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कलमकार
तुमसे न जाने क्या है मनुहार ये मेरा ? बेकार ही परेशां व्यवहार ये मेरा। तुम चांद सितारा या कोई रोशनाई हो। सच मानो, तुमसे ही चमकदार है बाजार ये मेरा। तुम ख्वाब ख्यालात की हो लक्ष्मी मेरी। तुमसे ही बरकरार है किरदार ये मेरा। -Anand Tripathi
अगर चमकना अथवा तपना, जलना इत्यादि सफलता के पर्याय होते ,तो चिता पर विश्राम करता व्यक्ति प्रथम आता। लोग कहते है सूरज की तरह जलना सीखो। मत सीखना खाक हो जाओगे। मैं तो कहता हूं उसकी तरह संभलना और उसकी तरह गतिमान होना सीखो सफल हो जाओगे। -Anand Tripathi
मुझे तमाशा बनाने वाले मुझे इलाज अब बता रहे हैं। मेरी जो हिम्मत बची है जद में। उसी की कीमत लगा रहे हैं। उन्हें पता है मेरे सितम का। फिर भी आंखे दिखा रहे हैं। मुझे तमाशा बनाने वाले ........ -Anand Tripathi
ये आंखें हैं या रोने की मशीन। टपक टपक के सभी मोती गिरा देती हैं। कुछ है जो बचाया हुआ है यादों के लिए। कभी दुख सुख उत्सुक भावुक और बहुत से क्षणों के लिए। ये कम्बक्त उनको भी बहा देती हैं। -Anand Tripathi
न ये होता न हम होते। न हम होते न ये होता। न जाने कौन फिर होता? जो बैठकर रोता। अगर मैं हो गया होता। अगर वो मुझको जो खोता। न ये होता न हम होते। न हम होते न ये होता। -Anand Tripathi
शायर हैं ,जी लेते हैं। हम मधुशाला कभी गए नही। फिर भी मदिरा पी लेते हैं। -Anand Tripathi
कोई गमला या फूल दान कितना भी खाली क्यूं न हो लेकिन उसके समीप जाने पर मुझे फूलों की बहुत याद आती है। -Anand Tripathi
फिर एक और नया साल क्यूं कहते हो ? प्रत्येक दिन तो वही है फिर नया क्या है ? वही सप्ताह वही महीने वही अंक वही नगीने। परिवर्तन तो कुछ हुआ ही नहीं। और तुम भी तो वही रहते हो। अंक बदलने से तुम्हारी जिदंगी के मायने कैसे बदलते हैं ? हां ये ज़रूर है कि तुमने इस साल का खोया पाया हिसाब बिठाने के लिए वर्ष का अंतिम दिन चुना हो। उसमे अगर पाया हुआ तो जश्न से मन भरते हो। और अगर कुछ खोया तो ज़ख्म हरा करते हो। पूरे वर्ष भर क्या करते हो ऐसा , जो समय नही मिलता है मुस्कुराने का ! खुशियां मनाने का ! खुद से बात करने का खुद में डूब जाने का ! 365 दिन होते है और इन दिनों का सर्वस्व तुम एक दिन में कैसे भर लेते हो ? विचारणीय है ! जीवन तो तुम्हारा मौलिक अधिकार है जियो। उसमे 1 दिन में ऐसा कौन सा सार तत्व है जो तुम जीना चाहते हो। और सच्चाई तो यह है प्यारे। की उस दिन का भी वही उपयोग है जो पहले के दिनों का था। निरंतरता तो वही बनी है। बस अंक का फेर बदल हुआ है। तुमने जिससे आज तक बात नही किया उसको भी धीरे से एक संदेश चिपका रहे हो। और कहते हो हैप्पी न्यू ईयर। अभी उसने कदम भी नही रखा और तुमने उसको मनोरंजक घोषित कर दिया। यह मानवीय अपबीती नही तो और क्या है ? हां यह जरूर है की तुम सदा की भांति खुशी को व्यक्त करने के लिए उदासी छिपाते फिरते हो। ईश्वर के नव वर्ष पर एक ओर धन्यवाद करते है और दूसरी ओर उसी प्रक्रिया को नकारत्मक सोच में पिरोते हो। कामयानी (जयशंकर प्रसाद जी ) : कहती है कि विश्व सत्य है परंतु उसकी मूल्यता को परखने वाला सत्यवान नही हैं। अमुक व्यक्ति को एक दूसरे का दुख समय दोष सब पता है फिर भी एक दूसरे को नव वर्ष की मुबारक बाद देते है गले लगाते है। और आभार प्रकट करते है। मैं यह नहीं कहता हूं की यह सब एक दोष है। लेकिन यह बहुत उचित होता अगर यह सच में होता तो। कटु है परंतु सत्य है भी यही है। #नव वर्ष मुबारक हो।
कली, गुलाब, पंखुड़ियां देखो सब खिले हुए है। तुम होश में ,आराम में, होकर डरते हो। उनके साथ तो देखो कांटे मिले हुए है। मांझी ने चट्टानों को न जाने कैसे तोड़ा? इस असमंजस में सब के सब हिले हुए है। कि प्रेम से जिद्दी पत्थर को कैसे तोड़ा जा सकता है? इतनी मोहब्बत अंतर मन में कैसे कोई ला सकता है? -Anand Tripathi
कुंज गली में वृंदावन में बरसाने में शोर। राधा वरने को आयो री सखी री बाका नंद किशोर। बात बात में रीझे रिझावे। एसो माखन चोर। कुंज गली में।... ललिता विशाखा और सब सखियां। राधा वर को देखे भरी अखियां। नैन से देत हिलोर। सखी री। आयो ब्रिज को चोर। बाल ग्वाल सब संग सखा है। वाकी बात को लपक उठावें। एसो मगन विभोर। सखी री।.... नंद यशोदा बलि बलि जावे। आनंद उमग मनही मन भावे। आयो वृंदा को चित चोर। सखी री। ..... आनंद त्रिपाठी लेखनी।
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