सन चौरासी देखा न गया Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सन चौरासी देखा न गया

सन चौरासी देखा न गया

रेलगाड़ी अचानक झटके के साथ बेहटा स्टेशन के सिगनल से पहले रुक गयी। गाड़ी से उतर कर चार सिख नवयुवक बेतहाशा भागने लगे, भीड़ उनके पीछे लाठी, डंडे, भाले, बल्लम, गंडासे, पलकती और कट्टे लेकर भाग रहे थे। रेलवे लाइन के बराबर मे आलू का खेत था और दो लोग उसमे बैठे आलू खोद रहे थे। सिख युवक उस आलू के खेत से होकर भागने की कोशिश कर रहे थे लेकिन भीड़ ने उन चारों को वहीं उसी खेत में घेर लिया। आलू खोदने वाले व्यक्ति भी भीड़ को देख कर सब कुछ वहीं छोड़-छाड़ कर भाग खड़े हुए। भीड़ ने सिख युवकों को खेत में ही घेर कर मारना शुरू कर दिया, भीड़ के मन में कोई दया भाव नहीं दिख रहा था वो तो बस उनको खेत के बीचों-बीच गिरा कर लाठी डंडों से मारे जा रहे थे। जब भीड़ ने देखा कि चारों युवक मर चुके हैं तब उन चारों पर वहीं पेट्रोल डाल कर आग लगा दी। चारों सिख युवक धू-धूकर जलने लगे और भीड़ एक विजयी भाव के साथ रेलगाड़ी की तरफ वापस आ गयी, लेकिन मैं उस भयानक दृश्य को देख न सका। तभी भीड़ में से किसी ने कहा, “अरे, इस गाड़ी में जेनेरटर वाले डिब्बे में भी तो सरदार हैं।”

जेनेरटर रूम वाले सरदार जी ने सारे दरवाजे, खिड़कियाँ अंदर से बंद कर लिए थे और वो अंदर ही अंदर डरा हुआ था एवं घबरा रहा था, लेकिन हुआ वही जिसका उसे डर था। इस बार भीड़ जेनेरटर वाले डिब्बे पर टूट पड़ी, लाठी, डंडे, भाले, बल्लम, गंडासे, पलकती से चारों तरफ वार करने लगी। भीड़ के इस रौद्र रूप को डिब्बा कब तक सह सकता था अतः दरवाजा टूट गया और भीड़ ने सरदारजी को खींच कर बाहर पटरियों के बराबर में गिरा दिया। जब सरदारजी मार खा कर करीब मर ही चुके थे तो भीड़ ने जेनेरटर रूम से ही डीजल निकाल कर सरदारजी के ऊपर डाला और आग लगा दी और आगे मैं देख न सका।

मैं उन दिनों दिल्ली में नौकरी करता था और प्रतिदिन गाँव से दिल्ली रेलगाड़ी से ही आया जाया करता था। एक नवम्बर 1984 का वह दिन, मुझे घर में सबने मना किया था की आज ड्यूटि मत जाओ क्योंकि 30 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधान मंत्री माननीय श्रीमती इन्दिरा गांधी जी की हत्या हो गयी थी और उनकी हत्या एक सिख युवक ने ही की थी, जो पहले से ही उनकी सुरक्षा में तैनात था। इसीलिए शायद एक पार्टी विशेष के लोगों ने चुन-चुन कर सरदारों को मारना शुरू कर दिया था। पूरे रास्ते रेलवे लाइन के किनारे सरदारों की अधजली लाशें पड़ी थीं, ऐसा भयानक दृश्य मुझसे देखा न गया और तब मुझे माँ की वह बात याद आ गयी जब माँ ने कहा था, “बेटा, ब्रिज मोहन, सुना है आज बाहर का वातावरण ठीक नहीं है, हर तरफ सरदारों के विरुद्ध दंगे हो रहे हाइब्न, तू मेरी बात मान और आज दफ्तर मत जा।” रेलगाड़ी भी वहीं खड़ी थी और आगे चलने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं परेशान रेलगाड़ी के अंदर बैठे-बैठे ही सोच रहा था कि अब कहाँ जाया जाए कि तभी किसी ने आवाज लगाई, “अरे ब्रिज मोहन, नीचे उतर आ, यह गाड़ी अब आगे नहीं जाएगी।” मैंने देखा कि मेरे चाचा डिब्बे के बाहर खड़े मुझे आवाज लगा रहे थे। मैं नीचे उतरा और हम दोनों वहाँ से पैदल चल कर ही शाहदरा पहुंचे। बलबीर नगर शाहदरा में चाचा जी का घर था, हमने वहाँ ठीक ठाक पहुँच कर भगवान का धन्यवाद दिया। भीड़ का रूप भयंकर व भयानक था, चारों तरफ सड़क किनारे की सिखों की दुकाने लूटी जा रही थीं और आग लगाई जा रही थी, जो भी सिख उनकी पकड़ में आ जाता उसके हाथ-पैर बांध कर गले में टायर डाल कर आग लगा देते थे। मानवता का ऐसा नंगा नाच मैंने अपने जीवन मे पहली बार ही देखा था जो मैं देख न सका, अंदर तक काँप गया।

सभी सिख परिवार जैसे ही मौका मिल रहा था सुरक्षित जगह जाने की कोशिश में लगे थे, इस काम मे कुछ हिन्दू परिवार भी उनकी भरपूर सहायता कर रहे थे। बलबीर नगर में ही एक पार्टी के ब्लॉक अध्यक्ष ने आस पास के सिख परिवारों को अपने घर में शरण दे रखी थी, उनकी सुरक्षा में परिवार के सभी लोग लगे थे, खाने रहने, सोने की सभी सुविधाएं उनको दे रखी थीं। ब्लॉक अध्यक्ष उस क्षेत्र विशेष का दबंग परिवार था अतः किसी को उनके घर की तरफ नजर उठाने की हिम्मत नहीं थी अतः उसके घर में सिख परिवार सुरक्षित महसूस कर रहे थे। बाहर का वातावरण दिन प्रतिदिन और बिगड़ता जा रहा था अतः ब्लॉक अध्यक्ष ने उन सिख परिवार के मुखियाओं को समझाया, “भाई, अब यह जगह तुम लोगों के रहने लायक नहीं रह गयी है तुम्हें यह जगह छोडनी पड़ेगी, इसी में तुम्हारी भलाई है कि तुम लोग अपना मकान दुकान हमें बेच दो, मैं गुप्त रूप से कागज बनवा लाता हूँ तुम उस पर हस्ताक्षर कर देना और जो तुम्हारे घर की कीमत होगी वह में तुम्हें दे दूंगा।” सिख परिवारों को उसकी बात अच्छी लगी एवं उस पर विश्वास तो हो ही गया था अतः उन्होने उसकी बात मान ली। ब्लॉक अध्यक्ष ने उनकी सारी जायदाद अपने, अपने भाइयों भतीजों के व अपने बच्चों के नाम पर करवा ली एवं सिख परिवारों को थोड़े-थोड़े पैसे भी दे दिये, बाकी पैसे बाद में देने का वादा कर दिया। ब्लॉक अध्यक्ष ने सिख परिवारों से कहा कि अब माहौल थोड़ा शांत लग रहा है अतः रात में मैं तुम्हें सुरक्षित बाहर निकाल दूंगा उसके बाद तुम्हें जहां ठीक लगे वहाँ चले जाना। सिख परिवारों को उस पर पूरा विश्वास था और उन्होने रात में ही ब्लॉक अध्यक्ष के घर से निकल कर तिलक नगर की तरफ जाने की सोच ली। ब्लॉक अध्यक्ष ने पूरी योजना के साथ उन सब को रात के बारह बजे के बाद अपने घर से तो सुरक्षित निकाल दिया लेकिन साथ मे दंगाईयों को भी खबर कर दी। दंगाईयों की एक भयंकर भीड़ ने उन सब को मेन चौराहे पर घेर लिया। सिख परिवारों का सब कुछ लुटने के बाद भीड़ ने सब को बर्बरता पूर्वक मौत के घाट उतार दिया। उनकी एक लड़की सिमरन बहुत सुंदर थी, उसको मारने की बजाय भीड़ में से एक लड़का रफ़ीक़ उसको उठाकर ले गया, सिमरन चुप थी और अपने साथ होने वाले हरेक जुर्म को सहन कर रही थी, उसने भी अपने परिवार और रिशतेदारों को बर्बरता से मरते देखा था, उसके मन में एक आग थी लेकिन वह उसको भड़कने नहीं दे रही थी।

उस रात पार्टी थी, ब्लॉक अध्यक्ष भी आया था, लड़के रफ़ीक़ ने सबकी सेवा की ज़िम्मेदारी उस लड़की को ही दे दी थी। उस पार्टी में वे सब लोग थे जिन्होने उस लड़की के परिवार को लूटा था। आज उसके पास अपना बदला लेने का पूरा मौका था जिसकी सिमरन ने पहले से ही सब तैयारी कर ली थी। सिमरन ने मौका मिलते ही शराब में जहर मिला दिया और बड़े प्यार से सबको परोसने लगी। शराबी चरित्रहीन लोग सिमरन को खा जाने वाली नजरों से देख रहे थे लेकिन इस सब की परवाह किए बिना वह अपना काम बखूबी करती रही। उस रात पार्टी में शराब पी कर सौ से ज्यादा लोग मौत की गहरी नींद सो गए और एक खबर छपी “जहरीली शराब पीने से सौ से ज्यादा लोगों की मौत” रफ़ीक़ भी उन लोगों के साथ जहरीली शराब का शिकार हो चुका था, ब्लॉक अध्यक्ष और उसके परिवार के कई और मर्द भी इसी गिनती में थे। उस दिन के बाद सिमरन का कुछ पता नही चला कि वह कहाँ गयी, जिंदा भी है या मर गयी।

सन चौरासी का ऐसा मंजर मुझसे तो देखा न गया, अब जब कभी सोचने लगता हूँ, मेरा पूरा शरीर और आत्मा काँप जाती है।