अचानक से शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था। मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली। पेड़ -पौधों पर झर-झर गिरता पानी एक कुदरती फव्वारे सा हर पेड़-पौधे को नहला कर उसका रूप संवार रहा था। इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तन-मन भिगो ले। मगर उसकी दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा। मानो कह रही हों, ‘हमें छोड़ कर कहां चली? पहले हमसे तो रूबरू हो लो।’‘रोज वही ढाक के तीन पात। मैं ऊब गई हूं इन सबसे। सुबह शाम बंधन ही बंधन। कभी तन के, कभी मन के।

नए एपिसोड्स : : Every Saturday

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मन की बात - 1 - वहां आकाश और है........

अचानक से शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था। मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली। -पौधों पर झर-झर गिरता पानी एक कुदरती फव्वारे सा हर पेड़-पौधे को नहला कर उसका रूप संवार रहा था। इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तन-मन भिगो ले। मगर उसकी दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा। मानो कह रही हों, ‘हमें छोड़ कर कहां चली? पहले हमसे तो रूबरू हो लो।’‘रोज वही ढाक के तीन पात। मैं ऊब गई हूं इन सबसे। सुबह शाम बंधन ही बंधन। कभी तन के, कभी मन के। ...और पढ़े

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मन की बात - 2 - अभी जिंदगी और है..…..

सुबह का 5:00 बजे का अलार्म लगा कर सोने की आदत पुरानी हो चुकी थी। अब तो विभा की अलार्म बजने से पहले ही खुल जाती थी और वह यंत्रबद्ध सी सीधे रसोई की ओर जाती थी ताकि ताजा पानी भरने से न चूक जाए। नित्यकर्म से निपटने के बाद पूरे दो घंटे रसोई में ही परिक्रमा करती। दूध उबालना, नाश्ता बनाना, टिफिन पैक करने आदि कई काम थे। हालांकि वह इन सब कामों की अभ्यस्त हो चुकी थी, फिर भी समय तो देना ही पड़ता था।उठने से लेकर बच्चों को स्कूल भेजने तक समय कब पंख लगाकर उड़ ...और पढ़े

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मन की बात - 3 - मेरे भैया

सावन का महीना था। दोपहर के 3:00 बजे थे। रिमझिम शुरू होने से मौसम सुहावना पर बाजार सुनसान हो था।एक साइबर कैफे में काम करने वाले तीनों युवक चाय मंगा पर चुस्कियां ले रहे थे। अंदर केबिन में एक-दो बच्चे वीडियो गेम खेलने में मस्त थे तथा कुछ किशोर दोपहर की वीरानगी का लाभ उठाकर मनपसंद साइट खोल कर बैठे थे। तभी वहां एक महिला ने प्रवेश किया। युवक महिला को देखकर चौंक उठे क्योंकि शायद बहुत दिनों बाद एक महिला और वह भी दोपहर के समय उनके कैफे पर आई थी। वे व्यस्त होने का नाटक करने लगे ...और पढ़े

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