एक रात ठिठुरन भरी

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शाम ढ़ली भी न थी कि कोहरा उतरने लगा था. कुछ ही समय गुजरेगा ,यह जमीन को अपने आगोश में ले लेगा. फिर चलते-फिरते लोग काले धब्बे मात्र रह जायेंगे.उनकी आकृति भी साफ नजर नहीं आयेगी. ऐसे में सड़क पर चलते वाहन भी नहीं दिखाई देते. यकायक जब उनकी लाईट चेहरे पर पड़ती है. तब वे अजगर की तर मुँह फाड़े नजर आते हैं. अब बचो किधर बचना है. ज्यों-ज्यों कोहरे की चादर गहरी होती जा रही थी, उसकी कोफ्त बढ़ती जा रही थी. दरअसल, उसे सर्दी के मौसम से ही कोफ्त थी.कभी -कभी वह