चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज

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अटारी में धूल के कण हवा में तैर रहे थे, मानो समय के साथ उलझी कोई पुरानी कहानी बुन रहे हों। नाना जी का बंगला, जो कभी किताबों की सौंधी खुशबू, कविताओं की गूंज, और ज्ञान की चर्चाओं से जीवंत था, अब विस्मृति की मोटी परतों तले दबा था। लकड़ी की सीढ़ियाँ चरमराईं, जब अनन्या ने अटारी में कदम रखा। उसकी माँ ने सफाई का जिम्मा उसे सौंपा था, यह जानते हुए कि उनकी बेटी पुरानी चीज़ों में छिपे इतिहास को सहेजने का जुनून रखती है। अनन्या के लिए यह बंगला केवल ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं था; यह यादों का खजाना था, जो उसे दादी माँ, राजेश्वरी देवी, के करीब ले जाता था।

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 1

भाग 1: विरासत की पहली कड़ीअटारी में धूल के कण हवा में तैर रहे थे, मानो समय के साथ कोई पुरानी कहानी बुन रहे हों। नाना जी का बंगला, जो कभी किताबों की सौंधी खुशबू, कविताओं की गूंज, और ज्ञान की चर्चाओं से जीवंत था, अब विस्मृति की मोटी परतों तले दबा था। लकड़ी की सीढ़ियाँ चरमराईं, जब अनन्या ने अटारी में कदम रखा। उसकी माँ ने सफाई का जिम्मा उसे सौंपा था, यह जानते हुए कि उनकी बेटी पुरानी चीज़ों में छिपे इतिहास को सहेजने का जुनून रखती है। अनन्या के लिए यह बंगला केवल ईंट-पत्थर का ढांचा ...और पढ़े

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 2

दादी की डायरी का वह पन्ना अनन्या के मन में एक रहस्यमय नक्शे की तरह उभर रहा था। उस लिखा पता—"श्रीमती शिवानी, 'साहित्य सदन', इलाहाबाद"—अब केवल शब्द नहीं, बल्कि एक सोई हुई सच्चाई को उजागर करने की चाबी था।अगले दिन, अनन्या ने छुट्टियाँ लीं और एक्सप्रेस ट्रेन से इलाहाबाद, अब प्रयागराज, के लिए रवाना हो गई। ट्रेन की खिड़की से बदलता परिदृश्य उसकी उथल-पुथल भरी मन:स्थिति का दर्पण था। क्या 'साहित्य सदन' वाकई कहीं बस्ता होगा? क्या कोई शिवानी जी को याद भी करता होगा? अनिश्चितता और उत्साह का मिश्रण उसके मन को मथ रहा था।इलाहाबाद उतरते ही गर्म ...और पढ़े

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 3

इलाहाबाद से लौटकर अनन्या का मन एक तूफान की तरह उथल-पुथल में था। सुभद्रा की रहस्यमय बातें उसके कानों गूंज रही थीं: "शायद तुम्हारी दादी को ही वह डायरी सौंपी गई थी... पांडुलिपि किसी गुप्त स्थान पर छिपी है।"अनन्या ने दादी की डायरी फिर से उठाई। अब यह महज कागजों का पुलिंदा नहीं, बल्कि एक रहस्यमय संदूक थी, जो इतिहास का राज खोलने को बेताब था। उसने हर पन्ने को उलटा, हर कोने को टटोला, हर दाग पर उंगलियाँ फेरीं। कहीं कोई गुप्त जेब? कोई चिपका पन्ना? घंटों की खोज में निराशा हावी होने लगी। तभी उसकी नजर चमड़े ...और पढ़े

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 4

बैंक लॉकर से मिला लिफाफा थामे अनन्या उत्साह से भरी घर लौटी थी। उसे लगा मानो वह कोई छिपा खजाना लेकर आई हो। लिफाफा खोला तो अंदर सिर्फ ‘चंद्रकांता’ की हस्तलिखित पांडुलिपि ही नहीं, शिवानी जी के निजी पत्र और एक पतली सी डायरी भी थी। वह डायरी उन संघर्षों की गवाह थी जो उन्होंने इस उपन्यास को लिखते हुए झेले थे—समाज की बेरहम बातें, प्रकाशकों की बंद होती हुईं दरवाज़ें और अकेलापन।अनन्या ने काँपते हाथों से पांडुलिपि खोली। पहला पन्ना पढ़ते ही वह स्तब्ध रह गई। शब्दों में ऐसा साहस और तीखापन था, मानो किसी ने बंद कमरे ...और पढ़े

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 5

प्रकाशक की सहमति मिलने के बाद का समय अनन्या के लिए एक सपने जैसा था। 'चंद्रकांता' की पांडुलिपि को के लिए तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हुई। हस्तलिखित पन्नों को टाइप करना, संपादन करना, और आवरण डिजाइन करना - हर चरण एक नया रोमांच लेकर आया।एक दिन, संपादन के दौरान अनन्या को उपन्यास का एक प्रमुख अंश मिला, जहाँ चंद्रकांता कहती है - "मैं वह नहीं बन सकती, जो दुनिया मुझे बनाना चाहती है। मैं वह बनूंगी, जो मैं हूँ। चाहे इसकी कीमत अकेलापन ही क्यों न हो।" इन पंक्तियों को पढ़कर अनन्या की आँखें नम हो गईं। उसे ...और पढ़े

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 6

पुरस्कार समारोह की चकाचौंध और 'चंद्रकांता' की ऐतिहासिक सफलता ने अनन्या की दुनिया बदल दी थी। रातों-रात वह एक शोधार्थी से साहित्यिक दुनिया का चमकता सितारा बन गई थी। मीडिया ने उसे "विरासत की खोजकर्ता" का ख़िताब दिया, लेकिन तालियों की गूंज और कैमरों की फ्लैशलाइट के बीच, अनन्या को एक अजीब सा खालीपन महसूस हो रहा था।एक शाम, अपने छोटे से फ्लैट की खिड़की पर बैठी अनन्या, पाठकों के भेजे खतों का ढेर देख रही थी। तभी एक लिफ़ाफ़े पर उसकी नज़र ठहर गई। यह ख़त इलाहाबाद के पास एक छोटे से कस्बे की युवती का था। उसने ...और पढ़े

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