा आभास मिल गया। अपने शौख के चल्ते उसने इसे बैग मे डाल् दीया, और अपने घर ले आया। घर पे ज्यादा साफ करने पर पत्थर कि चमक पहले से बढ़ी। और अब उसको स्मित ने अपने कलेक्शन कि अलमारी मे विशेष स्थान दीया । अब शाम हो गयी, ख़ाना ख़ा कर, कुछ अच्छि चिज की प्राप्ति कि मन्द मन्द सी मुस्कुराहट के साथ, सोचने लगा, इससे जरुर कुछ ऐतिहासिक जानकारी निकालकर इतिहास के कूछ पन्ने जरूर खोज निकालुगा।

सोचते - सोचते कब निन्द लग गइ, पता ही ना चला ...!

अगले दीन अपनी आरामदायि जिन्दगी के चलते स्मित सुबह देर से उठा और अविवाहित स्थिति को थोडा कोसा और ज्यादा सराहाना करते हुए,खुद चाइ बनाकर अपनी सुबह की चाई की चुस्की ले ली। और कल मीले पत्थर के बारे मे सोचते - सोचते काम पर जुट गया। और जैसे ही हाथ पत्थर को निकालने के लिये अलमारी खोली - पत्थर कल से जयादा चमक़दार दिख रहा था। 1 पल को आश्चर्य हुआ, फ़िर अपनी, एक्स्ट्रा सोच से निजाद होकर, वह वहीं पत्थर उठाकर बाल्कनी-वाली टेबल की ओर चल दीया। पत्थर को अच्छि तरह से देखने पर अब वह नई गेंद जैसा दीख रहा था,जिस मे छोटे से आकार में कुछ लिखा मिला, ग्लास से देखने पर 1890 का प्रतीक मिला । और ज्यादा कुछ ढूँढने की कोशिश कर ही रहा था की पता नहीं, घर मे कुछ गिरने की आवाज़ आयी। गेंद बाहर टेबल पर रख के स्मित घर मे देखने के लिये चला गया। रसोईघर के कुछ सामान और उनके बर्तन फ़र्स पर बिखरा पडा था, इसके अलावा उसे कुछ भी नहीं दिखा,कोइ आरोपी ना देख, अपने मानवीय भावो के साथ न्याय कर पडोसी चाची की पालतू बिल्लो पर पुरा दोष देकर सब ठिक करके फिर से बहार आ पहोचा । मगर अपनी कलेक्शन की गेंद को वहा ना पाकर टेबल के आसपास और सब जगह - बाल्कनी मे अच्छे से देखने लगा पड़ा था, तभी घर मे फिर से कुछ खटखटाहट के साथ आवाज आयी। आज़ तो इस बिल्लो की ख़ैर नहीं कहता हुआ, दौड़ते आ पहोचा अंदर के कमरे में- वहा अपनी अलमारी की खुली हालत को देख उसे बंद करने चला गया। वहा अपनी गेंद को फ़िर से पाकर आश्चर्य पट छा गया । साथ ही कुछ अलग अनुभुति भी उसे होती है ।

अगले ही पल कान मे कुछ सरसराहाट अचानक से होती है, पिछे बस एकबार मुड के देखने के साथ ही वह अपने होश-हवास खो बैठता है,और वही पे ढेर हो जता है ...!!

शाम को स्मित का कोई पुराना दोस्त मिलने आया, और उसकी यह हालत देख पुछ्ता हैं, क्या हुआ? मगर अपने मजाक के डर से कुछ भी नहीं बोला ।दोस्त के घर के हालात पुछ्ता है थोड़ी देर रुककर उसके घरवाले से मिलने की इच्छा जताते हुए दोस्त के घर ही चल देता हैं । दोस्त मनोज और उसकी बीवी रमा उसी के साथ पले-बढे थे । दोस्तों से मिल उनके बच्चो से मिल स्मित को अच्छा लगा । बहुत सारी बातें कर लौटने की इच्छा पे उसकॉ खाने के लिये आग्रह करके रोका गया । आग्रह के सामने हार मान खाने का लुफ़्त लिया, और अब घर के लिए रवाना हुआ । घर ज्यादा दुर नही था, चलने के अंतर् मे ही था इसलिए चलता गया । चलते – चलते सुबह हुइ घटना याद करने लगा, ‘’कैसे वह गेंद फ़िर से अल्मारी मे आयी? कान मे क्या सरसराहट हुई थी, पिछे मुड़ने पर देखा मंजर भी याद आ गया कैसे 1 छोटि बच्ची कोने मे बेठ रो रही थी और अचानक खड़ी होकर उसके पास चलकर आते-आते हर कदम के साथ-साथ बड़ी हो गयी । सह्सा आज दोस्तों के साथ हुई आज की कुछ अजीब छिड़ी हुई बाते भी याद आ गयीं । उसने बातचित के दौरान सुना की आत्मा अच्छी बुरी दोनों प्रकार की होती है, बुरी आत्मा हमेशा बुराई करती है मगर अच्छि आत्मा होने का प्रमाण देके ही ठहर जाती है और बुरा व्यवहार नही करती ।‘’

य़ह सब सोचते सोचते घर पहुच गया । वैसे तो स्मित बहादुर था मगर दोपहर के वाकये से स्मित अब सहम गया था, बड़ी हिम्मत कर दरवाजा खोल फ़िर से अपने घर मे आ चुका था मगर अब क्या करे?

( भाग 1 पूर्ण )

आगे की कहानी के लिये बस जरा सा इन्तेजार पाठकों ...सहर्ष.