अजब था हाल दिल का, गज़ब थी दोस्ती उसकी...सन १९७० में आचार्य रजनीश पटना पधारे थे। तब तक वे आचार्य ही थे, 'भगवान्' या 'ओशो' नहीं हुए थे। उन दिनों आकाशवाणी, पटना के हिंदी प्रोड्यूसर पिताजी थे। उन्होंने हिन्दी वार्ता विभाग के लिए आचार्य के 'मुक्त-चिंतनों' के कई अंकों का ध्वन्यांकन किया था और घर आकर उनकी वक्तृता की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। तभी पता चला कि पटना के लेडी इंस्टीफिंसन हॉल में तीन दिनों तक शाम के वक़्त आचार्यश्री के भाषण होंगे। मैंने अपने एक अभिन्न मित्र के साथ घर से ८ किलोमीटर दूर जाकर तीनों दिन उनके भाषण