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@anandtripathi6039
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कलमकार
संबंधों के त्याग से मुक्ति नहीं मिलेगी। संबंधों के सही चुनाव से मुक्ति मिलेगी। -Anand Tripathi
#hindidiwas मेरी प्रिय मृदुभाषी हिंदी। जन जन की अभिलाषी हिंदी। गर्वांवित सुखराशी हिंदी। मेरी प्रिय मृदु भाषी हिंदी। पाली प्राकृत पोषित हिंदी। अपभ्रंश से शासित हिंदी। मेरी प्रिय मृदुभाषी हिंदी। क्या मथुरा क्या काशी हिंदी। सदियों की ब्रजभाषी हिंदी। भारतेंदु अघराशी हिंदी। मेरी प्रिय....... मंचो की संचालक हिंदी। अवध क्षेत्र कुल पालक हिंदी। भारत की गरिमा है हिंदी। सांस्कृतिक विरासत हिंदी। प्रभा प्रकाश प्रकाशक हिंदी। भाषाओं की शासक हिंदी। बाहर हिंदी,भीतर हिंदी। सर्वोत्तम , सर्व्यापी हिंदी। मेरी प्रिय मृदुभाषी हिंदी। आनन्द त्रिपाठी।
एक अच्छा कवि होना भाग्य है। और एक अच्छा वक्ता होना सौभाग्य है। उससे भी परे एक अच्छा श्रोता होना अहोभाग्य है। जीवन में बहुत सारे प्रयास करो , संभवतः इतने जरूर करो की तुम्हारा जीवन स्वयं को तो न ही धुतकारे।
एक नाम,तजि काम सब भजहु राम दिन रैन। लाग तीन को भजन में। सुर सुरा और सुंदरी। ताहि न आवे चैन। -Anand Tripathi
बचपन में देखा था मैंने, एक चांद सलोना। पढ़ी एक पंक्ति कविता की देखा जैसे गोल भगोना। छोटे छोटे धब्बे वाला कहीं से गोरा कहीं से काला। कभी बड़ा और कभी तो छोटा। कभी कटा तो कभी है मोटा। कोई पुकारे मामा और कोई खिलौना बोले एक शिशु जो उसके खातिर रोए और झिंझोले। दिन भर गायब रहता है। और शाम को आता है। अपनी चांदी सी छाया से कण कण में बस जाता है। दुनियी सी खटिया पर लेटे दादा जी बतलाते थे। हम सब अंतहीन होकर उसी चांद में जाते थे। सबकी मधुर कल्पना का वह अंतिम पड़ाव होना। बचपन में मैने देखा .......... आज गगन के उच्चावच में एक नया इतिहास गढ़ेगा। धरती का यह भरतखण्ड, मामा के घर में उतरेगा। होगा नया प्रवेश और दुनिया देखेगी। भारत का लोहा मानेगी, और अपनी आंखे सेकेगी। -Anand Tripathi
मोहब्बत में एक आखिरी बात होगी। हमारी तुम्हारी मुलाकात होगी। न तुम होगे काबिल ,न हम होंगे साहिल। यहीं तक की सारी खुराफात होगी। -Anand Tripathi
कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गए है। कुमार विश्वास जी।
हर रोज़ लड़ रहा हूं होके मैं बे ख़बर। हर रोज़ रेत के जैसे कोई फिसल रहा। हर रोज़ रात होती है दिन के तले मगर। हर रोज़ एक एक पांव कोई है चल रहा। हर रोज़ एक जंग शराफत से चल रही। हर रोज़ तसव्वुफ की इबादत मचल रही। हर रोज़ एक रोज़ रकीब आयेंगे कहकर। हो जाता हूं। सब सोच कर मैं फिर से बे ख़बर। -Anand Tripathi
वीर वही जो डरा नहीं। कायर वो जो लड़ा नहीं। -Anand Tripathi
मैं जो कल था मैं वही हूं। बस जो मैं कल था। वो आज नही हूं। हां,मैं बदल गया हूं। ज़रा सा, हां, मैं बह चला हूं हवा सा। जमाने के साथ आज यहां कल कहीं हूं। अरे रुको, मैं जो कल था न मैं अब भी वही हूं। -Anand Tripathi
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