आपातकाल और सुंदर – तृतीय भाग
पूरे प्रशासनिक तंत्र और पुलिस को भ्रष्ट बनाकर एवं गुंडे बदमाश माफियाओं को राजनैतिक संरक्षण देकर युवा नेता पूरे भारत पर तानाशाही कर रहा था जबकि सरकार में उसका कोई स्थान नहीं था फिर भी सरकार का कोई भी फैसला वही लेता था। किसी भी मंत्री, प्रधानमंत्री को कोई भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। चुन-चुन कर सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, अगर उसकी अपनी पार्टी का भी कोई नेता उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत करता तो उसका हाल भी विपक्षी नेताओं जैसा ही होता, इस तरह कई युवा जुझारू नेता जेल में डाल दिये गए। दुर्जन सिंह तो मारा जा चुका था लेकिन पूरे देश में ऐसे लाखों दुर्जन सिंह उस युवा नेता की तानाशाही की छत्र-छाया में अपनी मनमानी कर रहे थे जिससे आम लोग त्रस्त थे परंतु कोई बोल नहीं सकता था, उन आम लोगों में से, उस आम जनता की आवाज सुंदर ने उठाई और कसम खाई, “मैं सुंदर कसम खाता हूँ कि मैं इस तानाशाह युवा नेता को वही दंड दूंगा जो मैंने सीमापार उन दुश्मनों को दिया जिन्होने भारत माँ की तरफ आँख उठाकर देखा था।”
सुंदर ने घात लगाकर उस युवा नेता पर कई बार हमला किया लेकिन वह बार-बार बच जाता था। सुंदर के साहस और निडरता के कारण क्षेत्र की जनता उसका साथ देने लगी, इसीलिए कई बार पुलिस ने क्षेत्र के गावों में रात में सोते हुए लोगों को गलियों में घसीट-घसीट कर मारा। युवा नेता को अपनी सत्ता खिसकती हुई नजर आने लगी, उसने सुंदर को किसी भी तरह मारने के आदेश दे दिये। साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके अपनाए गए, लेकिन सुंदर पकड़ में नहीं आया जबकि सुंदर जहां भी मौका मिलता वही पर उस युवा तानाशाह पर वार करता लेकिन कभी सफल नहीं हो पाया। एक व्यक्ति जिसकी शक्ल हु-बहू सुंदर से मिलती थी अपनी पत्नी के साथ ससुराल जा रहा था, रास्ते में पुलिस वालों ने उसको ही सुंदर समझा और वहीं गोली मार उसकी हत्या कर दी, उसकी पत्नी को थाने ले जाकर उसकी बहुत बेइज्जती की। सुंदर को जैसे ही इस घटना की जानकारी मिली, उसने उन चारों पुलिस वालों को घात लगाकर मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से युवा तानाशह अत्यंत भयभीत हो गया और उसको लगने लगा कि अब शायद सुंदर उसको भी मार देगा।
युवा तानाशाह ने सुंदर के ही समाज के एक बड़े नेता को सुंदर का आत्मसमर्पण करवाने की ज़िम्मेदारी सौंपी। नेताजी का नाम तो रामचन्द्र था लेकिन काम रावण का करने के लिए सुंदर के गाँव में आकार जम गया और लोगों को यह समझाने में कामयाब रहा “सुंदर अगर आत्मसमर्पण कर देगा तो मैं उसको माफ करवा दूंगा।” गाँव वाले और घर वाले रोज़-रोज़ पुलिस के अत्याचार से दुखी हो चुके थे और उन्होने सुंदर को किसी तरह से आत्मसमर्पण करने के लिए राजी कर लिया। सुंदर यू पी या दिल्ली मे आत्मसमर्पण नहीं करना चाह रहा था इसलिए उसको अजमेर ले जाकर आत्मसमर्पण कराया गया।
यह तो युवा नेता और रामचन्द्र की एक चाल थी, जैसे ही सुंदर ने आत्मसमर्पण किया, उसको दिल्ली पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया, दिल्ली लाकर सुंदर को तरह-तरह की यातनाएं दी जाने लगी। घरवालों ने रामचन्द्र से पूछा, “आपने तो कहा था कि सुंदर को माफ करवा देंगे?” रामचन्द्र बड़े ज़ोर से हंसा और कहा, “ऐसे लोगों के लिए माफी नहीं फांसी होती है, अब तो उसकी फांसी का इंतज़ार करो।” घर वाले समझ गए कि उनके और सुंदर के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात हुआ है अतः अपने तरीके से उसको छुड़वाने की कोशिश करने लगे।
युवा तानाशाह सुंदर को ज्यादा समय नहीं देना चाहता था और उसने जल्दी से जल्दी सुंदर को मारने के आदेश दे दिये। सुंदर से किसी को भी मिलने नहीं दिया गया न ही उसको कंही किसी न्यायालय में पेश किया गया। सुंदर की बहन बड़ी दुखी थी और उसको आत्मग्लानि थी कि उसके कारण ही सुंदर का यह हाल हुआ है। वह स्वयं उस युवा तानाशाह से मिलने की कोशिश करने लगी। सोच रही थी कि अपने भाई की जान के लिए भीख मांग लेगी लेकिन उसको क्या मालूम था कि तानाशाह किसी को भीख नहीं देते, वह तो सिर्फ और सिर्फ मौत देते हैं। सुषमा की कई कोशिशों के बाद भी उसको किसी ने नहीं मिलने दिया, लेकिन रामचन्द्र ने कहा, “सुषमा, कल तुम सब मिल लेना सुंदर से, कल तक का इंतज़ार कर लो।”
रामचन्द्र की बात सुनकर सुषमा खुशी खुशी घर वापस चली आई एवं घर पर सबको यह बात बताई। दरअसल सुषमा ने रामचन्द्र की बात सुन तो ली थी लेकिन वह समझ नहीं सकी थी, अगर समझ जाती तो उसकी खुशी वहीं काफ़ूर हो जाती। बढ़ते दबाव को देखते हुए युवा तानाशाह ने उस रात सुंदर को मार कर हमेशा के लिए उसकी चिंता से मुक्त हो जाना था।
सुंदर को उस युवा तानाशाह के सामने ही एक सुनसान स्थान पर उल्टा लटका दिया, नीचे पानी से भरा बड़ा ड्रम रख दिया, दोनों हाथ बांध दिये एवं मुह में कपड़ा ठूंस दिया। अब धीरे धीरे सुंदर को पानी से भरे ड्रम मे डुबाते, जैसे ही उसका दम घुटने को होता तो निकाल लेते और फिर उस पर ताबड़तोड़ डंडे बरसाते। सुबह तीन बजे तक तो सुंदर सारे अत्याचार सहन करता रहा लेकिन इस बार उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। इस बार जो उसको पानी में उल्टा कर के डुबाया उसका वहीं दम घुट गया और सुंदर आपातकाल की भेंट चढ़ गया। पुलिस वालों ने बाहर निकाला तो देखा कि उसके श्वास बंद हो चुके थे, दिल भी नहीं धडक रहा था। पुलिस ने उसको नीचे उतारा एवं जमीन पर लिटाकर अपनी पूरी तसल्ली कर ली कि कंही दोबारा न जिंदा हो जाए।
अब पुलिस वाले सुंदर की मौत को एक कहानी का रूप देने में जुट गए और उन्होने उसकी लाश को ले जाकर पुराने लोहे के पुल से यमुना नदी में फेंक दिया। अगले दिन अखबार में पढ़ने को मिला सुंदर डाकू मारा गया सुंदर को शाहदरा कोर्ट से तिहाड़ जेल ले जाते समय वह पुलिस से छुट कर यमुना नदी में कूद गया, लेकिन स्वयं को बचा नहीं पाया और नदी में डूब कर मर गया।
घर वालों और गाँव वालों को यह बात हजम नहीं हुई, क्योंकि सुंदर एक अच्छा तैराक भी था फिर वह यमुना मे स्वयं को कैसे नहीं बचा पाया। कुछ दिन शोर मचा लेकिन प्रशासन और पुलिस के सामने कौन ठहर सकता था और वह भी ऐसे आपातकाल में , जिसने माननीय जयप्रकाश नारायण जैसे समाज सेवक को नहीं छोड़ा।
सुंदर तो मर गया लेकिन लोगों में क्रांति की भावना जगा गया, वही क्रांति जिसने उस तानाशाह की राजनैतिक पार्टी को पूरे उत्तर भारत में एक भी सीट पर जीतने नहीं दिया।