महाराणा सांगा

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भारत के इतिहास में यदि राजपूताना की वीरगाथाओं का स्वर्णिम अध्याय न होता तो इसकी वैसी भव्यता न होती, जैसी आज है। यहाँ की धरती भले ही वर्षा की बूँदों के लिए तरसती रही हो, परंतु सत्ता-सिंहासन के लिए निरंतर होते रहे युद्धों से टपकते रक्त से यह भूमि सदैव सिंचित रही है। आन-बान और शान के साथ ही सत्ता के षड्यंत्रों में रचे-बसे यहाँ के वीरतापूर्ण वातावरण में राजपूतों की महिमा का भव्य दर्शन होता है। इस भूमि पर जहाँ एक ओर सतियों ने जौहर की प्रचंड ज्वालाओं में भस्म होकर भारतीय नारी के दृढ संकल्प और सतीत्व की नई परिभाषा लिखी है, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता प्रिय राजाओं और अन्य राजपूतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण तक अर्पण कर दिए।

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महाराणा सांगा - दो शब्द

दो शब्दभारत के इतिहास में यदि राजपूताना की वीरगाथाओं का स्वर्णिम अध्याय न होता तो इसकी वैसी भव्यता न जैसी आज है। यहाँ की धरती भले ही वर्षा की बूँदों के लिए तरसती रही हो, परंतु सत्ता-सिंहासन के लिए निरंतर होते रहे युद्धों से टपकते रक्त से यह भूमि सदैव सिंचित रही है। आन-बान और शान के साथ ही सत्ता के षड्यंत्रों में रचे-बसे यहाँ के वीरतापूर्ण वातावरण में राजपूतों की महिमा का भव्य दर्शन होता है। इस भूमि पर जहाँ एक ओर सतियों ने जौहर की प्रचंड ज्वालाओं में भस्म होकर भारतीय नारी के दृढ संकल्प और सतीत्व ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 1

प्रजा-वत्सल महाराणा रायमलमेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ के राज उद्यान में इस समय बड़ा ही सुंदर दृश्य था। मेवाड़ नरेश रायमल अपनी पटरानी रतनकँवर के साथ बैठे उद्यान की शोभा को निहार रहे थे। उस भव्य शाही बाग में बैठने का अवसर कभी-कभी ही मिल पाता था। राज-काज और शत्रु-मित्रों की व्यस्तता ही इतनी थी कि महाराणा को अपने परिवार के लिए समय निकाल पाना कठिन होता था। अपनी ग्यारह रानियों में वे रानी रतनकँवर को ही सबसे अधिक प्रेम करते थे। इसी प्रेम के कारण वे बहुत अधिक व्यस्त होने पर भी उनके लिए कुछ समय अवश्य ही निकाल ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 2

ईर्ष्या की आगसमया संकट सरोवर के जल में तैरते असंख्य दीपों के सामूहिक झिलमिल प्रकाश से आसपास का वातावरण हो रहा था और उस प्रकाश में चित्तौड़ की रमणियाँ बड़ा ही लुभावना नृत्य कर रही थीं। वाद्ययंत्रों से निकलते सुमधुर स्वर उस आनंदोत्सव को और भी मोहक बना रहे थे। महाराणा रायमल अपनी सभी रानियों और परिजनों सहित इस उत्सव का आनंद ले रहे थे। मेवाड़ में विजयोत्सव पर दीपदान की परंपरा बहुत पुरानी रही है। इस अवसर पर प्रजा को भोजन और दान दिया जाता था। प्रजाजनों के लिए ऐसे अवसर धनवर्षा योग जैसे होते थे।युवराज पृथ्वीराज अपने ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 3

पृथ्वीराज सूरजमल के षड्यंत्र-पाश मेंसूरजमल कुशल कूटनीतिज्ञ था, इसमें कोई संदेह नहीं। उसने युवराज पृथ्वी और कुँवर संग्राम सिंह बीच हुए झगड़े की बात स्वयं महाराणा रायमल को बताई।‘‘हमारे पुत्रों में सिंहासन को लेकर इतना वैमनस्य बढ़ गया कि दोनों एक-दूसरे के रक्त के प्यासे हो उठे।’’ महाराणा चिंतित और गंभीर स्वर में बोले, ‘‘और हमें इसकी भनक तक नहीं?’’‘‘महाराज! यह वैमनस्य आज ही सामने आया है और ईश्वर की कृपा थी कि उस अवसर पर मैं उपस्थिति था, अन्यथा अनर्थ हो जाता।’’ सूरजमल ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘अब आज ही इस विषम परिस्थिति का कोई हल निकालें।’’‘‘कुमार! ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 4

सरदार जैतमलोट का बलिदानजंगल के दक्षिणी छोर पर सेवंतरी गाँव था। इस गाँव के बाहर मारवाड़ के राजा हम्मीर बनाया गया चतुर्भुज रूपनारायण का भव्य मंदिर था। इस मंदिर के दर्शनार्थी वर्ष भर यहाँ आते रहते थे। आज उस मंदिर के दर्शन करने मारवाड़ के राठौड़ बींदा जैतमलोट सपरिवार आए हुए थे। वे मारवाड़ में एक छोटी-सी रियासत के सरदार थे, जो मेवाड़ के ही अधीन थी। जब जैतमलोट सपरिवार दर्शन करके मंदिर से बाहर निकले तो ठिठक गए। खून से लथपथ राजसी वस्त्र पहने युवक चीखता हुआ उधर ही आ रहा था। समीप आने पर सरदार जैतमलोट चौंक ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 5

रानी रतनकँवर का संतापमहाराणा रायमल ने अपने पैरों में पड़े जयमल को आश्चर्य से देखा, जो फूट-फूटकर रो रहा समीप ही गंभीरता की प्रतिमूर्ति बना खड़ा सूरजमल जैसे भरसक प्रयास से अपने आँसू रोक रहा था।‘‘कुमार जयमल! क्या बात है, तुम...तुम इतने अधीर क्यों हो? कुमार सूरज, तुम अवश्य कुछ जानते होगे कि क्या हुआ है? तुम्हारे द्वारा ही हमें इस गुप्त कक्ष में बुलाया गया है।’’ महाराणा ने कहा।‘‘महाराज, जब अपनों में घोर वैमनस्य हो जाए और उसकी परिणति राज्य के संकट के रूप में हो तो किसकी जिह्वा पर शब्द आ सकते हैं।’’ सूरजमल ने अपनी आलंकारिक ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 6

श्रीनगर में सांगा का सैनिक पराक्रमकुँवर संग्राम सिंह को राठौड़ बींदा के सेवक मारवाड़ ले आए थे और वहाँ दिनों तक उनका उपचार किया। उनके घावों को भरने में बहुत समय लगा और जब उनकी आँख से पट्टी हटाई गई तो पता चला कि उनकी वह आँख पूरी तरह ज्योतिविहीन हो गई है। चंद्रमा में दाग लग गया, कामदेव सरीखे कुँवर साँगा का व्यक्तित्व अब अपूर्ण हो गया था, फिर भी उस वीर पुरुष ने धैर्य न खोया। वहीं उन्हें राठौड़ बींदा के महान् बलिदान के बारे में भी पता चला और उनका हृदय उनके प्रति श्रद्धा से भर ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 7

पृथ्वीराज को देश-निकालापृथ्वीराज अब राजकुमार नहीं रहे थे। उन्हें महाराणा ने चित्तौड़ की सीमा से बाहर निकल जाने का दिया था। एकबारगी तो पृथ्वीराज सन्नाटे में आ गए, फिर विरोध करने की सोची, परंतु महाराणा के रक्तिम नेत्रों को देखकर वे साहस न जुटा पाए।‘‘तेरे जैसे भ्रातृद्रोही षड्यंत्रकारी पुत्र की हमें कोई आवश्यकता नहीं। जिसके हृदय में परिवार के लिए प्रेम और राज्य के प्रति शुभेच्छा न हो, उस कुलघाती को चित्तौड़ की धरती पर बोझ बनकर हम नहीं रहने देंगे। यदि आज के बाद चित्तौड़ में तेरी सूरत दिखाई दी तो हम तुझे अपनी तलवार से मृत्युदंड देंगे। ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 8

जयमल का राजकुमारी तारा से प्रणय निवेदनसमय अपनी निर्बाध गति से व्यतीत होता रहा। दिन महीनों में और महीने में बदल गए। इसी के साथ कुछ और भी परिवर्तन हुए।पृथ्वीराज ने बड़ी वीरता और लगन से राजहित में कई ऐसे कार्य कर दिए, जिनसे मेवाड़ की कीर्ति बढ़ने लगी। उसने गोंड़वाड़ क्षेत्र से विद्रोही मीणाओं का समूल नाश कर दिया। पर्वतीय क्षेत्रों को निर्भय कर दिया। सिरोही और लांछ जैसी राजपूत रियासतों को अपने अधीन किया और देसूरी के मादरेचा चौहान शासकों का ध्वंस करके अपनी विजय पताका फहरा दी। ये सब सूचनाएँ महाराणा रायमल को मिलती थीं तो ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 9

कुँवर जयमल का अंतबदनोर के सरदार राव सुरतान को एक गुप्तचर ने यह सूचना दे दी की कि राजकुमारी राजसी उद्यान में एक अपरिचित युवक ने सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताकर प्रवेश किया और अंदर जाकर राजकुमारी आदि कन्याओं से अभद्रता करके भाग गया। इतना सुनते ही राव सुरतान के नेत्र क्रोध से जल उठे और वह काँपता हुआ उठ खड़ा हुआ।‘‘इतना दुस्साहस! किसने किया?’’‘‘ज्ञात नहीं हो सका महाराज! वह किसी राज्य का राजकुमार लगता था। उसके साथ कई और सशस्त्र सैनिक थे। उन्हीं सशस्त्र सैनिकों ने उद्यान प्रहरियों को कुछ समय के लिए बंदी बना लिया और वह ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 10

पृथ्वीराज बदनोर मेंपृथ्वीराज इन दिनों गोंडवाड के पर्वतीय क्षेत्र में था, जहाँ उसे जयमल की हत्या की सूचना मिली। बारगी तो उसके कलेजे को ठंडक पड़ गई कि विश्वासघाती जयमल को अपने किए का दंड मिल गया, लेकिन एक चिंता ने उसे भी घेर लिया। वह समझ रहा था कि इस सारे षड्यंत्र का सूत्रधार काका सूरजमल था, जिसने बड़ी चतुराई से मेवाड़ के सिंहासन पर अपनी पकड़ बना ली थी। तीनों राजकुमारों को उस मिठबोले ने एक-एक करके अपने रास्ते से हटा दिया था और अब मेवाड़ का उत्तराधिकारी कुँवर कल्याणमल था, जो अभी केवल 8 वर्ष का ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 11

साँगा के विरुद्ध गुप्त योजनाकुँवर साँगा अब साधारण सैनिक न रह गए थे। राव कर्मचंद ने अपनी पुत्री का उनसे कर दिया था और अब वे एक भव्य महल में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। राजकार्यों में उनकी भूमिका बढ़ गई थी और व्यस्तता भी। अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहने वाले साँगा श्रीनगर के सैनिकों के लिए उदाहरण बन गए थे और उनकी प्रेरणा से सेना में उत्साह भी रहता था। कई बार उनके साथी सैनिक उनके इस उत्थान पर आश्चर्यचकित रह जाते थे कि कैसे एक साधारण सैनिक अपने पराक्रम और निष्ठा से राजा का जामाता ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 12

पृथ्वीराज के विवाह की अनुमतिराव सुरतान को टोडा की विजय का शुभ समाचार मिला तो वह प्रसन्नता से झूम बदनोर में उत्सव मनाया जाने लगा। जिस टोडा में राव सुरतान के भाई श्याम सिंह का शासन रहा था, वह बहुत समय तक अफगानों के अधीन रहा था और अब जाकर स्वतंत्र हुआ था। राव सुरतान को इससे भी बड़ी प्रसन्नता इस बात को लेकर थी कि उसकी पुत्री को मेवाड़ राजघराने की पुत्रवधू बनने का अवसर प्राप्त हुआ। राव सुरतान उसी समय अपने विश्वस्त सरदारों के साथ चित्तौड़ चल पड़ा था। उसे एक तो मृतक जयमल के चरित्र पर ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 13

मेवाड़ की नवीन स्थिति पर चिंतनराव कर्मचंद ने साँगा के कहने पर मेवाड़ की वर्तमान जानकारी लेने के लिए गुप्तचर चित्तौड़ भेजे, जो कुछ दिनों के पश्चात् वापस लौटे।उन्हीं गुप्तचरों के द्वारा कुँवर साँगा को सारे घटनाक्रम का पता चला। उन्हें ज्ञात हुआ कि वहाँ आज भी मेवाड़ की जनता अपने प्रिय राजकुमार को याद करती है। यह भी पता चला कि वहाँ उन्हें किसी हिंसक जानवर द्वारा शिकार हो गया मान लिया गया है। इसके पश्चात् जयमल की हत्या से लेकर पृथ्वीराज के शुभ विवाह और उत्तराधिकारी की घोषणा के विषय में भी गुप्तचरों ने बताया। कुँवर साँगा ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 14

साँगा के गुप्तवास का रहस्योद्घाटनकुँवर साँगा के विषय में मेवाड़ से जानकारी प्राप्त करके लौटे दो गुप्तचरों में से कुछ अधिक ही रोमांचित हो रहा था। उसे यह जानकर आश्चर्य हो रहा था कि मेवाड़ का पराक्रमी राजकुमार श्रीनगर में रह रहा है और यह बात कम लोग ही जानते हैं। उन जाननेवालों में अब वह भी था। एक रात उसने अपनी यह जानकारी अपनी पत्नी के सामने कह दी।‘‘जानती है कि हमारे महाराज के जमाता कौन हैं? वह कोई साधारण आदमी नहीं हैं। वह तो बहुत बड़े राजकुमार हैं। सारे राजपूताने में उसके कुल की जो मान-प्रतिष्ठा है, ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 15

राजकुमार पृथ्वीराज ने गंभीरी नदी के मैदान में हुए युद्ध में सूरजमल और सारंगदेव को प्राण बचाकर भागने पर कर दिया। इसके बाद पृथ्वीराज जैसे हाथ धोकर ही उनके पीछे पड़ गए और वे दोनों जहाँ भी जाते, वह उनके पीछे पहुँच जाते और उन्हें खदेड़ देते। सूरजमल और सारंगदेव इतने भयभीत हो गए थे कि उन्होंने बाटरड़ा के वनों में शरण ली, परंतु पृथ्वीराज ने यहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और यहाँ हुए युद्ध में सारंगदेव पृथ्वीराज के हाथों मारा गया। सूरजमल को वहाँ से भी प्राण बचाकर भागना पड़ा और वह अपनी पत्नी के घर जा ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 16

दिल्ली पर आक्रमण की योजनामालवा का अयोग्य सुलतान महमूद अपने पिता के समय से ही सरदारों के विद्रोहों से था, जो अब इतने अधिक हो गए थे कि उसे अपने सरदारों से प्राणों का भय सताने लगा था। उसका अपना छोटा भाई शहजादा साहिब खाँ भी विद्रोही सरदारों से मिलकर उसके तख्तापलट की योजना बना रहा था। सुलतान महमूद को कहीं से एक भनक भी लगी थी कि उसके विरोधी उसकी हत्या की योजना बना रहे थे तो वह डरकर मांडू भाग गया। उसे कहीं से मदद की आशा नहीं थी। ऐसे में उसे मदद मिली मालवा राजपूत सरदार ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 17

महाराणा साँगा का अतुलित पराक्रममहाराणा साँगा ने इब्राहिम लोदी को परास्त किया था। दिल्ली के सुलतान को परास्त करना बड़ी उपलब्धि थी। महाराणा ने देखा कि उनके राजपूत सरदारों को इस विजय का उत्सव मनाने की उत्कंठा तो थी, परंतु उनके घायल हो जाने से उत्सव नहीं मनाया गया। तो महाराणा ने मन-ही-मन एक निर्णय लेते हुए एक उत्सव के आयोजन की घोषणा कर दी और मेवाड़ के सभी सरदारों, सामंतों को उसमें सम्मिलित होने का निमंत्रण भेजा। निश्चित तिथि को चित्तौड़ में भव्य उत्सव का आयोजन हुआ, जिसमें सभी ने भाग लिया। सब अपने-अपने आसनों पर बैठे महाराणा ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 18

महाराणा साँगा की मालवा-विजयमहाराणा साँगा की जय-जयकार सारे मेवाड़ में गूँज रही थी। उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि पुरुषार्थ उसके आंतरिक भावों से ही शक्ति पाता है। विजय की लालसा ने उन्हें भी इस युद्ध में बड़ी शक्ति दी। उन्होंने अपने सामंत सरदारों को विश्वास दिला दिया कि अपंगता उनके लिए कोई मायने नहीं रखती और उनका रणकौशल अभी भी अद्भुत था। धौलपुर के भव्य युद्ध की विजय ने राजपूती गौरव को और भी सज्जित कर दिया था। इस युद्ध में लोदी की शर्मनाक हार के साथ ही राजपूत सेना ने उसके कई परगने भी मेवाड़ के अधीन ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 19

मलिक अयाज की निराशासुलतान मुजफ्फरशाह को राणा साँगा और राजपूत सेना द्वारा गुजरात में चलाए गए विजय-अभियान की क्षण-प्रतिक्षण मिलती रही और वह अंगारों पर लोटता रहा। उसका कोई भी हाकिम राजपूत के सामने ठहर नहीं पाया था। गुजरात की संपन्नता बोरों में भरकर मेवाड़ ले जाई गई और उजडे़ हुए किले सुलतान को चिढ़ा रहे थे। उसने उसी क्षण संकल्प लिया कि वह चित्तौड़ की ऐसी ही दशा करेगा। उसने तैयारियाँ आरंभ कर दीं। अपनी सेना को संगठित किया और सभी सैनिकों को एक साल का अग्रिम वेतन दिया। उसकी इस विशाल सेना में एक लाख घुड़सवार, सौ ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 20

बाबर के विरुद्ध अभियान की योजना1519-20 में महत्त्वाकांक्षी मुगल शासक बाबर के कदम पश्चिमोत्तर भारत में पड़े थे। बाबर जाति के चगताई वंश का महत्त्वाकांक्षी योद्धा था, जिसकी रगों में पिता की ओर से तैमूर की पाँचवीं पीढ़ी और माता की ओर से चंगेज खान की चौदहवीं पीढ़ी का रक्त था। 14 फरवरी,1483 को फरगना में जन्मे बाबर ने मात्र 11 वर्ष की उम्र में समरकंद को जीतकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। सन् 1504 में उसने काबुल जीता और यहीं से उसके मन में भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने की ललक जागी।बाबर ने 1519 में भारत ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 21

राजपूत-अफगान गठबंधनमहाराणा साँगा का सोचना सही था कि नई उभरती शक्ति के खिलाफ एक संगठन का होना आवश्यक है। समय बाबर ने इब्रहिम लोदी को पराजित करके दिल्ली पर अधिकार किया था, उसी समय भारत के विभिन्न प्रांतों और रियासतों के तुर्क अफगान सरदार सजग हो गए थे। ऐसा नहीं था कि भारत में से लोदी वंश के पतन से अफगान-सरदारी समाप्त हो गई थी। इन सभी अफगान सरदारों ने बाबर की मंशा जान ली थी और पूर्वी भारत में सभी एकजुट हो भी गए थे। इस संगठन का नेतृत्व अफगान सरदार बाबर खाँ लोहानी कर रहा था, जो ...और पढ़े

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महाराणा सांगा - भाग 22

खानवा की पराजयमहाराणा साँगा की सेना खानवा के मैदान में आ डटी थी और उन्होंने रणनीति बना ली थी। सरदारों को महाराणा कुछ अधिक ही महत्त्व दे रहे थे, जिससे उनके कुछ राजपूत सामंत चिढ़ रहे थे। वास्तव में राणा ठीक कर रहे थे। वे अफगान शक्ति का युद्ध में पूरा-पूरा इस्तेमाल और लाभ उठाने की नीति पर काम कर रहे थे। बाबर की सेना दो मील आगे मोर्चा लिये खड़ी थी। महाराणा ने अपने सभी सामंतों और सरदारों को एकत्र करके अपनी रणनीति समझा दी थी। ‘‘यह युद्ध केवल बयाना को जीतने के लिए नहीं लड़ा जा रहा ...और पढ़े

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