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तुम हो क्या

तुम हो क्या !

दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं, सब की अपनी अपनी सोच होती है। जीने का तरीका भी सबका अलग अलग होता है, हमारे विचार सबके साथ मिल जाएं जरूरी नहीं।

टीना बहुत ही आज़ाद ख्यालों की आधुनिक लड़की थी, उसे अपने पापा के रुतबे और जायदाद पर बहुत अभिमान था, यहां तक कि टीना की मां भी टीना की तरह ही थी। पर टीना के पापा सादग से जीवन जने वाले थे। टीना की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी और जल्दी ही उसे अच्छी नौकरी भी मिल गई थी, टीना के ममी पापा ने टीना के लिए अच्छे रिशते ढूंढने शुरु कर दिए थे पर टीना और उसकी ममी को हर जगह कुछ न कुछ नापसंद होता।

टीना के पापा त अब हार मान चुके थे वो जानते थे कि टीना की पंसद कुछ ज्यादा ही अलग है पता नहीं किसी का घर खराब न हो जाए। टीना को समझाने की कौशिश की थी कि बेटा सभी का अफना अपना स्वभाव होता है थोड़ा सा खुद क बदलो इतने नखरों और अभिमान से जिन्दगी अच्छे स नहीं कटती पर वो खुद क नहीं दूसरों को अपने मुताबिक बनाना चाहती थी। कुछ साल ऐसे ही गुज़र गए, आखिरकार मां को कुछ समझ आई बेटी को भी राजी किया कि टीना ऐसे तो शादी की उमर निकल जाएगी । टीना भी कुछ नखरों के बाद मान गई,लड़के की तलाश शुरु की गई पर जब हम चाहे और काम हो जाए ऐसा जरूरी नहीं !

टीना के ममी पापा बहुत निराश हो चुके थे फिर मौहल्ले में किसी मंदिर में टीना की जन्म पत्री दिखा रहे थे कि उनक मुलाकात वहां आई मौहल्ले की ही एक औरत से हो गई वो भी अपने बेटे की जन्मपत्री दिखाने आई थी। एक दूसरे स अपना दुख सांझा करने लगी, लड़के की मां ने बताया कि नौकरी तो बहुत अच्छी है पर कुछ ग्रह ही ढीले हैं। वहीं टीना के ममी पापा की व्यथा भी लगभग ऐसी ही थी। पंडित ने ही एक सुझाव दिया कि मैने दोनो की जन्म पत्रिकाएँ देखी हैं आप चाहें तो मिलाकर देख लेते हैं। टीना की ममी और रवि की ममी की सहमति से बात आगे बड़ी पहले तो एक ही मौहल्ले को लेकर थोड़ी हिचकिचाहट थी पर फिर बाद में सबने समझाया तो बात पक्की भी हो गई।

थोड़े दिन तो सब ठीक चला पर फिर टीना ने बात बात पर मुंह चढ़ाना शुरु कर दिया, हर घर का अपना रहन सहन होता है पर टीना तंग पड़ रही थी। रवि और उसके घरवाले सादगी पसंद थे और इतने अमीर नहीं थे जितने टीना के घरवाले। टीना बात बात पर रवि को ताना देने लगी थी, रवि ने समझाया कि मेरी नई नई नौकरी लगी है थोड़ी देर सब्र रखो तुम्हारी सभी ख्वाहिशें मैं पूरी करुंगा पर टीना के अपमान के बाण उसे दिन रात छलनी कर रहे थे। रवि के ममी पापा भी टीना का स्वभाव जान चुके थे, कभी वो रवि से कहती कि आप राशन का आटा खाते हैं हमा रे घर में तो ममी बढिया आटे की परांठे देसी घी में तल कर कामवाली को खिलाते हैं और मुझसे ये खाना नहे खाया जाता ।

तुम हो क्या !

मैं यह सब नहीं झेल सकती नौकरी से आकर घर का इतना काम करो, कोई कामवाली भी नहीं लगाई आपने । रवि की ममी बहुत मदद करती थी काम में पर टीना को कुछ अची नहीं लगता उनकेघर में । जैसे तैसे एक साल निकल गया था टीना प्रैंगनेट हो गई थी पर उस हाल में भी टीना के तानो की बौछार जारी थी बात बात पर कोसना कितुम बेकार हो तुम्हारा रहन सहन अच्छा नहीं है। रवि की सहनशक्ति जवाब दे गई थी, उसके ममी पापा अपनी इज्जत के लिए चुप थे कि मौहल्ले की बात है पर टीना को किसी बात की कोई परवाह नहीं थी उसे अपनी नौकरी पर और पने आपपर बहुत अभिमान था। ममी पापा ने भी टीना के रुखे व्यहववार के लिए समझाया पर टीना कुछभी कमी को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी

अपनी ही बात से बदल गई थी, टीना की ममी भी वैसी ही फिर से नजर आ रही थी। पापा की बात का टीना पर कोई असर होता नहीं दिख रहा था, रवि ने बात को बहुत संभालने की कौशिश की पर जिसकी नज़रों में इंसान की कोई कीमत ही न हो तो रवि कितना नीचे लगता। पहले त रवि के ममी पापा मौहल्ले की बात है डह कहकर बात को पीछे करते रहे अब तो उन्होने टीना के ममी पापा को भी साफ कह दिया था या तो इसे समझाओ नहींतो आप ही बताओ हम क्या करें हम बहुत परेशान हैं । टीना अपने घर वापिस आ गई थी और फिर वापिस नहीं जकने का इरदा कर लिया, थोड़े दिन रवि के घरव्रलों ने इंतज़ार किया पर टीना क नखरे अभी भी आसमान छू रहे थे।

रवि के मन में अबटीना के लिए न तो प्यार बचा था न कोई इज्जत, टीना महीने बीत गए परअब रवि भी टना के सथ नहीं रहना चहता था। टीना के घर में बेटी हुई थी न टीना ने वापिस मुड़ कर देखा न रवि ने पर रवि के पापा मंदिर जाते तो कभी टीना के पापा भी अपनी नातिन को साथ लाते तो वो दूर से उसे देखते टीना के पापा भी बेटी की वजहसे दुखी थे पर वो बेबस थे, बीमारी के चलते वो जल्दी ही चल बसे। टीना के भैया भाभी तो विदेश में रहते थे । अब टीना बेटी की परवरिश खुद अपने तरीकों से करने का फैसला लिया, तलाक का कस अभी चल रहा था टीना उनसे मौटी रकम की मांगी कर रहीथी जो रवि नहीं दे सकता था इसलिए केस चल रहा था। अब टीना ने बेटी को स्कूल भी डाल दिया था पापा के नाम की जगह टीना ने अपने पापा का नाम लिखा दिया था। दिन बीतते जा रहे थे रवि भी बदल चुका था, अब वो भी कठोर हो गया था कभी कभी बेटी से अंजाने में रास्ते में मुलाकात हो जाती तो टीना दूर से देख कर रास्ता ही बदल लेती थी। टीना की बेटीअगर कभी पापा के बारे में पूछती तो टीना कहती वो ऐसे ही थे इसलिए मैं नानी घर आ गई थी। पर उसका मासूम मन तो दोनो का प्यार चाहता था, टीना को धीरे धीरे समझ आ रहा था अपना रुखा व्यवहार पर अब शायद वैसे हालात नहीं रहे थे। टीना की ममी भी अब टीना की और उसकी बेटी की जिम्मेदारी उठाते अब थक गई थ पर अब क्या कहती। अब बहुत दूरियां आ चुकी थी मौहल्ले मे यहां रवि नौकरी करता था हर जगह दोनो परिवारों की बहुत बाते हो चुकी थी। टना भी समझती थी इन दूरियों को औरअकेले उदास जीवन जी रही थी। तलाक का कस अभी भी चल रहा था ।

रवि भी परेशान ही जीवन जी रहा था पाकर भी बहत कुछ खो चुका था, पर टीना की तरफ से कोई नर्मी नहीं थी रवि भी टीना के साथ नहीं रहना चाहता था पर दोनो की वजह से बेटी का जीवन भी खराब हो रहा था। वो भी पापा के प्यार से वंचित थी। रवि बस दूर से ही कभी कभी अपनी बेटी को देख लेता था। भविष्य मं क्या होगा इसबात से बेखबर ही जीना चाहता था। टीनाके बर्ताब ने उसे रिशतों की मिठास से दूर कर दिया था।

कामनी गुप्ता

जम्मू !

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