मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 15

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मैं भारत बोल रहा हूँ - काव्‍य संकलन यातना पी जी रही हूँ - यातना पी जी रही हूँ। साधना में जी रही हूँ।। श्रान्ति को, विश्रान्ति को मन, कोषता रह-रह रूदन में। याद आते ही, जहर सा, चढ़ रहा मेरे बदन में। इस उदर की, तृप्ति के हित, निज हृदय को, आज गोया। हायरे। निष्‍ठुर जगत, तूँने न अपना मौन खोया। मौन हूँ पर, सिसकती अपने लिए ही रो रही हूँ।। निशि प्रया, बाहरी घटा बन घिर रही चहु ओर मेरे। रात आधी हो गई पर, वह सुधि, मुझको है टेरे। आंख फाड़े देखती हूँ, कांपते