अपना आकाश - 25 - नन्दू की आँखें पढ़ो

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अनुच्छेद- 25 नन्दू की आँखें पढ़ो दिन के तीन बजे थे । इतवार का दिन। अंजलीधर ने वत्सला को बुलाया। पुरवा लहकी हुई थी। आसमान में बादल थे पर वर्षा की शीघ्र संभावना न थी । ज़मीन को छीलती हुई पुरवा जब दो-चार दिन चलती है तो बारिश की उम्मीद बँधती है। कहावत है 'भुइयाँ छोल चले पुरवाई । तब जानो बरखा रितु आई ।' 'माँ जी आपने बुलाया ?" ‘हाँ बेटे। कई दिन हो गया तन्नी से भेंट नहीं हुई। मैं चाहती हूँ उसके घर चला जाए। सब दुखी होंगे।' 'बदली तो है ।' 'पर ये बरसने वाले बादल