चांद के पार एक कहानी अवधेश प्रीत 7 पिन्टू की इच्छा हुई, पूछे, ‘देर न होती तो कुछ देर और रुकती क्या?’ तारा कुमारी जा चुकी थी। प्रश्न प्रश्न ही रह गया था। खुद से प्रश्न करते, खुद ही उत्तर देते पिन्टू का मन किसी काम में नहीं लग रहा था। यहां तक कि कोई किताब उठाने की भी इच्छा नहीं हो रही थी। बस दो दूनी चार आंखें, आंखों में तिर-तिर जातीं और वह आंखें मूंदकर उस सिहरन को महसूस करता। इसी मनःस्थिति के बीच ही रजवा की आवाज आयी, ‘भइया हो, मुखिया जी आपको बुला रहे हैं।’ पिन्टू