खुशी की खोज

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खुशी की खोज राजन कंप्यूटर केंद्र में अपनी मेज पर बैठा हुआ, दीवार पर लगी घड़ी की ओर टक-टक की आवाज सुन रहा था। इस ध्वनि की गूंज के साथ, समय के बीतने का निरंतर स्मरण होता था। उसने सांस ली, अवांछित कार्यों के एक अनंत चक्र में फंसे हुए महसूस कर रहा था। राजन: (अपने आप से बोल रहा था) "क्या जीवन केवल यही है? कंप्यूटरों को ठीक करने और तकनीकी मुद्दों को हल करने के बिना निरंतर घंटों बिताने का? मुझे कुछ और चाहिए।" उसका सहकर्मी, प्रिया, उसके पास चिठ्ठी के स्तापन सामग्री को लेकर चली आई। प्रिया: