छुपम छुपाई Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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छुपम छुपाई

छुपम छुपाई

मोहल्ले के सभी बच्चे शाम को छुपम छुपाई का खेल खेल रहे थे, हल्का हल्का धुंधलका हो गया था, पक्षियों का चहचहाना भी बंद हो गया था, सभी पक्षी अपने अपने घोंसलों मे जाकर बैठ गए थे लेकिन अभी तक मोहल्ले के लोग काम से वापस नहीं आए थे। सभी बच्चों ने तय किया था कि आज छुपम छुपाई के खेल खेलते हैं और अक्कड़ बक्कड़ शुरू हुआ जो संदीप पर आकर रुका। संदीप की आंखे काले कपड़े से बांध दी गयी और गिनती शुरू हो गयी, एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह....... सौ तक गिनती पूरी होने का समय था, इस बीच सब को छुप जाना था, संदीप तेज तेज गिनने लगा तो सबने एक साथ आवाज लगा कर बोला, “यह तो गलत है इतना तेज मत गिनो, हमें छुपने की जगह भी ढूंड्नी है और छुपना भी है जरा आराम से गिनो।” सभी बच्चे पाँच से आठ वर्ष की आयु के थे, वरुण ने एक बहुत ही सुरक्षित और गुप्त जगह छुपने के लिए देख ली थी, जैसे ही वह वहाँ जाने लगा तो रीवा भी आकार वरुण के साथ वहीं छुप गयी।

वरुण ने रीवा से कहा, “रीवा तुम कहीं और जाकर छुप जाओ, यहाँ पर दो नहीं छुप पाएंगे और दोनों ढूंढ लिए जाएँगे।” रीवा बोली”, “नहीं वरुण, मैं तो तुम्हारे साथ ही छुपुंगी और कोई भी ऐसी गलती नहीं करूंगी जिससे तुम ढूंढ लिए जाओ।”

रीवा पाँच वर्ष की छोटी सी बड़ी प्यारी सी बच्ची थी और वरुण सात वर्ष का हो गया था। दो वर्ष बड़ा होने के कारण वरुण अधिकारपूर्ण भाषा में बात कर रहा था लेकिन उसने वरुण की एक न मानी और वरुण के साथ ही छुप गयी तब तक संदीप भी सौ तक की गिनती पूरी करके अपनी आँखों पर बंधा काला कपड़ा खोल चुका था और सबको खोजने के लिए घूम रहा था।

रीवा वरुण के साथ चिपक कर बैठी थी, सांस भी ऐसे ले रहे थे कि जरा भी आवाज न हो। संदीप सभी बच्चों को खोज चुका था लेकिन वो दोनों अभी भी उसकी खोज से बाहर थे। वरुण ने रीवा को डांटा भी था और अपने साथ छुपने के लिए सख्ती से मना कर दिया था लेकिन न जाने अब क्यों वरुण को रीवा के साथ वहाँ छुपे रहना अच्छा लग रहा था, उसकी धीमी धीमी साँसे वातावरण को महका रही थीं और उसके भोलेपन से तो वरुण इतना प्रभावित हुआ कि उसको रीवा एक नन्ही परी लग रही थी।

वरुण भूल गया था कि वे लोग एक छुपम छुपाई का खेल खेल रहे हैं, बस वह तो उस नन्ही परी को निहारता ही रहा। काफी देर हो चुकी थी संदीप भी दोनों को खोज खोज कर थक चुका था, एवं उसने अपनी हार स्वीकार करके दोनों को बाहर आ जाने को कहा। वरुण ने रीवा से बाहर चलने को कहा, रीवा बोली, “नहीं, मैं नहीं जाऊँगी मैं तो यहीं बैठूँगी, तुम्हारे साथ, मुझे तुम्हारे साथ बैठना अच्छा लगता है।”

रीवा का हाथ पकड़ कर, उसके विरोध के बावजूद वरुण और रीवा बाहर आ गए और सब अपने अपने घर चले गए।

सुबह जब उठे तो देखा कि एक ट्रक मे किसी घर का सामान लादा जा रहा था, पता चला कि रीवा के पापा का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया है और वे उस शहर को छोड़ कर दूसरे शहर, यहाँ से बहुत दूर जा रहे हैं। रीवा जिद कर रही थी कि वह यहीं रहेगी, वरुण के साथ खेलेगी, बड़ी मुश्किल से उसको मनाया और रीवा इस शहर को छोड़ कर चली गयी, वरुण खड़ा खड़ा देखता रहा, न कुछ कह सका और न ही कुछ कर सका।

अब वरुण छुपम छुपाई का खेल नहीं खेलता था, उसका मन ही नहीं लगता था, बाकी बच्चे कहते रहते थे मगर वरुण खेलने नहीं जाता था, वरुण को रह रह कर रीवा की याद आती थी, रीवा के साथ खेले गए उस दिन के छुपम छुपाई के खेल की याद आती थी और वरुण रुंवासा अपने कमरे में बैठ कर पढ़ने की कोशिश करता रहता।

वरुण बड़ा हो गया, पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने लगा तो घर में शादी की बात चलने लगी। बड़ा हो गया और कमाने भी लगा तो शादी तो अब होनी ही थी। जब भी वरुण की शादी की बात चलती तो न जाने क्यों बरबस उसे रीवा की याद आ जाती और वरुण सोचने लगता, “रीवा पता नहीं कहाँ होगी, कैसी होगी, शायद उसकी भी शादी हो गयी होगी।”

वरुण के कार्यालय में अमरनाथ यात्रा के बारे में बात हो रही थी तो वरुण ने सोचा, “क्यों न मैं भी अमरनाथजी की यात्रा करने जाऊँ, क्या पता बर्फानी बाबा मुझे रीवा से मिलवा दें और वह ही मेरे जीवन का हिस्सा बन जाए।”

वरुण ने अमरनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण करा लिया और समय आने पर यात्रा के लिए चला गया। मन में आस्था और विश्वास के साथ वरुण की यात्रा प्रारम्भ हुई, बस से यात्रा खत्म हुई तो पैदल यात्रा करते हुए वरुण बाबा बर्फानी के दरबार में पहुँच गया। बर्फ से बने प्राकृतिक शिबलिंग के दर्शन करके वरुण स्वयं को धन्य समझ रहा था। दर्शन करके वरुण वापसी पैदल यात्रा कर बालटाल तक पहुंचा। बालटाल में कई मुफ्त भंडारे लगे थे और सभी तीर्थ यात्रियों के ठहरने का प्रबंध था। वहीं पर भोजन प्रसाद ग्रहण कर वरुण ने वहीं पर आराम किया।

उसी दिन शाम हो वरुण ने वापस आने के लिए बस ले ली, यह सोच कर कि रात रात में जम्मू पहुँच जाऊंगा, बस में सोने को भी मिल जाएगा तो कल दिन में यात्रा कर घर पहुँच जाऊंगा।

बस जंगल के सुनसान रास्ते से गुजर रही थी, तभी बस पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया। ड्राईवर अपनी सूझ बुझ से आतंकियों से बस को बचाने की कोशिश कर रहा था कि तभी आतंकियों द्वारा सड़क पर डाला गया पेड़ बस के सामने आ गया, ड्राईवर को बस रोकनी पड़ी लेकिन आतंकी बस का पीछा कर रहे थे।

ड्राईवर ने सभी तीर्थ यात्रियों को बस छोड़ कर भागने और छुपने की सलाह दी। बस में अफरा तफरी मच गयी और सभी लोग बस से कूद कर छुपने के लिए जंगल की तरफ भागने लगे। अंधेरे का फायदा उठा कर वरुण भी भाग कर जंगल में छुप गया, तभी उसने देखा कि एक लड़की उसके साथ ही दौड़ रही है, और वह भी उसके साथ ही छुप गयी। वरुण ने कहा, “तुम कहीं और जाकर छुप जाओ, दोनों के लिए यहाँ जगह कम है और हम आसानी से ढूंढ लिए जाएंगे।” लड़की ने कहा, “आप चिंता न करें, मैं कोई आवाज नहीं करूंगी और मेरे कारण आप पकड़े नहीं जाओगे।”

उस लड़की से इस तरह का उत्तर सुनकर वरुण को बचपन की रीवा की याद आ गयी और वह अनायास ही बोल पड़ा, “आपका नाम रीवा है?” लड़की ने वरुण को गौर से देखा और फिर बोली, “हाँ वरुण, मैं रीवा ही हूँ।”

अब वरुण स्वयं को रोक नहीं पाया और उसने रीवा को अपनी बाहों में ले लिया। रीवा की साँसे आज भी वातावरण को महका रही थीं और वह वरुण से चिपक कर बैठी थी।

वरुण बोला, “रीवा! मैंने कितना याद किया तुम्हें, तुमने तो जाने के बाद अपना पता भी नहीं दिया। तुमसे मिलने की कामना लेकर ही मैं बाबा अमरनाथ के दर्शन करने आया हूँ, बाबा ने मेरी मनोकामना पूरी कर दी, मैं धन्य हो गया, तुम सोच भी नहीं सकती कि आज मैं कितना खुश हूँ, चाहे हमारे ऊपर मौत मंडरा रही है लेकिन मुझे इसका डर नहीं लग रहा।”

रीवा बोली, “मैंने भी कितना याद किया वरुण आपको, मैं भी बाबा बर्फानी के दरबार में तुमसे मिलने की मन्नत मांग कर आई हूँ और बाबा ने हम दोनों की मनोकामना इतनी जल्दी पूरी कर दी।”

तब तक पुलिस आ चुकी थी और तीनों आतंकवादियों को ढेर कर दिया था। छुपम छुपाई का खेल खत्म हो चुका था, पुलिस सबको बाहर आने को कह रही थी।

रात बीत गयी थी, अंधेरा छंट रहा था, उजाला होने लगा और हम सब यात्री जंगल से निकल कर बस के पास पहुँच गए थे। सभी यात्रियों ने बाबा बर्फानी की जय कार के साथ अपना वापसी का सफर शुरू किया और मैंने रीवा के साथ जीवन का सफर पूरा करने की योजना के साथ घर वापसी की।